
नवीन से निहारिका बने इस लड़के की कहानी में समाज का वो छिपा क्रूर चेहरा दिखाई देता है, जो एक इंसान को आत्महत्या के मुहाने तक जाने पर मजबूर करता है।
"मेरा जन्म एक लड़के के रूप में हुआ था लेकिन मुझे बचपन से लड़कियों की तरह तैयार होना पसंद होना था। घर में छुप-छुप कर मम्मी की लिप्स्टिक लगाना, उनकी साड़ी पहनना, बालों को सजाना, गुड़िया के साथ खेलना, दुपट्टा ओढ़ना....तब मैं छोटी थी इसलिए घर वालों को लगता था कि बड़ा होगा तो सुधर जाएगा। लेकिन मेरी लड़कियों की तरह तैयार होने की इच्छा बड़े होकर भी नहीं बदली। घर वालों ने बहुत मारापीटा भी, लेकिन मैं खुद के लिए कुछ नहीं कर पा रही थी। फिर एक दिन मैंने अपना जेंडर चेंज करा लिया।" ये कहानी है दिल्ली में रहने वाले नवीन की, जो अब निहारिका नाम से जानी जाती हैं। नई पहचान के साथ अपने लिया नया नाम नवीन उर्फ निहारिका ने खुद चुना है। ओन्ली माई हेल्थ से खास बातचीत में निहारिका ने बताया कि उन जैसे लोगों को समाज की मुख्य धारा में एडजस्ट होने में उन्हें किन संघर्षों का सामना करना पड़ा। निहारिका के अलावा हमने कुछ एक्सपर्ट्स से बातचीत करके भी जेंडर चेंज के रास्ते में आने वाली जटिलताओं को समझाने का प्रयास किया है। सबसे पहले जानते हैं निहारिका की कहानी।
बचपन से ही निहारिका थीं अलग
18 साल की निहारिका का कहना है कि उन्हें 5वीं कक्षा से ये एहसास होने लगा था कि वो बाकियों से अलग हैं। उन्होंने बताया, "मुझे खुद को महसूस होता था कि अगर ऊपर वाले ने मुझे एक लड़का ही बनाया है तो मेरे अंदर लड़कों वाली फीलिंग्स क्यों नहीं हैं? बचपन में तो मुझे कुछ मालूम ही नहीं था। बचपन में घर वालों को लगता था कि बच्चा है बड़ा होगा तो ठीक हो जाएगा, पर उनको नहीं पता था कि मेरे अंदर बचपन से ही लड़कियों वाली चीजें हैं। मैं बड़ी हो रही थी और किशोरावस्था में एक लड़की के शरीर में जो बदलाव आने चाहिए वो मेरे अंदर भी आ रहे थे। मैं चाहकर भी उन बदलावों को छुपा नहीं सकती थी। जब मैं 10वीं क्लास में थी तब मेरे ब्रेस्ट में इंप्रूवमेंट आने लगा था। उस इंप्रूवमेंट को मैं रोक नहीं सकता था। तब मेरी क्लास की ही टीचर ने नोटिस किया। फिर उन्होंने पर्सनली मुझसे बात की और कहा कि लड़कों से थोड़ा बचके रहना। मेरी टीचर ने मुझे अंदर से कुछ पहनने की सलाह दी। फिर मैंने ढीले कपड़े पहनने शुरू किए।" निहारिका ने बताया कि स्कूल में भी लड़के मुझे लड़की बोलकर मेरा मजाक बनाते थे।
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घर में मुझे नंगा करके पीटा गया
जब तक निहारिका छोटी थी तब तक तो घर वालों ने उसकी सारी हरकतों को बचपने में निकाल दिया, लेकिन बड़े होकर भी निहारिका के अंदर लड़की वाली चीजें देखकर घरवालों को लगता था कि यह लड़की बनने का नाटक कर रहा है। निहारिका ने बताया, "लेकिन मैं नाटक नहीं करता था। मेरा लड़कियों की तैयार होने का मन करता था। जब भी मैं पापा के साथ कहीं बाहर जाती थी तो लोग मेरी चाल देखकर पापा से पूछते कि यह तुम्हारी लड़की है या लड़का। निहारिका के शरीर में जो बदलाव हो रहे थे उन्हें उसके मोहल्ले वाले भी नोटिस भी करते और घर तक भी ये बात पहुंचती थी। इन्हीं सब बातों को सुनकर एक दिन पापा ने मुझे खूब मारा और इतना मारा कि मेरा शरीर नंगा करके मारा। मेरे शरीर पर निशान पड़ गए थे।" निहारिका ने इस घटना के बाद एक दिन घरवालों को कह दिया कि वह भीतर से लड़की ही हैं।
बहुत बार सुसाइड करने के बारे में सोचा
