सर्जिकल एबार्शन के प्रकार

आमतौर पर महिलायें गर्भपात नहीं करवाना चाहतीं। लेकिन, कई बार ऐसी सामाजिक अथवा चिकित्‍सीय स्थिति आ जाती है कि इसके अलावा कोई दूसरा विकल्‍प नहीं बचता। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि एबॉरशन के बारे में सही जानकारी हो। समय के अनुसार गर्भपात का तरीका और प्रकार बदलता रहता है। और इन सब बातों का ध्‍यान रखना जरूरी होता है।
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सर्जिकल एबार्शन के प्रकार


गर्भपात, गर्भावस्‍था का समय से पहले समाप्‍त हो जाना है। आपात स्थिति में हुआ गर्भपात (जिसे मिसकैरेज भी कहा जाता है) स्‍वत: होता है। वहीं, कई बार ऐसी परिस्थिति भी आ जाती है, जब गर्भावस्‍था को जानबूझ कर समाप्‍त किया जाता है और भ्रूण को गर्भाशय से निकाल लिया जाता है। ऐसा या तो सर्जरी अथवा दवाओं के जरिये किया जाता है।

यूं तो आमतौर पर कोई भी महिला अपनी खुशी से गर्भपात नहीं करवाती है, लेकिन कई बार ऐसी स्थिति बन जाती है कि उसके लिए इसके अलावा कोई दूसरा विकल्‍प नहीं बचता। ये परिस्थितियां कई बार सामाजिक होती हैं और कई बार चिकित्‍सीय कारणों से ऐसा करना जरूरी हो जाता है। गर्भपात के लिए दवाओं अथवा सर्जरी का सहारा लिया जाता है। यह पूरी तरह महिला और भ्रूण की स्थिति के आधार पर तय किया जाता है कि कौन सा विकल्‍प अपनाया जाए। यहां हम शल्‍य पद्धति यानी सर्जरी के जरिये गर्भपात के विकल्‍पों और उनकी कार्यप्रणाली को समझने का प्रयास करेंगे।



जानबूझ कर करवाये जाने वाला गर्भपात दो प्रकार के होते हैं - सर्जरी और केमिकल
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सर्जरी से गर्भपात करवाये जाने की प्रक्रिया

1. डिलेटर (धातु की छड़ी) के जरिये मेनुअल वैक्‍युल एसपिरेशन

आखिरी मा‍हवारी के सात सप्‍ताह के भीतर गर्भाशय ग्रीवा को इतना चौड़ा किया जाता है कि उसमें से गर्भपात के लिए जरूरी उपकरण आसानी से पास हो जाएं। ट्यूबिंग के साथ हाथ से पकड़ी जा सकने वाली सीरिंज लगाकर उसे गर्भाशय में प्रवेश कराया जाता है। इसी की मदद से भ्रूण को बाहर खींचा जाता है।

2. सक्‍शन क्‍योरटेज: अंतिम माहवारी के 14 सप्‍ताह के भीतर

इस प्रक्रिया के जरिये गर्भपात करने के लिए धातु की छड़ी और लेमिनारिया (laminaria) के जरिये गर्भाशय ग्रीवा को खोला जाता है। लेमिनारिया एक प्रकार की समुद्री घास की राख को कहते हैं। पूरी प्रक्रिया शुरू होने के घंटों पहले इस घास को महिला के गर्भाशय में प्रवेश कराया जाता है। यह धीरे-धीरे सारा पानी सोख लेती है और ग्रीवा को चौड़ा करने में मदद करती है। एक बार जब गर्भाशय ग्रीवा चौड़ी हो जाती है, तो गर्भपात करने वाला डॉक्‍टर ट्यूबिंग को महिला के गर्भाशय में प्रवेश कराता/ कराती है। और इस ट्यूबिंग को सक्‍शन मशीन के साथ जोड़ देता है। सक्‍शन से पैदा हुआ दबाव भ्रूण को गर्भाशय से बाहर खींच लेता है। इस प्रक्रिया के बाद डॉक्‍टर और नर्स, भ्रूण के टुकड़ों को एकत्रित करते हैं। वे इस बात को लेकर पूरी तरह आश्‍वस्‍त होना चाहते हैं कि कहीं भ्रूण का कोई हिस्‍सा बचा हुआ न रह गया हो।

3. डी एंड सी (डिलेशन और क्‍योरटेज): पहले 12 सप्‍ताह के भीतर

इसमें गर्भाशय ग्रीवा को चौड़ा किया जाता है। एक सक्‍शन डिवस को गर्भाशय ग्रीवा पर लगाकर भ्रूण और नाल को हटाया जाता है। इसके बाद गर्भपात करने वाला डॉक्‍टर एक पाश आकार का एक छोटा चाकू गर्भाशय में प्रवेश कराता है। इस छोटे से चाकू की मदद से डॉक्‍टर भ्रूण के बचे हुए किसी हिस्‍से को खरोंचकर साफ करता है। और साथ ही नाल को भी गर्भाशय से बाहर निकालता है।

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4. डी एंड ई (डिलेशन और एवेक्‍यूशन): आखिरी माहवारी से 13 से 24 सप्‍ताह के भीतर

