प्रेग्नेंसी में जिन महिलाओं को समस्या होती है, उनके लिए इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) किसी वरदान से कम नहीं है। आईवीएफ प्रक्रिया में कई चरण को शामिल किया जाता है। आईवीएफ से पहले महिला और पुरुष दोनों को ही कई टेस्ट से गुजरना पड़ता है। इन टेस्ट से डॉक्टर प्रेग्नेंसी के दौरान आने वाले समस्याओं का पता लगाते हैं। साथ ही, उनका समय रहते उपचार किया जाता है। इस विषय पर हमने मुंबई की आईवीएफ स्पेशलिस्ट और स्री रोग विशेषज्ञ डॉ. निशा पानसरे से बात की, तो उन्होंंने आईवीएफ के दौरान किए जाने वाले कुछ जरुरी टेस्ट के बारे में विस्तार से बताया।
आईवीएफ में किए जाने वाले कुछ जरुरी टेस्ट - Test For IVF In Hindi
- हार्मोनल प्रोफ़ाइल मूल्यांकन (Hormone Profile Assessment) : आईवीएफ की तैयारी से पहले डॉक्टर महिला व पुरुष दोनो का ही हार्मोन प्रोफाइल एसेसमेंट कराते हैं। प्रेग्नेंसी में हार्मोन मुख्य भूमिका निभाते हैं और आईवीएफ की सफलता में महत्वपूर्ण होते हैं। आगे जानते हैं हार्मोन प्रोफाइल एसेसमेंट में किन टेस्ट को किया जाता है।
- फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन (एफएसएच) : ओवरियन फॉलिकल के विकास और अंडे की परिपक्वता के लिए एफएसएच आवश्यक है। महिलाओं में हाई एफएसएच का स्तर ओवरियन रिजर्व और प्रीमेच्योर ओवरियन फेलियर की ओर संकेत कर सकता है। इससे आईवीएफ प्रभावित हो सकती है।
- ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (एलएच) : एलएच वृद्धि ओव्यूलेशन को ट्रिगर करती है और पीरियड साइकिल को बैलेंस करने के लिए महत्वपूर्ण है। एलएच स्तर असामान्य होना ओव्यूलेशन के अनियमित होने की ओर संकेत करता है।
- एस्ट्राडियोल : यह एस्ट्रोजन हार्मोन गर्भाशय को भ्रूण प्रत्यारोपण के लिए तैयार करने में सहायक होता है। आईवीएफ के बाद बच्चे को मां के गर्भ में ट्रांसफर करने के लिए इसका लेवल नॉर्मल होना जरुरी होता है।
- टेस्टोस्टेरोन : पुरुषों में स्पर्म काउंट और क्वालिटी के लिए टेस्टोस्टेरोन की जांच की जाती है।
ओवरियन रिजर्व टेस्टिंग (Ovarian Reserve Testing)
एक महिला के अंडों की मात्रा और क्वालिटी को निर्धारित करने में ओवरियन रिजर्व टेस्टिंग का आकलन किया जाता है। ओवरियन रिजर्व टेस्टिंग में किन चीजों पर फोकस किया जाता है।
- एंटी-मुलरियन हार्मोन (एएमएच): एएमएच स्तर बचे ओवरियन रोमों की संख्या को दर्शाता है। कम एएमएच स्तर कम प्रजनन क्षमता का संकेत दे सकता है।
- एंट्रल फॉलिकल काउंट (एएफसी): इसमें अल्ट्रासाउंड के माध्यम से अंडाशय में छोटे रोमों की संख्या की जांच की जाती है।
संक्रामक रोग स्क्रीनिंग (Infectious Disease Screening)
आईवीएफ कराने से पहले, पुरुष व महिला दोनों की उन संक्रामक बीमारियों की पूरी तरह से जांच की जाती है, जो गर्भावस्था को खतरे में डाल सकती हैं या भ्रूण में फैल सकती हैं। इसमें आगे बताए टेस्ट किए जाते हैं।
- एचआईवी (ह्यूमन इम्युनोडेफिशिएंसी वायरस)
- हेपेटाइटिस बी और सी
- स्फिलिस Syphilis
- रूबेला (जर्मन खसरा) इम्यूनिटी
ब्लड टाइप और Rh फैक्टर
गर्भावस्था के दौरान संभावित समस्याओं को रोकने के लिए ब्लड टाइप और आरएच फैक्टर का निर्धारण किया जाता है। यदि महिला Rh-नेगेटिव है और पुरुष साथी Rh-पॉजिटिव है, तो इससे नवजात शिशु में हेमोलिटिक रोग होने की संभावना बढ़ सकती है।
- कंप्लीट ब्लड काउंट (सीबीसी) : व्यक्ति की हेल्थ की जांच करने और उनकी समस्याओं की पहचान करने के लिए सीबीसी टेस्ट किया जाता है। ब्लड से जुड़ी समस्या आईवीएफ प्रकिया व प्रेग्नेंसी को प्रभावित कर सकती है।
आनुवंशिक स्क्रीनिंग (Genetic Screening)
संभावित आनुवंशिक विकारों की पहचान करने के लिए आनुवंशिक जांच महत्वपूर्ण है। बच्चे को आनुवांशिक विकारों से बचाने के लिए महिला व पुरुष दोनों को ही जेनेटिक स्क्रिनिंग से गुजरना पड़ सकता है।
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आईवीएफ की सफलता काफी हद तक ब्लड टेस्ट पर निर्भर करती है। जिन महिला व पुरुषों को रक्त संबंधी या ऊपर बताए टेस्ट में किसी तरह की समस्या नहीं होती है, उनके लिए आईवीएफ प्रक्रिया के तहत गर्भधारण करना आसान हो जाता है।