कोरोना वायरस के कारण देश में वेंटिलेटर्स की कमी की चर्चा बार-बार हो रही है। मगर क्या सच में कोरोना वायरस के सभी मरीजों के वेंटिटेलर्स की जरूरत पड़ती है? या इसका इस्तेमाल विशेष परिस्थितियों में ही किया जाता है? वेंटिलेटर्स को लाइफ सपोर्ट सिस्टम भी कहा जाता है। सिद्धार्थ नगर के चिकित्साधिकारी डॉ. राम आशीष बताते हैं कि वेंटिलेटर्स की जरूरत सिर्फ 5 प्रतिशत मरीजों को ही पड़ती है, जिनकी हालत गंभीर होती है और जिन्हें सांस लेने में बहुत ज्यादा तकलीफ होती है। कोरोना वायरस के ज्यादातर मरीजों में माइल्ड लक्षण होते हैं, जो आसानी से दवाओं और इलाज से ठीक हो जाते हैं।
क्या है लाइफ सपोर्ट सिस्टम? (Life Support System)
यह तो आप भी जानते हैं कि एक व्यक्ति तभी तक जीवित रह सकता है जब तक उसके शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंग- हृदय, मस्तिष्क, किडनी, लिवर आदि ठीक से काम करें। कई बार मरीज की हालत बहुत ज्यादा नाजुक होने पर बाकी अंग काम करते हैं मगर इनमें से कोई 1/2 अंग काम करना बंद कर देते हैं या धीमा कर देते हैं। ऐसी स्थिति में लाइफ सिस्टम सपोर्ट के द्वारा व्यक्ति के उस अंग को कंट्रोल किया जाता है, ताकि व्यक्ति की हालत में सुधार आने तक उसे जीवित रखा जा सके। इससे डॉक्टरों को इलाज के लिए और हालत स्थिर होने के लिए अतिरिक्त समय मिल जाता है। वास्तव में लाइफ सपोर्ट सिस्टम आधुनिक मेडिकल साइंस का एक बड़ा चमत्कार है, जिसके द्वारा कई बार व्यक्ति को मौत के मुंह से भी बाहर निकाल लिया जाता है।
इसे भी पढ़ें:- जानिये कब पड़ती है किडनी के डायलिसिस की जरूरत और क्या है इसकी प्रक्रिया
टॉप स्टोरीज़
क्यों रखा जाता है लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर? (Need of Life Support)
आमतौर पर जब व्यक्ति का इलाज संभव हो मगर गंभीर हालत के कारण उसके शरीर का कोई विशेष अंग ठीक से काम न करे या पूरी तरह काम करना बंद कर दे, तो उसे लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा जाता है। इसे वेंटिलेटर भी कहते हैं। ये निम्न स्थितियों में होता है-
- जब व्यक्ति सांस न ले पा रहा हो या उसके फेफड़े ठीक से काम न कर रहे हों।
- जब व्यक्ति के दिल की धड़कन बहुत तेज घटे-बढ़े, उसे हार्ट अटैक या कार्डियक अरेस्ट हो।
- जब व्यक्ति की किडनियां काम करना बंद कर दें।
- जब व्यक्ति के मस्तिष्क में खून की आपूर्ति कम हो जाए या उसे स्ट्रोक हो।
इसे भी पढ़ें:- किडनी कैंसर से पहले शरीर में दिखते हैं ये 8 लक्षण, रहें सावधान
क्यों पड़ती है इन इस तरह के सपोर्ट की जरूरत?
आमतौर पर Extracorporeal Membrane Oxygenation (ECMO) की जरूरत तब पड़ती है, जब व्यक्ति के फेफड़े काम करना बंद कर दें। इस स्थिति में सपोर्ट सिस्टम में एक पंप के द्वारा आर्टिफिशियल फेफड़े से बंलड पंप किया जाता है, जिससे कि दिल तक पर्याप्त मात्रा में खून पहुंच सके।
Intra-Aortic Balloon Pump की जरूरत तब पड़ती है, जब दिल पर्याप्त मात्रा में खून को पंप नहीं कर पाता है। इस सिस्टम में एक पतले पाइप का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे कैथेटर (Catheter) कहते हैं। इसके साथ एक लंबा बैलून जुड़ा होता है। ये दोनों ही सपोर्ट सिस्टम व्यक्ति के पूरे शरीर में खून ऑक्सीजनयुक्त खून को पहुंचाने के लिए दिए जाते हैं, ताकि मरीज के अंग काम करते रहें और उसकी मौत न हो।
Read more articles on Health News in Hindi