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डिलीवरी के बाद Postpartum Bleeding होना क्यों है खतरनाक? जानें डॉक्टर से सच्चाई

Postpartum Bleeding: प्रेग्नेंसी में डिलीवरी बहुत ही अहम हिस्सा है, इसलिए डिलीवरी के समय महिला की ब्लीडिंग का ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण है। कुछ मामलों में डिलीवरी के समय बहुत ज्यादा ब्लीडिंग हो जाती है और अगर ब्लीडिंग कंट्रोल में न आए, तो इसे पोस्टपार्टम ब्लीडिंग कहते हैं। इस लेख में डॉक्टर ने विस्तार से इसके खतरों के बारे में बताया है।
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डिलीवरी के बाद Postpartum Bleeding होना क्यों है खतरनाक? जानें डॉक्टर से सच्चाई

Postpartum Bleeding: किसी भी महिला के लिए मां बनना बड़ा सुखद अनुभव होता है, लेकिन डिलीवरी के बाद बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होने का रिस्क हमेशा रहता है। इसे पोस्टपार्टम हेमरेज या पोस्टपार्टम ब्लीडिंग कहते हैं। इस कंडीशन में जब महिला को जरूरत से ज्यादा ब्लीडिंग होती है, अगर उस समय सही इलाज न हो, तो महिला की जान तक जा सकती है। दुनियाभर में पोस्टपार्टम ब्लीडिंग के कारण कई महिलाएं अपनी जान गंवा चुकी है। अगर आंकड़ों को देखे, तो WHO के अनुसार, हर साल करीब 45,000 महिलाएं Postpartum Bleeding के कारण अपनी जान गंवा देती हैं। पोस्टपार्टम ब्लीडिंग इतनी खतरनाक क्यों है, यह जानने के लिए हमने नर्चर की आईवीएफ एक्सपर्ट और गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. अर्चना धवन बजाज (Dr. Archana Dhawan Bajaj, Gynaecologist and IVF Expert at Nurture) से बात की।


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पोस्टपार्टम ब्लीडिंग का रिस्क क्यों बढ़ जाता है?

डॉ. अर्चना कहती हैं, “डिलीवरी के बाद महिला का कुछ मात्रा में ब्लीडिंग होना सामान्य है। यह शरीर का नेचुरल प्रोसेस है, जिसमें यूटरस के अंदर बचा हुआ टिश्यू और खून बाहर निकलता है, लेकिन अगर ब्लीडिंग बहुत ज्यादा और लंबे समय तक रहती है, तो उसे पोस्टपार्टम हेमरेज कहा जाता है। इसका रिस्क होने के कई कारण हो सकते हैं।”

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यूटरस का ठीक से सिकुड़ न पाना

सबसे आम कारण होता है कि यूटराइन एटोनी, यानी डिलीवरी के बाद गर्भाशय का सही तरीके से नहीं सिकुड़ना और नॉर्मल डिलीवरी में गर्भाशय के तेज सिकडुन के लिए उस जगह की नसों को दबा देते हैं जहां प्लेसेंटा जुड़ा होता है। इससे ब्लीडिंग रुक जाती है। अगर ये सिकड़न कमजोर पड़ जाते हैं, तो ब्लड तेजी से बहने लगता है।

प्लेसेंटा का पूरा बाहर न निकलना

अगर प्लेसेंटा के कुछ हिस्से यूटरस में रह जाते हैं, तो ब्लीडिंग रुकने के बजाय और बढ़ सकती है। इससे भी पोस्टपार्टम ब्लीडिंग होने का रिस्क बढ़ जाता है। इसलिए डिलीवरी के समय प्लेसेंटा का पूरा बाहर निकलना बहुत महत्वपूर्ण है।

डिलीवरी के दौरान अंदरूनी चोट लगना

नॉर्मल या सिजेरियन डिलीवरी के दौरान बर्थ कैनाल में चोट लगना भी बहुत ज्यादा ब्लीडिंग का कारण बन सकता है। डॉक्टर्स खासतौर पर इस बात का ध्यान रखते हैं कि डिलीवरी के समय किसी भी तरह की चोट महिला को न लगे, ताकि ब्लीडिंग ज्यादा न हो।