निहारिका ने बताया कि, "जब स्कूल के लड़कों को मेरे शरीर के उभार समझ आने लगे थे तब उन्होंने मुझे बहुत तंग किया। मैं स्कूल में बहुत बुरी तरीके से मोलेस्ट हुई थी। लड़के मजाक में मुझे 'छक्का' कहते थे। उस समय मुझे बुरा लगता था। घर में घर वाले मारते पीटते थे। स्कूल में बच्चे परेशान करते थे। ट्यूशन में ट्यूशन वाले परेशान कर रहे थे। मोहल्ले में मोहल्ले वाले परेशान कर रहे थे। मैं किस-किस को जवाब देती। मैं लोगों के सवालों से परेशान हो गई। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मेरे साथ ही ये सब क्यों हो रहा है। मैं भी बाकियों की तरह ही दिखती हूं। फिर मेरे साथ इतना भेदभाव क्यों। मैं बिल्कुल अकेली थी। किसी से बात नहीं करती थी। बंद कमरे में अकेली पड़ी रहती थी। अपने में ही घुटती रहती थी। ऐसी स्थिति में मैंने बहुत बार आत्महत्या के बारे में भी सोचना शुरू कर दिया था।। कई बार सोचा कि छत से कूद जाऊं। खुद को लेकर सोचती थी कि ऐसी जिंदगी जीने से क्या फायदा। जब न कोई प्यार करता है और न ही कोई मेरी परेशानी समझ सकता है। मुझे लगने लगा था कि मरने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।" निहारिका के साथ जो बीत रहा था उससे वह मेच्योर होती गईं और यह समझ समझ चुकी थीं कि उनका शरीर लड़के का है और आत्मा लड़की की। यही सब सोचकर वह खुद को समझा लेती थीं।
घर वालों ने की थी लड़का बनाने की कोशिश
दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई कर रहीं निहारिका ने बताया कि "जब मेरे परिवार को पता चला कि मैं लड़के के शरीर में एक लड़की हूं तो मुझे घर में छुपा लिया गया। मेरा घर से बाहर निकलना बंद करा दिया। रिश्तेदारों के सामने तो आज भी नहीं ले जाते। मुझे वापस लड़का बनाने के लिए मेरे पापा मुझे डॉक्टर के पास ले गए और मेरे अंदर लड़के वाले हार्मोन बनाने वाली दवा चलवाई। क्योंकि मेरे अंदर नेचुरली लड़की वाले हार्मोन बन रहे थे। तो मैंने डॉक्टर को एक ही जवाब दिया कि आप इन दवाइयों से मेरे शरीर को बदल सकते हो, मेरी आत्मा और मेरी रूह को नहीं बदल सकते। ये कोई बीमारी नहीं है। लेकिन फिर भी मेरी दवाइयां चलीं। मैंने उन्हें खाया, लेकिन उनका कोई फायदा नहीं हुआ। उन दवाइयों से मेरा शरीर बदल सकता था, मेरी सोच, रूह को नहीं बदल सकती थी। मैं जैसा था मैंने खुद को वैसा ही स्वीकार किया।"
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सर्जरी का लिया फैसला
जब निहारिका को यह समझ आ गया था कि वो एक गलत बॉडी में हैं तब उन्होंने फैसला किया सर्जरी करवाने का। इस फैसले में परिवार ने भी साथ दिया। निहारिका ने बताया कि, "मैंने 2020 के एंड में सर्जरी करवाई और अभी सर्जरी करवाए छह महीने ही हुए हैं। और अब मैं एक लड़का नहीं बल्कि एक लड़की हूं। अब डॉक्यूमेंट में मेल से फीमेल करवाना है।" आज वे परिवार के साथ ही रहती हैं। निहारिका का कहना है कि अब उनके पापा पूरे मोहल्ले के सामने कहते हैं कि ये मेरी बेटी है।
मॉडलिंग की तैयारी कर रही हैं निहारिका
निहारिका का कहना है कि, "मैं नहीं चाहती कि मुझे कोई थर्ड जेंडर से पहचाने। मेरी सर्जरी थर्ड जेंडर में नहीं है। अब मैं पूरी तरह से एक लड़की हूं। दूसरा मैं चाहती हूं कि दुनिया में मेरी पहचान मेरे जेंडर की वजह से न हो। बल्कि मेरे काम से मेरी पहचान हो।" निहारिका अब पढ़ाई के साथ-साथ मॉडलिंग की भी तैयारी कर रही हैं। वे बताती हैं कि मॉडलिंग के लिए वे अपने दोस्तों से फोटो शूट कराती हैं और अपने इंस्टाग्राम पर पोस्ट करती हैं।
डॉक्टर से समझें- कैसे होती है जेंडर चेंज सर्जरी?
