
दिमाग या मस्तिष्क इंसानी शरीर के सबसे बड़े और सबसे पेचीदा अंगों में से एक है। लगातार एक-दूसरे से संचार करती अरबों तंत्रिकाओं से बना यह डेढ़ किलोग्राम भारी अंग, शरीर की सभी क्रियाओं का नियंत्रण करता है। सूचनाओं का मतलब समझने से लेकर एहसास जाहिर करने और इंसान का रचनाशील पहलू दिखाने तक के काम करने वाला यह शरीर का सुपरकंप्यूटर, कपाल यानि खोपड़ी की हड्डी के अंदर सुरक्षित रहता है।
अतः दिमाग़ और उसकी सेहत के बारे में जागरुकता फैलाने के लिए जून का महीना अल्जाइमर और दिमाग़ की जागरुकता को समर्पित है। पूरे महीने चलने वाले इस अभियान का मकसद अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचना, उन्हें दिमाग़ की दुरुस्ती के बारे में शिक्षित करना, और अल्जाइमर नामक दिमाग़ी विकार के बारे में उन्हें बताना है जो इंसान की याद्दाश्त और सोचने की काबिलियत पर असर डालता है।
आंकड़े क्या कहते हैं?
अल्जाइमर डिजीज इंटरनेशनल (Alzheimer Disease International) के मुताबिक पूरी दुनिया में लगभग 4.4 करोड़ लोग अल्जाइमर या उससे जुड़े डिमेंशिया यानि मनोभ्रंश से पीड़ित हैं। इनमें से लगभग 55 लाख मरीज़ 65 साल या इससे अधिक उम्र के हैं। यह बीमारी 2018 में अशक्तता और ख़राब सेहत की सबसे बड़ी वजहों में से एक रही है। रिपोर्टों के मुताबिक भारत में अल्जाइमर और डिमेंशिया के दूसरे रूपों, दोनों के मामले 40 लाख से भी अधिक हैं। अनुमान है कि 2030 के आख़िर तक इस बीमारी से पीड़ित लोगों की संख्या 75 लाख पहुंच जाएगी। हालांकि अल्जाइमर को उम्र से जुड़ी बीमारी माना जाता है पर सच यह है कि यह उम्र बढ़ने का एक सामान्य हिस्सा नहीं है। साथ ही, यह बीमारी ठीक नहीं हो सकती है क्योंकि यह दिमाग़ की कोशिकाओं को स्थायी नुकसान पहुंचाती है।
क्या स्ट्रोक और याद्दाश्त जाने के बीच कोई संबंध है?
उम्र बढ़ने के साथ-साथ अल्जाइमर का जोख़िम भी बढ़ता है। इस बीमारी से पीड़ित अधिकतर लोग 65 साल या अधिक उम्र के हैं। पर चूंकि इस बीमारी को बढ़ती उम्र से जोड़कर देखा जाता है इसलिए कुछ लोग स्ट्रोक को भी इस बीमारी से जोड़कर देखते हैं। स्ट्रोक, दिमाग़ से जुड़ी एक दिक्कत है जो तब पैदा होती है जब शरीर में ख़ून का दौरा रुक जाता है जिसकी वजह से ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और नतीजतन कोशिकाएं मर जाती हैं। हालांकि स्ट्रोक बुजुर्गों में सबसे आम है पर इन दोनों के बीच का संबंध ख़ून के दौरे से जुड़े जोख़िमों की मौजूदगी में सबसे मजबूत होता है। इसलिए, स्ट्रोक होने पर इंसान को तुरंत इलाज चाहिए होता है ताकि दिमाग़ को होने वाला नुकसान कम-से-कम रखा जा सके।
स्ट्रोक के संकेतक
इसलिए, आख़िर में डिमेंशिया यानि मनोभ्रंश की वजह बन सकने वाले गंभीर स्ट्रोक से पीड़ित इंसान को बचाने के लिए, स्ट्रोक के इन संकेतकों पर नज़र रखें-
- अचानक लकवा या शरीर के एक साइड में कोई हरकत न होना
- ठीक से दिखाई न देना, या चीज़ें दो-दो दिखना
- संतुलन न बना पाना
- पेशाब पर नियंत्रण खो जाना
- दिमाग़ के "समझ-बोध" से जुड़े कामों, जैसे याद्दाश्त, बोली, भाषा, सोचना, विचारों को संगठित करना, तर्क करना, या फ़ैसले लेना आदि में दिक्कतें
- आचार-व्यवहार में बड़ा बदलाव
इस बीमारी की वजहें
- हाई ब्लड प्रेशर (हायपरटेंशन)
- डायबिटीज़
- दिल की बीमारियां
- हाई कोलेस्टेरॉल
- बांहों और पैरों की ख़ून की नलियों की बीमारियां
- धूम्रपान
आदि इसके अन्य जोख़िम हैं!