यूटरस का फटना

कुछ मामलों में डिलीवरी के समय यूटरस फट जाता है, जिससे गंभीर ब्लीडिंग होने का रिस्क बहुत ज्यादा बढ़ जाता है और कुछ मामलों में यूटरस में पहले से मौजूद ब्लड क्लॉटिंग डिसऑर्डर होने की वजह से भी गंभीर ब्लीडिंग हो सकती है।

पहले से एनीमिया होना 

जिन महिलाओं में पहले से खून की कमी होती है या फिर कुछ मामलों में जुड़वा या तीन बच्चों की प्रेग्नेंसी में भी ब्लीडिंग ज्यादा होने का रिस्क बढ़ सकता है। इसलिए एनीमिया के मामले में महिला के हिमोग्लोबिन पर खास नजर रखी जाती है और जुड़वा बच्चों के केस में हर बात का ख्याल रखा जाता है।

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ज्यादा ब्लीडिंग होने पर क्या होता है?

डॉ. अर्चना के अनुसार, “कई बार भारी ब्लीडिंग शुरू होने से पहले महिला को कमजोरी, बेचैनी, चक्कन आने जैसे लक्षण दिखते हैं, लेकिन अगर ब्लीडिंग अंदरूनी होती है, तो ऐसी कंडीशन में ब्लीडिंग की पहचान करना और भी मुश्किल हो जाता हैं। अगर समय रहते इलाज न मिले तो लगातार ब्लड बहने से महिलाओं को ये नुकसान हो सकते हैं।”

  1. ब्लड प्रेशर अचानक गिर सकता है
  2. शरीर के जरूरी अंगों तक ऑक्सीजन कम पहुंचती है
  3. हाइपोवोलेमिक शॉक एक मेडिकल इमरजेंसी है और समय पर इलाज न मिलने पर जान भी जा सकती है।
  4. लॉन्ग टर्म असर में महिला को गंभीर एनीमिया, बार-बार इंफेक्शन होने का रिस्क रहता है
  5. शरीर का घाव भरने में समय लगना और सर्जरी के जरिए यूटरस तक निकालना पड़ सकता है।

पोस्टपार्टम ब्लीडिंग होने पर क्या इलाज होता है?

डॉ. अर्चना कहती हैं, “ पोस्टपार्टम ब्लीडिंग में हर मिनट की कीमत होती है। इसके शुरुआती इलाज में यूटरस की मालिश, दवाइयां देना ताकि यूटरस सिकुड़ जाए, बचे हुए प्लेसेंटा को हटाना और तुरंत ब्लड चढ़ाना। अगर अस्पताल में ट्रेंड स्टाफ और इमरजेंसी फैसिलिटी मौजूद हो, तो जान बचने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। इसलिए प्रेग्नेंट महिलाओं को सलाह दी जाती है कि वे अपनी डिलीवरी किसी अनुभवी डॉक्टर की देखरेख में ही कराए, जहां सभी इमरजेंसी फैसिलिटी मौजूद हो।”

निष्कर्ष

पोस्टपार्टम ब्लीडिंग उन महिलाओं को ज्यादा होने का रिस्क रहता है, जिन्हें लंबा और तेज लेबर पेन होता है, जुड़वा या मल्टीपल प्रेग्नेंसी है, पहले से पोस्टपार्टम ब्लीडिंग की हिस्ट्री है। इसके अलावा, यह समस्या बिना किसी रिस्क फैक्टर वाली महिलाओं में भी हो सकती है। इसलिए हर प्रेग्नेंट महिला का खास ख्याल रखना चाहिए। डिलीवरी के बाद मां को अकेला नहीं छोड़ा जाना चाहिए और कुछ भी नार्मल न लगे, तो उन लक्षणों को गंभीरता से लेना चाहिए।

 

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  • Dec 15, 2025 18:30 IST

    Published By : Aneesh Rawat

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