राजस्थान के भीलवाड़ा के ब्रिजेश बांगर मेमोरियल हॉस्पिटल के कंसल्टेंट प्लास्टिक सर्जन डॉ. अखिल चौहान ने जेंडर की सर्जरी की प्रक्रिया के बारे में बताया। उन्होंने बताया, "सबसे पहले इच्छुक व्यक्ति को लीगल प्रॉसेस (कानूनी प्रक्रिया) पूरा करना होता है। फिर व्यक्ति के कुछ मेडिकल टेस्ट होते हैं और मनोचिकत्सक काउंसलिंग करता है। इन टेस्ट्स और काउंसिलिंग के आधार पर तय किया जाता है कि क्या वाकई कोई व्यक्ति जेंडर चेंज कराने के लिए तैयार है। इसके बाद जिस जेंडर में पेशेंट को बदलना है उस जेंडर के हार्मोन डाले जाते हैं। अंत में सर्जरी होती है, जिसमें ब्रेस्ट और यौन अंगों के बदलाव के लिए सर्जरी की जाती है। अगर व्यक्ति चाहे तो अपनी इच्छानुसार चेहरे, हड्डी, नाक या वोकल कॉर्ड आदि की सर्जरी भी करवा सकता है।
साइकोलॉजिस्ट का इस विषय में क्या मानना है?
दिल्ली विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग की सेवानिवृत्त प्रोफेसर और प्राइवेट प्रैक्टिशनर मनोवैज्ञानिक डॉ. अरुणा ब्रूटा का कहना है, "जब किसी में कोई बदलाव आता है तो वह हार्मोनल इंबैलेंस की वजह से आता है। अगर किसी में लड़की वाली फीलिंग आ रही है तो उसमें लड़के वाले हार्मोन कम होते हैं और अगर किसी में लड़के वाली फीलिंग कम आ रही होती है तो उसमें लड़की वाले हार्मोन ज्यादा होते हैं। इसलिए उनमें उस जेंडर के बदलाव दिखते हैं। हमारा समाज ऐसे बच्चों को स्वीकारता नहीं है और उन्हें धिक्कारता है। यही वजह है कि जब माता पिता बच्चे में आ रहे उन बदलावों को स्वीकार नहीं करते हैं तब उसमें विद्रोह की भावना आती है। उसमें डर, गुस्सा आ जाता है। इसलिए जरूरी है कि माता-पिता बच्चे से ज्यादा प्यार करें समाज से नहीं।" डॉ. ब्रूटा का कहना है कि माता पिता को बच्चे को स्वीकारना होगा ताकि वह खुद को बेहतर तरीके से एडजस्ट कर पाएं। समाज की परवाह करके उस बच्चे को डांटकर उसे आइडेंटिटी क्राइसिस में न लाएं।
आज निहारिका की तरह न जाने कितने बच्चे हैं जो इस तरह के बदलावों से जूझ रहे हैं लेकिन किसी को अपनी परेशानी बता नहीं पाते। वे अकेले ही घुटते रहते हैं। ज्यादातर मामलों में जब उनकी परेशानी कोई समझता नहीं है तो वे घर छोड़ देते हैं। लेकिन निहारिका ने ऐसा नहीं किया और परिवार को अपनी पहचान बताने में सफल रहीं और परिवार के साथ ही रह रही हैं। निहारिका ने ओन्ली माई हेल्थ के माध्यम से सभी से अपील की कि, "मेरे जैसे न जानें कितने बच्चे हैं जो मेरे जैसी परेशानी झेल रहे हैं। कभी भी अपने बच्चे को खुद से दूर मत करना। ये सब चीजें कुदरती होती हैं, ये कोई जानबूझकर नहीं करेगा। इस दुनिया जो भी आता है एक मकसद से आता है। मैं भी खुद को खोज रही हूं।"
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