विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ)का आकलन है कि वर्ष 2020 तक, मानसिक अवसाद विश्व भर में अपंगता का सबसे बड़ा कारण होगा। उसका यह भी कहना है कि 2025 तक मानसिक विकार सबसे बड़ी वैश्विक स्वास्थ्य चिंता के तौर पर हृदय रोगों के या तो बराबर आ जाएगा, या उससे भी आगे निकल सकता है। कई रिपोर्ट्स और रिसर्च बताती है कि कई मानसिक रोगी खुद इस बात से अनजान होते है कि उन्हे इस तरह कि कोई समस्या है। मानसिक रोग से संबंधित लक्षणों को अपने स्वभाव का हिस्सा समझ कर वे इसे नजरदांज कर देते है जो कि खतरनाक होती है।
- विश्व स्वास्थय संगठन के मेंटल हेल्थ ऐटलस के मुताबिक भारत के लोक स्वास्थय प्रणाली और मानसिक स्वास्थ्य पर सरकार स्वास्थ्य बजट का 0.06% खर्च करती है। अमेरिका जीडीपी का 6.2% मानसिक स्वास्थय पर खर्च करता है। इंग्लैंड 10.82% मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करता है। यहां तक कि बांग्लादेश भी भारत से अधिक 0.44% खर्च करता है। विश्व स्वास्थय संगठन के अनुसार भारत में साढ़ें तीन लाख लोगों पर 3500 मनोचिकित्सक है। जबकि अमेरिका में 12837 लोगों के लिए एक मनोचिकित्सक है।
- यूनाइटेड स्टेट्य के हर पांच मे से एक व्यक्ति यानि तकरीबन 20 फीसदी लोगो में मानसिक विकार का शिकार पाया गया है। यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल और प्रीवेंशन की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार आत्महत्या के मामले में भी पिछले 15 सालों में 24 फीसदी की बढत ये 10वें नंबर पर रैंक करता है।
- मानसिक रोग से जुड़ी एक संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल अमरीका में 8 से 15 की उम्र के जिन बच्चों को मानसिक रोग था, उनमें से करीब 50 प्रतिशत बच्चों का इलाज नहीं करवाया गया। और 15 से ऊपर की उम्र के करीब 60 प्रतिशत लोगों का इलाज नहीं हुआ। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, मानसिक रोग के शिकार बहुत-से लोग इलाज करवाने से कतराते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि लोग उनके बारे में न जाने क्या सोचेंगे।
- इंडोनेशिया मानव अधिकार आयोग की ओर से एक रिपोर्ट के अनुसार यहां के लोग मानसिक रूप से बीमार होने को श्राप या किसी बुरी आत्मा का साया मानते हैं। यहां मानसिक रूप से बीमार लोगों के साथ उनके परिवार वाले भी दुर्व्यवहार करते हैं। साथ ही इनकी देख-रेख करने वाले ही इनका मानसिक और यौन शोषण करते हैं। इस स्थिति को 'पासुंग' कहा जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, 1977 में ही इसे प्रतिबंधित कर दिया गया था लेकिन फिर भी तब से लेकर अभी तक ऐसे 57,000 मामले सामने आ चुके हैं।
निमहांस के एक अध्ययन में पाया गया है कि एक सामान्य चिकित्सक को दिखाने जाने वाले 35 प्रतिशत से अधिक रोगी मनोचिकित्सकीय चिंताएं दर्शाते हैं। ये एक खतरनाक आकड़े को दर्शाता है।
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