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आंतों को स्वस्थ और बीमारियों से दूर रखने के लिए फॉलो करें ये 4 आयुर्वेदिक नियम, दूर होगी खराब पाचन की समस्या

सेहतमंद रहने के लिए जरूरी है कि आपकी आंतें हेल्दी हों। यहां जानिए, आंतों को हेल्दी रखने के लिए आयुर्वेदिक नियम क्या हैं?
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आंतों को स्वस्थ और बीमारियों से दूर रखने के लिए फॉलो करें ये 4 आयुर्वेदिक नियम, दूर होगी खराब पाचन की समस्या

आज की भागदौड़ भरी लाइफस्टाइल और असंतुलित खानपान ने हमारे पाचन तंत्र और आंतों के स्वास्थ्य पर गहरा असर डाला है। जहां पहले आंतों से जुड़ी समस्याएं एक उम्र के बाद देखने को मिलती थीं, वहीं अब युवा और बच्चों में भी पेट से संबंधित बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। फास्ट फूड और प्रोसेस्ड फूड्स का बढ़ता सेवन, फाइबर की कमी और अधिक तनाव जैसी आदतें आंतों की समस्याओं का मुख्य कारण बन रही हैं। इन आदतों के चलते पाचन तंत्र कमजोर होने लगता है, जिससे कब्ज, एसिडिटी, सूजन और कई प्रकार की आंतों की बीमारियां उत्पन्न होती हैं। आयुर्वेद के अनुसार, आंतों का स्वास्थ्य सही रखने के लिए कुछ नियमों का पालन करना जरूरी है।

आयुर्वेद के बारे में लोगों के बीच जागरुकता फैलाने के लिए ओन्लीमायहेल्थ 'आरोग्य विद आयुर्वेद' (Arogya with Ayurveda) स्पेशल सीरीज चला रहा है। इस सीरीज में हम अपने पाठकों को आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धतियों और जड़ी-बूटियों के बारे में जानकारी देगें और इसके साथ ही रियल स्टोरीज भी शेयर करेंगे, ताकि लोग आयुर्वेद के बारे में जान सकें। आज के इस लेख में रामहंस चेरिटेबल हॉस्पिटल, सिरसा के आयुर्वेदाचार्य श्रेय शर्मा से जानेंगे कि आंतों को स्वस्थ रखने के लिए आयुर्वेदिक नियम क्या हैं?

आंतों को स्वस्थ रखने के लिए आयुर्वेदिक नियम

आंतों का स्वास्थ्य हमारे पूरे शरीर को प्रभावित करता है और आयुर्वेद में इसे विशेष महत्व दिया गया है। आयुर्वेद में बताया गया है कि स्वस्थ आंतें शरीर में पाचन प्रक्रिया को मजबूत बनाती हैं, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी बेहतर होती है और बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। आयुर्वेद के अनुसार, आंतों को स्वस्थ रखने के लिए चार प्रमुख नियम हैं - हिताशन, मिताशन, कालभोजन और जितेन्द्रिय। इन नियमों का पालन करके हम न केवल अपने आंतों की सेहत को बेहतर कर सकते हैं, बल्कि बीमारियों को भी दूर रख सकते हैं। इस लेख में जानेंगे कि इन नियमों का पालन कैसे करें।

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1. हिताशन

आयुर्वेद में हिताशन का अर्थ है ऐसे भोजन का सेवन करना जो हमारे शरीर के लिए लाभकारी हो। हिताशन के अनुसार, भोजन में हमेशा पौष्टिक तत्वों की मात्रा संतुलित होनी चाहिए। इसके लिए गाय के पांच अमृत (मट्ठा, दही, घी, दूध और मूत्र) का सेवन भोजन में शामिल करना जरूरी होता है। आयुर्वेदाचार्य श्रेय शर्मा बताते हैं कि यदि भोजन में इन पांच अमृत में से कोई भी तत्व नहीं होता, तो भोजन शरीर को सही ढंग से लाभ नहीं पहुंचा पाता है और यह वात दोष को बढ़ा सकता है। वात दोष बढ़ने से पेट की समस्याएं और आंतों में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

