
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की हालिया रिपोर्ट में बताया गया कि बिहार, मध्य प्रदेश, मेघालय, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में 10 फीसदी से अधिक लोग मोटापे से पीड़ित पाए गए हैं। नई दिल्ली के वसंत कुंज स्थित फोर्टिस फ्लाइट लेफ्टिनेंट राजन ढल हॉस्पिटल, (एफएचवीके) के निदेशक, एमएएस, बेरियाट्रिक एंड जीआई सर्जरी डॉ. रणदीप वाधवा ने कहा, “पिछले एक वर्ष के दौरान ऐसे कई मामले देखे गए हैं जहां पटना के मरीजों का बीएमआई 40 से अधिक रहा है।
ऐसे मरीजों को व्हीलचेयर के अलावा भी सपोर्ट की जरूरत होती है और वे मोटापा जनित कई रोगों से ग्रस्त होते हैं। मैं जब भी पटना आता हूं तो मुझे कम से कम 25 ऐसे मरीज देखने को मिलते हैं जिन्हें मोटापे के लिए तत्काल सर्जरी की जरूरत होती है।” डॉ. वाधवा के मुताबिक, “जब मैं पटना टियर 2 एवं 3 शहरों के मरीजों में 40 से अधिक बीएमआई देखता हूं तो मुझे तकलीफ होती है। करीब एक दशक के पहले बहुत कम मरीज वजन कम करने की प्रक्रियाओं का विकल्प चुनते थे लेकिन पटना में हमने जिन मरीजों का बेरियाट्रिक सर्जरी के माध्यम से उपचार किया उनका औसत बीएमआई 44 के करीब था जो चिंता की बात है।”
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उन्होंने कहा, “टाइप 2 डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, मेटाबॉलिक सिंड्रोम, नींद में बाधा, माइग्रेन और अवसाद अब घरों में प्रचलित नाम बन गए हैं जो बड़े पैमाने पर पटना के लोगों को प्रभावित कर रहे हैं।” राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4ए) में पाया गया कि पिछले एक दशक के दौरान देश में अधिक वजन वाले पुरुषों की संख्या दोगुनी हो गई है। महिलाओं के मामले में प्रत्येक पांच में से एक महिला का वजन अधिक है (20 फीसदी)। हालांकि ज्यादातर मामलों में मोटापा शहरी उच्च एवं मध्यम वर्गीय परिवारों को प्रभावित करता है लेकिन ग्रामीण आबादी में भी ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती दिख रही है।
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दुनिया भर के बच्चों में भी मोटापा बढ़ रहा है। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे भी मोटापे से पीड़ित पाए जा रहे हैं। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट बताती है कि पांच वर्ष से कम उम्र के मोटे और अधिक वजन वाले बच्चों की संख्या 1990 के बाद से दोगुनी होकर 1.03 करोड़ हो गई है। इसके लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। शारीरिक गतिविधि की कमी, जंक फूड, शुगरी ड्रिंक्स इत्यादि।
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