क्या आपने महसूस किया कि आजकल टेक्नोलॉजी का असर बच्चों की परवरिश पर पड़ने लगा है? जी हां, ये बात सच है कि टेक्नोलॉजी यानी तकनीक आजकल हर जगह हावी हो गई है। मगर बच्चों की परवरिश में टेक्नोलॉजी के असर से बच्चों पर गलत प्रभाव पड़ रहा है। इससे न सिर्फ बच्चे कम उम्र में गलत बातें सीख रहे हैं, बल्कि उनके विकास पर भी असर पड़ रहा है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक पिछले 20 सालों में मां-बाप के बच्चों के परवरिश के तरीकों में काफी बदलाव आया है। आजकल ज्यादातर मां-बाप ये 5 गलतियां करते हैं, जिससे बच्चे प्रभावित होते हैं।
बच्चे के रोने पर मोबाइल दे देना
आजकल स्मार्टफोन लगभग हर घर में मौजूद है। बचपन से ही रोते हुए बच्चों को चुप कराने के लिए मां-बाप उन्हें मोबाइल में वीडियोज या गेम चलाकर दे देते हैं, जिससे बच्चे का ध्यान बंट जाता है और वो चुप हो जाते हैं। मगर क्या आपको पता है कि WHO के अनुसार 6 माह से छोटे बच्चों के लिए मोबाइल की ब्लू लाइट बेहद खतरनाक हो सकती है और उनकी आंखों की रोशनी को नुकसान पहुंचा सकती है। इसके अलावा 3 साल से छोटे बच्चों के लिए रोजाना 60 मिनट से ज्यादा समय तक मोबाइल का इस्तेमाल करने से उनके दिमाग के कई हिस्से अविकसित रह जाते हैं।
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बाहर खेलने देने के बजाय टीवी दिखाना
घरो में मौजूद टीवी भी बच्चों की सेहत पर बुरा असर डाल रहा है। आजकल ज्यादातर बच्चे स्कूल से लौटने के बाद टीवी देखने और कंप्यूटर गेम्स खेलने में व्यस्त हो जाते हैं। इससे बच्चों के व्यवहार और मनोविज्ञान पर बुरा असर हो रहा है। छोटे बच्चों के लिए बाहर खेलना बहुत जरूरी है। खेलने से न सिर्फ वो फिजिकल रूप से एक्टिव रहते हैं, बल्कि सूरज की रोशनी से उन्हें विटामिन डी मिलता है। इसके अलावा हरे-भरे घास के मैदान और पेड़-पौधों के आसपास खेलने से बच्चों को विटामिन एन मिलता है, जिससे उनकी बुद्धि तेज होती है।
स्मार्टफोन के कारण अभिभावक और बच्चों में दूरियां
आजकल काम से लौटने के बाद ज्यादातर लोग अपने मोबाइल पर सोशल साइट्स, मैसेजिंग एप्स और ब्राउजिंग आदि में व्यस्त हो जाते हैं। वहीं बच्चे भी इंटरनेट पर सर्फिंग, वीडियोज आदि में व्यस्त हो जाते हैं। जिसके कारण किशोर होने तक मां-बाप और बच्चों के बीच इतनी अच्छी बॉन्डिंग नहीं बन पाती है कि वो एक दूसरे के बारे में बहुत अधिक सोच सकें। अभिभावकों के लिए जरूरी है कि वो रोजाना 2-3 घंटे बच्चों के साथ समय बिताएं, उनसे उनके बारे में बातें करें और छुट्टी के दिन बच्चे उनके कामों में हाथ बंटाएं। इससे बच्चे ज्यादा व्यवहारिक और पारिवारिक बनेंगे, जो कि उनके भविष्य के लिए बहुत जरूरी है।
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बच्चों को घर के काम न सिखाना
आजकल पैरेंट्स समझते हैं कि बच्चों के लिए सिर्फ पढ़ाई-लिखाई ही महत्वपूर्ण है, इसलिए उनका पूरा ध्यान इस बात पर लगा होता है कि बच्चा स्कूल में अच्छे नंबर लाए और टॉप करे। जबकि स्कूल में अच्छे नंबरों से बच्चों की जिंदगी की गुणवत्ता (Quality of Life) नहीं बेहतर होती है। बच्चों को घर के छोटे-मोटे काम सिखाना जैसे- साफ-सफाई करना, हाथों से कपड़े धोना, बर्तन धोना, खाना बनाना, बाजार से जरूरत के सामान लाना, बुजुर्गों का सम्मान करना आदि सिखाना बहुत जरूरी है। ये बातें भले भविष्य में उसे काम न आएं, मगर घर से जुड़ाव के लिए इन आदतों का होना बहुत जरूरी है। अन्यथा बच्चे को अपने घर और घर वालों से कोई जुड़ाव ही नहीं रहेगा।
बच्चे को पैसों की वैल्यू समझाना
आजकल लोगों की "क्रय शक्ति" यानी Purchasing Power पहले की अपेक्षा काफी बढ़ गई है, जिसके कारण मां-बाप अपने बच्चों को मंहगी लाइफस्टाइल मुहैया कराते हैं, जिसके कारण लंबे समय में बच्चों को पैसों की वैल्यू नहीं समझ आती है। भारत में आजकल मिडिल क्लास परिवारों के बच्चों में "दिखावे" यानी Show Off करने की प्रवृत्ति काफी बढ़ी है। इसका बड़ा कारण यही है कि मां-बाप बच्चों को बचपन से ही पैसों की वैल्यू नहीं समझाते हैं। बच्चों की सुख-सुविधाओं का ख्याल रखना जरूरी है, मगर उन्हें थोड़ी तकलीफ और असंतोष सहना भी सिखाना चाहिए। अपने बच्चे को जिंदगी के सभी रंगों का ज्ञान देना जरूरी है, ताकि आगे चलकर उसे कोई भी स्थिति हताश न करे।
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