2. मिताशन

मिताशन का अर्थ है भोजन को उचित मात्रा में सेवन करना। आयुर्वेद के अनुसार, हमें कभी भी पेट को पूरी तरह भरकर भोजन नहीं करना चाहिए, बल्कि आधा पेट भोजन से और बाकी पानी तथा हवा के लिए जगह छोड़नी चाहिए। यह आदत पाचन प्रक्रिया को सही बनाए रखने में मदद करती है और आंतों को बेहतर तरीके से कार्य करने देती है। मिताशन का पालन करने से शरीर में अन्न का संचय नहीं होता और भोजन का पाचन अच्छे से होता है, जिससे अपच, एसिडिटी और कब्ज जैसी समस्याओं से बचाव होता है।

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3. कालभोजन

कालभोजन का मतलब है भोजन का सेवन सही समय पर करना। आयुर्वेद में सूर्य के साथ भोजन करने का प्रचलन है, यानी जब सूर्य तेज होता है तब पाचन शक्ति भी प्रबल होती है और जैसे-जैसे सूर्य की शक्ति घटती है, पाचन भी कमजोर हो जाता है। इसलिए, आयुर्वेद में दो बार भोजन करने की सलाह दी गई है (सुबह 9 से 12 बजे तक और शाम को 4 से 7 बजे के बीच) समय पर भोजन करने से शरीर का पाचन तंत्र सुचारू रहता है और आंतों पर ज्यादा भार नहीं पड़ता।

4. जितेन्द्रिय

आयुर्वेद में जितेन्द्रिय का अर्थ है अपनी इच्छाओं और इंद्रियों पर कंट्रोल रखना। अक्सर हम स्वाद के कारण अधिक खा लेते हैं, जिससे पेट और आंतों पर ज्यादा दबाव बनता है। जितेन्द्रिय का पालन करते हुए केवल भूख लगने पर और सीमित मात्रा में भोजन करना चाहिए। यह आदत पाचन को बेहतर बनाती है और बीमारियों से बचाव में सहायक होती है।

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गाय के पंचामृत का सेवन

आयुर्वेद में बताया गया है कि गाय का दूध, दही, मट्ठा, घी और गोमूत्र पंचामृत के रूप में जाने जाते हैं। यह तत्व शरीर की पाचन शक्ति को मजबूत करते हैं और आंतों के स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक होते हैं। आयुर्वेदाचार्य श्रेय शर्मा के अनुसार, यदि भोजन में इनमें से कोई भी एक शामिल नहीं होता तो वह भोजन शरीर के लिए लाभकारी नहीं होता है और इसे राक्षसों का भोजन कहा गया है, जो कि वात दोष को बढ़ाता है।

विरुद्ध आहार से बचें

आयुर्वेद में बताया गया है कि कुछ फूड्स एक साथ नहीं खाने चाहिए जैसे मछली और दूध, घी और शहद। ये कॉम्बिनेशन शरीर में विषाक्तता उत्पन्न कर सकते हैं और आंतों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। भोजन के साथ फलों का सेवन करने से भी बचना चाहिए।

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प्रकृति के अनुसार भोजन

आयुर्वेद में वात, पित्त, और कफ प्रकृति का वर्णन किया गया है। भोजन को अपनी प्रकृति के अनुसार करना आंतों की सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है। वात प्रकृति वाले व्यक्तियों को अधिक कच्चा और ठंडा खाना नहीं खाना चाहिए, जबकि कफ प्रकृति वालों को सलाद और हल्का भोजन अधिक लाभकारी होता है।

भोजन के साथ पानी पीने से बचें

भोजन के तुरंत बाद पानी पीना पाचन के लिए हानिकारक होता है। इससे पेट की अग्नि ठंडी हो जाती है और पाचन धीमा हो जाता है। यदि प्यास लगती है तो सीमित मात्रा में छाछ का सेवन किया जा सकता है।

निष्कर्ष

सही समय पर, सही मात्रा में और उचित आहार का सेवन करना आयुर्वेद में बेहद जरूरी बताया गया है। ये सरल नियम न केवल आंतों के स्वास्थ्य को बनाए रखते हैं बल्कि बीमारियों से भी रक्षा करते हैं। आयुर्वेद का मूल सिद्धांत कहता है कि आंतों को स्वस्थ रखने के लिए हमें प्रकृति के नियमों का पालन करना चाहिए और आहार का संयमित सेवन करना चाहिए। इन सभी नियमों का पालन करके हम आंतों की सेहत को बेहतर बना सकते हैं और अपने शरीर को बीमारियों से दूर रख सकते हैं। आयुर्वेद के इन सिद्धांतों को अपनी दिनचर्या में अपनाएं।

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