
सेन्ट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फार यूनानी मेडिसिन के अनुसार अब जल्द ही लगभग लाइलाज माने जाने वाले रोग 'ल्यूकोडर्मा' अर्थात सफेद दाग का अब यूनानी चिकित्सा पद्धति से इलाज संभव हो सकेगा।
हैदराबाद स्थित सेन्ट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट फार यूनानी मेडिसिन (एसआरआईयूएम), सफेद दाग के इलाज की दवा खोजने के बेहद करीब हैं। गौरतलब हो कि देश की तकरीबन 3 प्रतिशत आबादी सफेद दाग (वाइटीलीगो) की समस्या से पीड़ित है। दुख की बात है कि भारत जैसे विकासशील देशों में अभी भी इस रोग को घृणा की दृष्टि से देखा जाता है और इसके प्रति लोगों की एक संकीर्ण मानसिकता बनी हुई है।
एसआरआईयूएम के निदेशक डॉ. एमए वहीद ने इस संदर्भ में कहा कि सफेद दाग के इलाज के केन्द्र में चल रहे शोध के प्रारंभिक निष्कर्ष काफी संतोषजनक रहे हैं। इस शोध के अंतर्गत रोगियों को यूनानी और हर्बल दवाओं का मिश्रण दिया जा रहा है। और अच्छी बात तो यह है कि ये दवाइयां मरीजों पर काफी असर कर रही हैं।
डॉ. वहीद ने बताया ' यूनानी चिकित्सा पद्धति से मलेरिया, हेपेटाइटिस बी और त्वचा संबंधी कई अन्य जटिल बीमारियों का उपचार करना संभव है। यूनानी चिकित्सा पद्धति यूनान से भारत आयी, और इस चिकित्सा पद्धति के लाभ देखते हुए भारतीय चिकित्सकों ने इसे अपनाया तो लेकिन अभी तक यह ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो सकी है।
उन्होंने कहा कि यह दवा सेलिब्रल पल्सी जैसे रोग के उपचार में काफी कारगर है, साथ ही यह दवा एड्स के मरीजों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी कामयाब साबित हो रही है। यूनानी चिकित्सा एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है जो अब धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही है, और अफगानिस्तान, चीन, कनाडा, डेनमार्क, जर्मनी, फिनलैंड सहित करीब 20 देशों में स्थानीय नामों से इसकी पढ़ाई हो रही है और चिकित्सा के साथ शोध भी किए जा रहे हैं। भारत में भी इसके लाभों से लोगों को लाभान्वित होना चाहिए।
चिकित्सा विज्ञान के अनुसार सफेद दाग एक प्रकार का त्वचा रोग है। दरअसल त्वचा के बाहरी स्तर में मेलेनिन नामक एक रंजक द्रव्य मौजूद होता है, जिस पर त्वचा का रंग निर्भर करता है। यह रंजक द्रव्य (मेलेनिन) गर्मी से त्वचा की रक्षा करता है। उष्ण प्रदेशों के लोगों में मेलेनिन की एधिकता होने की वजहसे उनकी त्वचा अत्यधिक काली होती है। ल्यूकोडर्मा होने पर मेलोनिन नामक इस रंजक द्रव्य की कमी से त्वचा सफेद हो जाती है और उसकी कोमलता भी खतम हो जाती है।
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