लेफ्टिनेंट जनरल शौकीन चौहान: जासूसी की दुनिया में कई ऐसी कहानियां होती है, जो इतिहास के पन्नों में गुम हो जाती है। ऐसे बहादुर वीरों को न तो कभी कोई भारतीय जान पाता है और न ही सरकार उन्हें किसी तरह का सम्मान देती है। उनका जीवन सिर्फ अकेलेपन में बीतता है क्योंकि दुश्मन मुल्क में अकेले जीना और मरना पड़ता है। इसके बावजूद वह अपने देश के प्रति वफादारी पूरे ईमान के साथ निभाते हैं। ऐसी एक कहानी है रवींद्र कौशिक की, जिन्हें भारत का ब्लैक टाइगर कहा जाता है। उनकी अनसुनी कहानी पर हर भारतीय को गर्व होता है। भारत रक्षा पर्व की इस पहल में आज रवींद्र कौशिक की अनसुनी कहानी बता रहे हैं, जिन्हें बेहद दर्दनाक मौत मिली लेकिन उन्होंने उफ्फ तक नहीं की।
रवींद्र कौशिक की रॉ में भर्ती
राजस्थान के श्रीगंगानगर में जन्मे रवींद्र कौशिक ने एक ऐसी जिंदगी का चुनाव किया, जहां उनका नाम, धर्म और यहां तक कि पहचान तक मिटा दी गई। बात हो रही है, 1970 से 1980 के दशक की, जिसमें भारत और पाकिस्तान में तनाव चरम सीमा पर था। साल 1962 और 1965 के युद्ध के बाद तो दोनों देश एक दूसरे के दुश्मन हो गए थे। ऐसे में भारत के RAW (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) को ऐसे जासूसों की तलाश थी, जो दुश्मन देश में जाकर लोगों के बीच घुल-मिल सकें और बिना किसी शक के वहां के महत्वपूर्ण दस्तावेज भारत में पहुंचा सके। रॉ को इस अभियान में रवींद्र कौशिक जैसा हीरा मिला।
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एक आम लड़के से असाधारण जासूस बनने का सफर
रवींद्र कौशिक का जन्म साधारण परिवार में हुआ था। बचपन में उनके सपने भी आम लोगों की तरह ही थे, लेकिन उनमें अभिनय की एक अद्भुत कला थी, जो उन्हें भीड़ से अलग करती थी। कॉलेज के दिनों में मंच पर हाव-भाव बदलकर किरदारों को जीवंत करना उन्हें बहुत पसंद था। लोगों के बीच भी उनकी यही पहचान बन गई थी। इसी अभिनय क्षमता के चलते रॉ का ध्यान रवींद्र कौशिक की तरफ गया। रॉ ने रवींद्र को 1970 के दशक में कई तरह की ट्रेनिंग दी और फिर उन्हें जीवन की सबसे मुश्किल भूमिका मिली। इसमें उनका नाम, धर्म, और भारतीयता सब खोना पड़ा। उन्हें पाकिस्तान में वहां का नागरिक बनाकर भेजा गया। उन्हें नमाज पढ़ने से लेकर सटीक उर्दू बोलने की ट्रेनिंग दी गई। उन्होंने इस्लाम के बारे में पढ़ा, खतना कराया और खुद को कई महीनों तक अकेले रखकर अपनी पहचान को भुला दिया। रवींद्र कौशिक को नबी अहमद शाकिर नाम मिला।
रवींद्र कराची की यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई करने के बाद सेना में भर्ती हो गए और सेना के ऊंचे पद पर भी पहुंच गए। वहां उन्होंने पाकिस्तानी महिला से शादी करके पिता भी बने। उन्होंने कभी भी अपनी पहचान उजागर नहीं होने दी।
ब्लैक टाइगर ने कई जानकारियां भारत में पहुंचाई
साल 1979 से लेकर 1983 तक रवींद्र कौशिक ने कई महत्वपूर्ण सूचनाएं भारत में पहुंचाई जिसका फायदा भारत को मिल रहा था। कहा जाता है कि रवींद्र की सूचनाएं सीधे भारत के प्रधानमंत्री को दी जाती थी। भारत के रॉ ने रवींद्र को ब्लैक टाइगर का कोड दिया था लेकिन एक गलती ने रवींद्र को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया।
एक गलती रवींद्र के लिए भारी पड़ी
जासूसी की दुनिया में कब क्या हो जाए, पता ही नहीं चलता। रवींद्र के मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ। काफी समय से रवींद्र की तरफ से कोई जानकारी नहीं आ रही थी, तो साल 1983 में भारत सरकार ने फैसला लिया और रॉ ने नया एजेंट पाकिस्तान भेजा। वह एजेंट इतना प्रशिक्षित नहीं था और पाकिस्तान सेना ने उसे पकड़ लिया। जब उसे यातनाएं दी गई तो उसने न सिर्फ अपने बारे में बताया बल्कि रवींद्र कौशिक की भी पोल खोल दी। रवींद्र कौशिक को तुरंत गिरफ्तार करके मृत्युदंड दिया गया, जिसे बाद में उम्रकैद में बदल दिया गया।
उन्हें सियालकोट की जेल में अकेले अपना पूरा जीवन बिताना पड़ा, जो बड़ा दर्दनाक था। वह जिस मेंटल टॉर्चर से गुजर रहे थे, उसे समझना बहुत मुश्किल है लेकिन उन्होंने अपने देश की निष्ठा में कोई कमी नहीं आने दी। मां अमला देवी ने सालों तक दिल्ली के कई चक्कर काटे लेकिन कोई खबर नहीं मिली। साल 2001 में टीबी की वजह से जेल के अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया और इस तरह एक बहादुर जासूस की दर्दनाक कहानी का अंत हो गया।
(यह कहानी भारत रक्षा पर्व की एक पहल है)
लेखक- लेफ्टिनेंट जनरल शौकीन चौहान (PVSM, AVSM, YSM, SM, VSM, PhD)
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