Coronavirus: चीन में फैली महामारी के बीच क्‍यों याद आए भारतीय डॉक्‍टर द्वारकानाथ कोटनिस?

चीन में कोरोनावायरस के अब तक 70 हजार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं, इसी बीच वहां भारतीय डॉक्‍टर द्वारकानाथ कोटनिस को भी याद किया जा रहा है।
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Coronavirus: चीन में फैली महामारी के बीच क्‍यों याद आए भारतीय डॉक्‍टर द्वारकानाथ कोटनिस?


दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश, चीन इन दिनों कोरोनावायरस (Coronavirus or COVID-19) का प्रकोप से जूझ रहा है। 2019 nCoV का प्रकोप अब एक वैश्विक संकट बन गया है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO) समेत दूसरी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के साथ अभी भी इस महामारी को लेकर बहस चल रही है। इससे बचाव के उपाय खोजे जा रहे हैं। चीन में नोवेल कोरोनावायरस (Novel Coronavirus in China) से बुधवार तक 2000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा रोजाना के अपडेट के अनुसार, कोरोनावायरस के 1,693 नए मामलों की पुष्टि हो हुई है। चीन में अब तक कुल 74 हजार मामले आ चुके हैं।

चीन में फैले इस भयानक संकट के बीच के भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने चीन राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग (President Xi Jinping) को शोक पत्र भेजते हुए हर संभव मदद की पेशकश की है। वहीं चीन के राजदूत सुन वेइडॉन्‍ग (Sun Weidong) ने कोरोनावायरस (COVID-19) के खिलाफ भारत द्वारा की जा रही मदद से काफी भावुक हैं। उन्‍होंने कहा, "चीन और भारत महामारी पर करीबी संवाद बनाए हुए हैं। हम भारत द्वारा प्रदान की गई एकजुटता और समर्थन की सराहना करते हैं। यह चीन के लिए मुश्किल समय है, ऐसे में भारतीय मित्रों की ओर से की जा रही मदद से काफी भावुक महसूस कर रहा हूं, यह मुझे उस दौर की याद दिला रहा है, जब डॉक्‍टर को‍टनिस ने बड़ी संख्‍या में चीनी नागरिकों की जान बचाई थी, उन्‍होंने चीन के लोगों के मुक्ति अंदोलन में बहुत बड़ा सहयोग दिया था।" राजदूत सुन वेइडॉन्‍ग ने ट्विटर के माध्‍यम से कई बातें साझा की है।

कौन हैं डॉक्‍टर को‍टनिस? 

डॉ द्वारकानाथ शांताराम कोटनिस (Dr.Dwarkanath Shantaram Kotnis) ने 1940 में जापान (Japan) और चीन (China) के बीच हुए युद्ध में घायल चीनी सैनिकों के इलाज में मदद की थी। इसी दौरान उनकी मौत हो गई थी। द्वारकानाथ एस कोटनिस, एक भारतीय डॉक्टर थे, जो महाराष्‍ट्र के सोलापुर में एक मध्यम-वर्गीय परिवार में पैदा हुए थे, भारत की स्वतंत्रता से नौ साल पहले वह 1938 में चीन गए थे। डॉक्‍टर कोटनिस ने मुई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज से ग्रेजुएशन की डिग्री ली और जब वह मास्‍टर्स की तैयारी कर रहे थे तभी नेता जी सुभाष चंद्र बोस की अपील पर मदद के लिए चीन चले गए।

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कोटनिस दूसरे चीन-जापान युद्ध के दौरान घायल और प्लेग से त्रस्त चीनी सैनिकों को स्वास्थ्य सहायता देने के लिए चिकित्सा मिशन का हिस्सा थे।

चीन में प्‍यार और वहीं ली अंतिम सांस

डॉ कोटनिस की प्रतिबद्धता इस तरह की थी कि वे बीमार पड़ गए और अंततः 32 वर्ष की आयु में 1942 में उनकी मृत्यु हो गई। चीन में अपने चार साल के प्रवास के दौरान, डॉ कोटनिस को एक नर्स क्वो क्यूंगलान (Quo Qunglan) से प्यार हो गया, जिसने उनके साथ सैनिकों का इलाज किया। बाद में उन्होंने शादी की और उनका एक बेटा था। 

क्वो क्यूंगलान कई बार कोटनिस के परिजनों से मिलने के लिए भारत आईं। माई लाइफ विद कोटनिस में उन्होंने लिखा है कि भारत के लोग बहुत अच्छे हैं और यह वहां की संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है।

चीन में आज भी हैं हीरो

चीन में आज भी वे लोगों के दिलों में राज करते हैं। वहां लोग आज भी उन्‍हें हीरो मानते हैं। कोटनिस की याद में डाक टिकट जारी हुए हैं। हेबई प्रांत में उनका स्मारक बनाया गया है। 2009 में एक सदी के दौरान चीन के विदेशी मित्रों के इंटरनेट मतदान के दौरान डॉ. कोटनिस को 'शीर्ष 10 विदेशियों' में से एक चुना गया।

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