बच्चों की परवरिश करना आसान काम नहीं है। कुछ मां-बाप बच्चों को बिगड़ने से रोकने के लिए जरूरत से ज्यादा सख्ती दिखाते हैं कि बच्चे उल्टा बिगड़ जाते हैं। जिस तरह चहारदीवारी के अंदर पौधों का स्वस्थ रूप से विकास नहीं हो सकता है, उसी तरह बहुत ज्यादा सख्ती के बीच बच्चों की अच्छी परवरिश नहीं हो सकती है। आपकी कई आदतें ऐसी हैं, जो गलत परवरिश का संकेत होती हैं। अगर आप अपनी ये आदतें नहीं बदलते हैं, तो बच्चों के बिगड़ने का खतरा बढ़ जाता है।
ज्यादा प्रतिबंध लगाना
ये बात सच है कि बच्चों को गलत आदतों और गलत लोगों से बचाने के लिए उनपर थोड़ी सख्ती जरूरत है, लेकिन इसकी भी एक सीमा होती है। बच्चे पर अपने द्वारा लगाई जा रही पाबंदियों की सीमा तय करें। उन्हें थोड़ी आज़ादी भी दें ताकि इससे उन्हें खुद से अच्छी व बुरी चीजों में फर्क सीखने का मौका मिले। बच्चों पर नजर रखें और उनका मार्गदर्शन करते रहें। कोशिश करें कि बच्चों के आसपास ऐसा माहौल बनाएं कि वो गलत चीजों की तरफ आकर्षित न हो।
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डांटना और मारना है गलत
बच्चों को डांटने और मारने से उनके अवचेतन मन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। बड़े होने पर ऐसे बच्चे या तो बिल्कुल बिगड़ जाते हैं या फिर 'दब्बू' स्वभाव के हो जाते हैं। बच्चों को डांटना और मारना गलत परवरिश करने की सबसे बड़ी निशानी है। जब बच्चे कोई काम करते हैं, तो वो अपनी समझ के अनुसार करते हैं। गलत काम करने या गलत निर्णय लेने पर आप बच्चों को मारने के बजाय सही और गलत में फर्क समझाएं। बच्चों को मारने से बच्चों के दिमाग पर बुरा असर पड़ता है और वो अगली बार वही गलती होने पर आपसे झूठ बोल सकता है।
बच्चों के सामने झगड़ना बुरा है
छोटे-मोटे वाद-विवाद हर घर में होते रहते हैं। कई बार घर के सदस्य आपस में बुरी तरह लड़ते हैं, जिसका बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। खासकर मां-बाप का बच्चों के सामने झगड़ना उनके अवचेतन मन के लिए बहुत बुरा है। भले ही आप बहुत अच्छे दम्पत्ति क्यों ना हों, आपका बच्चा आपको हमेशा बुरा ही मानेगा। इसलिए कोशिश करें कि घर के मामूली विवादों को सरलता से बातचीत से सुलझाएं और कम से कम बच्चों के सामने एक दूसरे पर चीखने, चिल्लाने, गाली देने या मार-पीट न करें।
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हर समय बच्चे की आलोचना न करें
ज्यादातर मां-बाप बच्चों के सामने उनकी बुराई और आलोचना खूब करते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा करने से बच्चे खुद को सुधारने की कोशिश करेंगे। मगर कई बार ज्यादा आलोचना करने से बच्चे बिगड़ जाते हैं। दूसरों के सामने बच्चों की बुराई करने और कोसने से बच्चों की भावनाएं आहत होती हैं और उनका कॉन्फिडेंस कम होता है। बच्चे के मन की बात समझें और उसको दूसरों के सामने बेइज्जत न करें। इससे बच्चे को बहुत ज्यादा शर्मिंदगी महसूस होती है और उसका मनोबल टूटने लगता है। साथ ही जो माता-पिता अपने बच्चे के प्रयासों की सराहना नहीं करते हैं, उनके बच्चे जिन्दगी की उलझनों और विपरीत परिस्थियों का सामना करने में घबराते हैं।
सिर्फ पढ़ते रहने का दबाव ठीक नहीं
बच्चों पर हर समय पढ़ने और कुछ सीखते रहने का ही दबाव न बनाएं। हम जितना देखकर सीखते हैं उससे ज्यादा करके सीखते हैं और जितना करके सीखते हैं उससे कहीं ज्यादा सोचकर सीखते हैं। बच्चों को कल्पना के लिए समय दें। उन्हें टीवी पर कुछ मनोरंजक चीजें जैसे साइंस फिक्शन, कार्टून, एडवेंचर, हिस्ट्री आदि के कार्यक्रम देखने दें, कोर्स से अलग कुछ किताबें पढ़ने दें और आउटडोर गेम्स खेलने दें। सिर्फ पढ़ाई के लिए टोकते रहने से बच्चों का दिमाग पढ़ाई से और ज्यादा उचटने लगता है।
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