एक तरफ जहां देश पहले से कोरोनावायरस की मार झेल रहा है वहीं दूसरी तरफ अब भारत के असम में अफ्रीकी स्वाइन फीवर ने दस्तक दी है। पूर्वोत्तर राज्य असम में इस अफ्रीकी स्वाइन फीवर से करीब 2500 से ज्यादा सूअरों की मौत हो गई है, जिसके बाद सरकार ने इस बीमारी से निपटने की तैयारी शुरू कर दी है। असम इस अफ्रीकी बुखार का केंद्र बन गया है। इस वायरस के घातक होने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस बीमारी की चपेट में आने वाले सूअरों की मृत्युदर 100 प्रतिशत है। असम सरकार ने दावा किया है कि ये वायरस भी चीन की ही देन है। गौरतलब है कि इस अफ्रीकी बुखार के कारण चीन में 2018 और 2020 के बीच करीब 60 फीसदी सूअरों की मौत हुई थी।
पशुपालन मंत्री ने की बीमारी की पुष्टि
असम के सूअरों में इस अफ्रीकी बुखार के फैलने की खबर की पुष्टि करते हुए राज्य के पशुपालन और पशु चिकित्सा मंत्री अतुल बोरा ने कहा है कि वायरस के नमूने भोपाल के राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशुरोग संस्थान भेजे गए थे, जिसमें अफ्रीकी स्वाइन फीवर की पुष्टि हुई है। वहीं बोरा का कहना है कि राज्य में स्थिति चिंताजनक है और सरकार ने फैसला किया है कि संक्रमित सूअरों को मारा नहीं जाएगा बल्कि उन्हें जैवसुरक्षा के तहत रखा जाएग।
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सूअरो को बचाने के लिए रोडमैप तैयार
असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने राज्य के पशु चिकित्सा और वन विभाग को इस अफ्रीकी स्वाइन फीवर से सूअरों को बचाने के लिए रोडमैप तैयार करने का निर्देश दिया है, जिसमें उसका साथ इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) का नेशनल पिग रिसर्च सेंटर देगा।
भारत में नहीं था कोई मामला
पशुपालन और पशु चिकित्सा मंत्री अतुल बोरा का कहना है कि भारत में पहली बार अफ्रीकी बुखार का मामला सामने आया है। उन्होंने कहा कि इससे पहले भारत में अफ्रीकी स्वाइन फीवर का कोई भी मामला नहीं था। उन्होंने संदेह जताया कि ये वायरस बाहर से आया है और इसने अरुणाचल प्रदेश से असम राज्य में प्रवेश किया है। दरअसल इस बीमारी से सूअरों की पहली संदिग्ध मौत अरुणाचल प्रदेश में ही हुई थी।
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स्वाइन फीवर दुनिया में बेहद पुराना
बता दें कि इस अफ्रीकी स्वाइन फीवर का पहला मामला केन्या में वर्ष 1921 में सामने आया था उसके बाद इसने इथियोपिया में दस्तक दी थी। भोपाल स्थित भारत के राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान (NIHSAD ने अफ्रीकी स्वाइन फीवर की पुष्टि की है। विभाग ने 2019 में सूअरों की गणना की थी, उस वक्त असम में सूअरों की संख्या 21 लाख थी जो बढ़कर 30 लाख हो चुकी है।
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