अल्जाइमर या स्ट्रोक की शुरुआत को टाला कैसे जाए?
शरीर की किसी भी दूसरी बीमारी की तरह दिमाग़ी बीमारियों की भी रोकथाम की जा सकती है। रोकथाम के उपाय इस प्रकार हैं -
- सेहतमंद खानपान लें- खानपान के सभी ज़रूरी पोषक तत्व, सूखे मेवे और रेशे शामिल करें
- नियम से कसरत करें- रोज़ाना कम-से-कम 30 मिनट, मध्यम तीव्रता की
- तंबाकू पूरी तरह बंद कर दें और एल्कोहल के सेवन में संयम बरतें
- कोलेस्टेरॉल बढ़ाने वाला प्रोसेस्ड फ़ूड और रेड मीट कम खाएं
- ब्लड प्रेशर नियंत्रित करके नमक का सेवन कम-से-कम करें
ये सारी आदतें शरीर में ख़ून और ऑक्सीजन का दौरा बढ़ाती हैं, जिनसे दिमाग़ी कोशिकाओं को ठीक से काम करने में मदद मिलती है।
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मेडिकल टेस्ट
पिछले कई सालों में न्यूरोसाइंस ने दिमाग़ी बीमारियों के इलाज के कई तरीकों में तरक्की की है। इसके लिए न्यूरोलॉजिस्ट कुछ टेस्ट सुझाते हैं जैसे एमएरआई, सीटी स्कैन, पॉज़िट्रॉन-एमिशन टोमोग्राफी (पीईटी) जिससे दिमाग़ का स्कैन देखकर गहरी समझ हासिल होती है। वे इन्फ़ेक्शन, रासायनिक असामान्यताओं, हॉर्मोनों के विकारों आदि की जांच के लिए कुछ ब्लड टेस्ट भी सुझा सकते हैं।
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इलाज
जैसा कि पहले बताया गया है, अल्जाइमर या दिमाग़ी बीमारियां अधिकतर लाइलाज होती हैं क्योंकि दिमाग़ की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने पर उन्हें ठीक करना मुश्किल होता है। लेकिन, किसी अच्छे और तजुर्बेकार डॉक्टर से सलाह लेने से हालात को और बिगड़ने से रोकने में निश्चित तौर पर मदद मिलती है। डॉक्टर की बताई दवाएं लेकर मरीज़ बीमारी का तेज़ी से फैलना और ज़्यादा नुकसान पहुंचाना टाल सकता है।
आख़िर में, बैंगनी रंग पहनकर अल्जाइमर और दिमाग़ की जागरुकता के उद्देश्य का समर्थन कीजिए, आख़िरकार, दिमाग़ की सेहत को बहुत लंबे समय से अनदेखा जो किया जाता रहा है। अभी कदम उठाने का समय आ चुका है।
यह लेख मेदांता- द मेडिसिटी हॉस्पिटल के एसोसिएट डायरेक्टर और हेड ऑफ़ न्यूरोइंटरवेंशन सर्जरी, डॉ गौरव गोयल से हुई बातचीत पर आधारित है।
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