11वें और 12वें सप्‍ताह की गर्भावस्‍था के बीच भ्रूण अपना आकार दोगुना कर लेता है। 16वें सप्‍ताह से नाजुक हड्डिया मजबूत होनी शुरू हो जाती हैं। इससे भ्रूण इतना बड़ा हो जाता है कि उसका सक्‍शन ट्यूब से पास हो पाना मुश्किल हो जाता है। इस दौरान डी एंड ई प्रक्रिया अपनायी जाती है। इसमें लेमिनारिया को गर्भपात से एक या दो दिन पहले ही प्रवेश कराया जाता है। ऐसा करने के पीछे उद्देश्‍य यही होता है कि गर्भाशय-ग्रीवा को भ्रूण के आकार से अधिक चौड़ा किया जा सके। इसके बाद गर्भपात करने वाला डॉक्‍टर भ्रूण को काटता और छांटता है और इसके बाद वैक्‍यूल मशीन से बचे हुए हिस्‍से को बाहर खींच लेता है। क्‍योंकि इस दौरान तक भ्रूण का सिर काफी बड़ा हो चुका होता है, और उसे ट्यूब के जरिये बाहर खींच पाना आसान नहीं होता, इसलिए उसे कई संदंश से तोड़ लेना चाहिये। इसके टुकड़ों को बहुत सावधानी से इकट्ठा करना चाहिए क्‍योंकि भ्रूण की टूटी हुई खोपड़ी के दांतेदार, तेज टुकड़े गर्भाशय ग्रीवा को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

5. सालाइन (Saline)

इस प्रक्रिया को एमनिओसेंटेसिस (amniocentesis) की तरह ही किया जाता है। एमनिओसेंटेसिस एक जांच होती है, जिसमें भ्रूण को होने वाली संभावित क्रोमोसोनल अनियमितताओं का निदान किया जाता है। महिला के पेट में एक बड़ी सुई एमनियोटिक थैली में प्रविष्‍ट करवायी जाती है। यहां आकर सालाइन गर्भपात और एमनिओसें‍टेसिस में अंतर शुरू होता है। गर्भपात मे, महिला के शरीर में एमनिओटिक द्रव को तेज सालाइन यानी खारा द्रव से बदला जाता है। जब भ्रूण के फेफड़े इस द्रव को सोख लेते हैं, तो उसका दम घुटने लगता है। वह संघर्ष और आक्षेप करने लगता है। यह खारा सॉल्‍शुन बच्‍चे की त्‍वचा की बाहर परत को भी जला देता है। सालाइन गर्भपात के जरिये भ्रूण को नष्‍ट करने में एक से छह घंटे का समय लग सकता है। महिला को करीब 12 घंटे बाद प्रसव शुरू होता है। और डिलिवरी में 24 घंटे का समय लग सकता है। क्‍योंकि यह प्रक्रिया काफी लंबी है, इसलिए कई बार महिला को लेबर पर अकेला ही छोड़ दिया जाता है।

6 प्रोस्‍टेग्‍लैंडिन : गर्भावस्‍था के 15 सप्‍ताह बाद

इस प्रकिया को सालाइन की तरह ही किया जाता है। लेकिन इसमें प्रोस्‍टेग्‍लैंडिन (हॉर्मान जो महिला में प्रसव शुरू करने का कारण होता है) सालाइन की जगह ले लेता है। प्रोस्‍टेग्‍लैंडिन संकुचन को बढ़ावा देता है। इससे काफी दर्दनाक और तीव्र प्रसव होता है। ऐसे मामले सामने आ चुके हैं कि जब संकुचन सही प्रकार से न होने से मां के गर्भाशय को काफी नुकसान पहुंचा है। आमतौर पर इस प्रक्रिया को नहीं अपाया जाता क्‍योंकि इसमें भ्रूण के जीवित जन्‍म लेने की संभावना 40 फीसदी अधिक होती है।

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7. हाइस्‍टेरोटोमी : 18 सप्‍ताह के बाद

यह प्रक्रिया सिजेरियन सेक्‍शन की तरह ही होती है। लेकिन, इसमें सिजेरियन के उलट बच्‍चे की जान बचाने की कोई मंशा नहीं होती। आमतौर पर बच्‍चे के मुंह पर गीला तौलिया डाल दिया जाता है ताकि वह सांस न ले पाये। मुख्‍य रूप से इसमें भ्रूण को जीवित न रखने के ही प्रयास किये जाते हैं।

 

अलग-अलग देशों मे गर्भपात को लेकर अलग-अलग कानून है। गर्भपात को लेकर भारत में भी कई कानून हैं। ये कानून इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि किसी भी पक्ष की अनदेखी न हो। इसलिए गर्भपात करवाने से पहले पुख्‍ता चिकित्‍सीय कारणों के साथ-साथ कानूनी पहलुओं की भी अच्‍छी तरह से जांच कर लें।

आयरलैंड में रहने वाली इस भारतीय मूल की डॉक्‍टरसविता हलप्‍पनवार की जान वहां के गर्भपात संबंधी कानून के चलते गयी। सविता की मौत से पहले आयरलैंड में गर्भपात संबंधी कानून नहीं थे। 31 वर्ष की सविता को 17 हफ्ते का गर्भ था। प्रेगनेंसी के दौरान ही सविता को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। पहले से ही उसके गर्भपात होने की आशंका जताई जा रही थी। इसी वजह से सविता को आरयलैंड के गैलवे यूनिवर्सिटी अस्पताल में भर्ती कराया गया। इन हालातों में सविता को काफी दर्द का सामना करना पड़ रहा था। डॉक्टरों को भी ये पता था कि अब सविता के गर्भ में पल रहे बच्चे को बचाया नहीं जा सकता। उन्हें ये मालूम था कि अगर जल्द ही सविता का अबॉर्शन नही किया गया तो उसकी भी जान जा सकती है। बावजूद इसके डॉक्टरों ने सविता का ऑपरेशन नहीं किया। नतीजा, सविता की अस्पताल में ही तड़प-तड़प कर मौत हो गई। इसके बाद आयरलैंड में कानून बदले, लेकिन सविता हमेशा के लिए चली गयी।

 

Image Courtesy- Getty Images

 

 

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