एक साथी के साथ रहना नहीं है इंसानों की फितरत

शादी, रस्में और वादे ये सारे सामाजिक नियम होते है, कुदरती तौर पर इनका कोई महत्व नहीं माना जाता है। कई शोध इस बात का दावा करते है कि सिर्फ बच्चों की खातिर एक ही पार्टनर के साथ लोग जिंदगी गुजार देते है।
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एक साथी के साथ रहना नहीं है इंसानों की फितरत


इंसानी फितरत भी अजीब होती है। वो एक से प्यार करते हुए भी किसी और को भी दिल देने में हिचकता या परेसान नहीं होता है। खासबात ये है कि ये कोई विशेषता बात नहीं है बल्कि ये होना स्वाभाविक होता है। इंसानी फितरत है कि वो किसी के साथ वफादार नहीं हो सकता है। एकपत्नीत्व (Monogamy) पुरुषों या महिलाओं में से किसी के लिये भी अनुशासित तौर पर लागू नहीं होती है।2013 में, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों टीम क्लटन ब्रॉक और डीटर लुकास ने एक रिसर्च किया था। उससे जुड़ी कुछ बातें यहां पर हैं
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  • एक मनोविज्ञान विशेषज्ञ का मानना है कि जब बात वफ़ादारी की होती है तो स्त्री-पुरुष में कोई अंतर नहीं होता है। अक्सर माना जाता है कि पुरुष, महिलाओं की तुलना में एक से अधिक संबंध रखने के इच्छुक होते हैं।
  • मनोवैज्ञानिकों के अनुसार पुरुषों और महिलाएं का स्वाभाविक रूप से कई साथियों के साथ संबंध बनाने का स्वभाव होता है।  किसी और जीव की तुलना में मनुष्य आनुवंशिक रूप से चिम्पांजियों और बोनोबोस के ज़्यादा क़रीब है और इसी वजह से हमारे यौन स्वभाव भी समानता होती है।
  • स्तनधारी जानवरों में प्राइमेट्स यानी बंदर, गोरिल्ला, चिंपैंजी और लंगूर का समूह ऐसा है, जहां 27 फ़ीसदी जानवर एक ही साथी के साथ जीवन बसर करते हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह होती है अपने बच्चों के मारे जाने का डर, जिसके लिए  प्राइमेट्स ने एक साथी के साथ पूरी ज़िंदगी गुज़ारने का फ़ैसला करते है।
  • इंसानों में भी एक जीवनसाथी के साथ ज़िंदगी गुज़ारने के फ़ैसले के पीछे, ये बड़ी वजह हो सकती है। सबको अपनी औलाद की फ़िक्र होती है, उसकी अच्छी परवरिश की चिंता होती है।मतलब साफ़ है, क़ुदरती तौर पर एकल साथी का चलन नहीं है।  मगर सामाजिक सरोकार हमें इस परंपरा की ओर धकेलते हैं।


फिर, भी वैज्ञानिक कहते हैं कि स्तनधारी जीवों में तीन से पांच फ़ीसदी ऐसे होते हैं, जो एक साथी के प्रति वफ़ादार होते हैं।


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