नहीं रहा बॉलीवुड का ‘जिद्दी’

बॉलीवुड में रोमानियत को नई पहचान देने वाले देवआनंद अब हम लोगों के बीच नहीं रहे।
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नहीं रहा बॉलीवुड का ‘जिद्दी’


Nahi raha bollywood ka ziddiबॉलीवुड में रोमानियत को नई पहचान देने वाले देवआनंद अब हम लोगों के बीच नहीं रहे। गौरतलब है कि रविवार की सुबह 3.30 लंदन में देवआनंद ने अपनी अंतिम सांसे ली। हालांकि पिछले कुछ समय से वे बीमार चल रहे थे, इसी सिलसिले में वे लंदन में थे। यह तो सभी जानते हैं 88 वर्षीय देवआनंद अपने अंतिम समय में भी फिल्मीा दुनिया में सक्रिय रहें। यह उनकी जिद भी थी कि वे अपने अंतिम समय तक फिल्मों में काम करना पसंद करेंगे, जिसको उन्होंने पूरा भी किया।


जिंदगी को अपने ही ढंग से अपनी शर्तों पर जीने वाले देवआनंद जिदंगी को हमेशा सकारात्मक रूप से देखते थे और बहुत ही आशावादी थे, यही कारण था वे उदासीनता भरे किरदारों को निभाने से हमेशा बचते रहे। देवआनंद सिर्फ अभिनेता ही नहीं बल्कि इन्होंने बतौर लेखक, निर्माता-निर्देशक सभी भूमिकाओं को बखूबी निभाया।


अपनी सकारात्मक सोच के कारण लोगों में खासकार युवाओं के बीच अपनी छवि बनाने वाले देवआनंद मस्‍तमौला इंसान थे जिन्हें लोगों से मिलना-जुलना बहुत पसंद था। अपने इसी मिलनसार व्यवहार के कारण वह जल्दी ही लोगों को अपना दोस्त बना लेते थे। उनकी एक खास बात थी कि वे नई जमाने की सोच के साथ चलते थे। यही कारण था कि उनके फैंस भी हर आयुवर्ग के थे। आधुनिकरण को बुरा ना मानने वाले देवआनंद किसी के अंदर छुपे कलाकार को बहुत ही आसानी से पहचान जाते थे। देवआनंद की खासियत थी कि वे किसी भी किरदार को बहुत ही आसानी से प्रभावी बना देते थे यही उनके अभिनय की भी खासियत थी।


देवआनंद जिंदगी को एक जश्न की तरह लेते थे और हर दिन उनके लिए नया होता था, उन्होंने अपनी जिंदगी के हर लम्हे को भरपूर जिया। देवआनंद की कामयाबी के पीछे गुरूदत का बहुत बड़ा हाथ है जिसके कारण इनकी प्रतिभा का सम्मान किया गया। इसके अलावा राजकपूर ने भी इनके अभिनय को निखारने में कोई कमी नहीं बरती। किशोर कुमार जिनके कारण उन्हें फिल्मी ‘जिद्दी’ में काम करने का मौका मिला को कैसे भूला जा सकता है। यही ऐसी फिल्म थी, जहां से इनकी कामयाबी की बुलंदियां शुरू हुई और इसके बाद इन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।


रोमानियत की नई परिभाषा गढ़ने वाले देवआनंद अपने आपको इंटरनल रो‍मांटिक व्‍यक्ति कहलाना ज्यादा पसंद करते थे। इनकी नजर में मोहब्बत पाने का अहसास नहीं बल्कि मोहब्बत करने का अहसास है।


देवआनंद ऐसी शख्सियत थी जिसने काम से भागना नहीं सीखा था। देवआनंद की खासियत थी कि ये बहुत अधिक खुशी पर ना तो अति उत्साहित होते थे और बहुत अधिक दुखी होने पर ना ही बहुत निराश। अपनी इसी प्रवृति के कारण ये अपने अंतिम दिनों तक काम को लेकर जुनूनी रहे।


देव आनंद को ना सिर्फ लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया बल्कि इन्हें पद्मभूषण और दादा साहेब फाल्के जैसे पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। इनकी सबसे अधिक चर्चित फिल्मा गाइड, जिद्दी, हरे कृष्णा हरे रामा, मुनीम जी, काला पानी रही।


1946 से 2011 तक सिनेमा की दुनिया में सक्रिय रहते हुए देवआनंद ने 19 फिल्मों का निर्देशन किया और अपनी 13 फिल्मों1 की कहानी खुद लिखी। पिछले छह दशकों में देवआनंद ने बॉलीवुड को बहुत कुछ दिया जो हमेशा ही यादगार रहेगा।

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