
सी-सेक्शन डिलीवरी को लेकर अक्सर महिलाओं के मन में कई सारे प्रश्न और मिथक होते हैं। ऐसे में जरूरी है कि वे इन मिथकों के बारे में पूरी तरह से जान लें और तभी आगे कुछ फैसला लें। डिलीवरी के लिए आपको किस प्रक्रिया का चुनाव करना है, इसके लिए सबसे पहले जा
दुनिया के एक तिहाई बच्चों का जन्म सीजेरियन सेक्शन होता है इसलिए अब सीजेरियन डिलीवरी लोगों के लिए एक आम हो रहा है। पर भारत में अब भी लोगों के मन में इसे लेकर शंका और मिथक हैं। भारत में सीजेरियन डिलीवरी को लेकर लोगों के मन में एक डर है। उन्हें लगता है कि नॉर्मल डिलीवरी बेस्ट है और सीजेरियन डिलीवरी होने वाली मां के लिए नुकसानदायक साबित होगा। दरअसल इस प्रक्रिया को लेकर लोगों में मन अभी भी गलत धारणाएं हैं। अकसर गर्भवती मां और उनके परिवार वालों के मन में सीजेरियन डिलीवरी को इतने प्रश्न और मिथक हैं कि वे इससे बचने की कोशिश करती हैं। पर इन मिथकों पर आपको ज्यादा भरोसा करने की जरूरत नहीं है। ऐसा क्यों आइए हम आपको बताते हैं।
मिथक 1: डिलीवरी के बाद पहले की तरह रिकवरी नहीं होती-
यदि कोई महिला यह सुनिश्चित करना चाहती है कि सी-सेक्शन के बाद उसमें पहले की तरह ही त्वचा की रिकवरी हो जाए, तो उसे सबसे पहले अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए। दरअसल एक रिसर्च में ब्रिघम एंड वीमेंस हॉस्पिटल में सर्जिकल ओब्स्टेट्रिक्स के निदेशक डेनिएला की मानें तो ऐसा कुछ नहीं है। सीजेरियन डिलीवरी पूरी तरह से प्रेग्नेंट महिला के शरीर पर निर्भर करती है और रिकवरी में भी उसे हिसाब से वक्त लगता है। वहीं कुछ महिलाओं को लगता है कि सी-सेक्शन के इस्तेमाल से उनके और उनके होने वाले बच्चों के बीच वो रिश्ता नहीं बन पाएगा, जो मां को बच्चे से जोड़ता है। पर ये भी बस एक मिथ ही है। सीजेरियन सेक्शन डिलीवरी की एक प्रक्रिया है और इससे मां और बच्चे के बीच किसी भी तरह का अन्य प्रभाव नहीं पड़ता। सब वैसा ही रहता है, जैसा नॉर्मल डिलीवरी में होता है।
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मिथक 2 : स्तनपान में आती है मुश्किलें-
एनवाईयू लैंगोन मेडिकल सेंटर में प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग में मातृ भ्रूण चिकित्सा विभाग की सहायक प्रोफेसर शिल्पी एस मेहता-ली अपनी एक लेख में कहती हैं कि कुछ लोगों को लगता है कि अगर उन्हें सी-सेक्शन डिलीवरी हुई है तो उन्हें अपने बच्चों को स्तनपान कराने में मुश्किल हो सकती है। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। दरअसल नॉर्मल डिलीवरी हो या सीजेरियन इससे बच्चे को जन्म देने की क्षमता पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है। इसी तरह उनके स्तनपान पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। सी-सेक्शन के बाद हर मां स्तनपान कराने में वैसे ही सक्षम होती है, जैसे वे नॉर्मल डिलीवरी में होती हैं। अगर स्तनपान कराने में कोई मुश्किल आ रही है, तो इसके पीछे कुछ और कारण हो सकता है। इसके लिए डॉक्टर मां और बच्चे की अलग से जांच करते हैं।
मिथक 3: डिलीवरी के वक्त पूरी तरह से बेहोश होना-
कई महिलाओं को लगता है कि सी-सेक्शन के दौरान वो पूरी तरह से बेहोश हो सकती है, जबकि ऐसा नहीं है। ये पूरी तरह से एक धारणा है, जबकि अब सीजेरियन डिलीवरी के वक्त अक्सर गर्भवती मां को एपिड्यूरल या स्पाइनल एनेस्थेसिया दी जाती है। इस एनेस्थेसिया के कारण जन्म देते वक्त मां पूरी तरह से बेहोश नहीं होती है। एनेस्थेसिया मरीज को इसलिए दी जाती है ताकि डिलीवरी के वक्त मरीज को थोड़ा कम दर्द महसूस हो, इसलिए नहीं कि वो पूरी तरह से बेहोश हो जाएं।
मिथक 4: सी-सेक्शन कराना लोगों का शौख है-
एक महिला के प्रसव की विधि एक व्यक्तिगत पसंद है और जन्म के वक्त तक वो डिलीवरी के लिए किसी भी विधि को चुन सकती हैं। पर सी-सेक्शन विधि को डिलीवरी के लिए चुनना लोगों का शौख नहीं कह सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सी-सेक्शन डिलीवरी तब आवश्यक है जब -
- एक महिला लंबे समय तक लेबर पेन से गुजर रही हो और डिलीवरी न हो पाए
- भ्रूण संकट के कारण
- बच्चे के पोजिशन में अचानक लगत बदलाव के कारण
- मां की हालत बिगड़ने या हाई ब्लड प्रेशर के कारण
- बच्चा असामान्य स्थिति दिखा रहा हो
ऐसा हर स्थिति में गर्भवती मां की सी-सेक्शन डिलीवरी करवाई जा सकती है। इसलिए इसे किसी का शौख या अमीरी कहना गलत होगा। डॉक्टर अक्सर महिलाओं की हालत को देखते हुए ही सी-सेक्शन का सुझाव देते हैं। इसलिए इस फैसले पर पूरी तरह से मां का अधिकार होता है औप मां की हालत को देखते हुए ही डॉक्टर्स भी सी-सेक्शन डिलीवरी सुझाते हैं।
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मिथक 5: सी-सेक्शन में बिलकुल दर्द नहीं होता-
सी-सेक्शन को आमतौर पर नॉर्मल डिलीवरी से कम दर्दनाक माना जाता है, पर असल में ऐसा पूरी तरह से नहीं होता है। भले ही नॉर्मल डिलीवरी से सी-सेक्शन में कम दर्द हो पर ऐसा नहीं है कि सी-सेक्शन में बिलकुल दर्द न हो। जो लोग ये सोचकर सी-सेक्शन को चुनते हैं कि उन्हें बिलकुल दर्द नहीं होगा तो वे थोड़ा ठहर जाएं और तब फैसला लें। यहां तक की सी-सेक्शन ऑपरेशन के बाद 2 से 6 सप्ताह तक महिलाओं को दर्द महसूस होता रहता है। इसके अलावा सी-सेक्शन का सबसे बड़ा नुकसान ये है कि डिलीवरी के बाद नई मां का और ख्याल रखना पड़ता है। जब तक कि ऑपरेशन के घाव पूरी तरह से भर न जाए या ठीक न हो जाए महिलाओं को अपना पूरी तरह से ख्याल रखना पड़ता है। साथ ही ऑपरेशन के घाव का अच्छे से ख्याल न रखा जाए, तो इसमें इंफेक्शन भी हो सकता है।
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