भारत रक्षा पर्व: जिसकी शहादत ने कश्मीर को भारत से जोड़ा, जानें लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय की कहानी

Lt. Col Dewan Ranjit Rai: पाकिस्तान की कश्मीर पर कब्जा करने की मंशा को लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय की दिलेरी ने धूल में मिला दिया। उनका कहना था कि देश हमारे जीवन से बड़ा है। हम पहले मरेंगे, पर कश्मीर को नहीं जाने देंगे। ऐसे वीर बहादुर सिख बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय के बारे में जानें भारत रक्षा पर्व की इस खास पहल में। 
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भारत रक्षा पर्व: जिसकी शहादत ने कश्मीर को भारत से जोड़ा, जानें लेफ्टिनेंट कर्नल रंजीत राय की कहानी


लेफ्टिनेंट जनरल शौकीन चौहान: मैं अपनी तीसरी पीढ़ी का भारतीय सैनिक हूं और मेरे पिताजी ने लेफ्टिनेंट के तौर पर डोगरा रेजिमेंट में अपनी सेवाएं दी हैं। जब वह युवा थे, तब वह हमें भारत की आजादी के समय का जिक्र करते हुए कई कहानियां सुनाते थे। वे कहानियां मुझे आज भी याद हैं और उनमें से एक कहानी सुनाते हुए तो उनकी आवाज में गर्व के साथ दुख के मिले-जुले भाव थे। यह बात उस समय की है, जब लोग आजादी की सांस लेना सीख रहे थे लेकिन लोगों के मन में बंटवारे के जख्म ताजा ही थे। ऐसे में कश्मीर में जो चल रहा था, उसका अंदेशा शायद किसी को भी नहीं था।

आजादी के बाद कश्मीर का हाल

खूबसूरत कश्मीर में शतरंज की खूनी चाल चलने की तैयारियां चल रही थी। अंग्रेज चले गए थे, लेकिन पीछे खून की लकीरे खींचकर चले गए थे। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे में कुछ रियासतें भारत में शामिल हो रही थी, तो कुछ पाकिस्तान में जा मिली थी। ऐसे समय में कश्मीर के महाराज अपनी रियासत को स्वतंत्र रखने की कोशिश कर रहे थे और इस बात को पाकिस्तान ने भांप लिया था। वह इस नाजुक मौके का फायदा उठाने की पूरी तैयारी करने में लगा था।

पाकिस्तान की कश्मीर पर कब्जा करने की कोशिश

पाकिस्तान ने हथियारों से लैस घुसपैठिए कश्मीर में भेज दिए। पाकिस्तान का मकसद कश्मीर पर कब्जा करने का था ताकि वह भारत में विलय न कर सके। घुसपैठिए गांव के गांव जला रहे थे, महिलाओं के साथ दरिंदगी कर रहे थे। इसमें मुजफ्फराबाद पहले से ही जल चुका था और अगला निशाना बारामूला था। इसके बाद श्रीनगर का नंबर था। भारत के हाथों से घाटी फिसल रही थी।

dewan ranjit rai inside

एक कॉल जिसने सब कुछ बदल दिया

भारत को आजाद हुए अभी दस हफ्ते ही हुए थे और कश्मीर में कत्लेआम से वहां का माहौल नाजुक और डरावना हो गया था। ऐसे में जिस बहादुर सैनिक ने इस कत्लेआम को रोकने की बागडोर संभाली, उनका नाम लेफ्टिनेंट कर्नल दीवान रंजीत राय था। बात अक्टूबर 1947 की है, उन्होंने कुछ समय पहले ही पहली बटालियन की सिख रेजिमेंट की कमान संभाली थी। उस समय कर्नल रंजीत की उम्र सिर्फ 35 साल की थी। "स्वॉर्ड ऑफ ऑनर" विजेता कर्नल रंजीत अपने देश के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार थे। उन्हें खबर मिली कि पाकिस्तान से घुसपैठिए कश्मीर के बारामूला तक पहुंच चुके हैं और श्रीनगर को अपना निशाना बनाने की फिराक में हैं।

कर्नल रंजीत राय ने कमान संभाली

भारत में नई सरकार ने तुरंत कार्रवाई करते हुए सेना को हवाई मार्ग से श्रीनगर भेजने का फैसला किया। 27 अक्टूबर 1947 को जब कर्नल राय अपनी टुकड़ी के साथ श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरे, तो उनके पास रुकने का समय नहीं था। संसाधन सीमित थे, गिनती के जवान थे, न तोप थी और न ही कई दिन तक मदद मिलने वाली थी।
ऐसे में सैनिकों के हौसले को बुलंद बनाए रखने के लिए कमांडिग ऑफिसर कर्नल रंजीत राय एक बार भी नहीं डगमगाए।

दुश्मनों को हराने की रणनीति

कर्नल रंजीत राय हाथ में नक्शा लेकर कंधे पर रायफल लेकर खुद आगे पैदल चलते थे। उनके अनुशासन ने सैनिकों के बीच जुनून पैदा कर दिया था। उन्होंने दुश्मनों को दबाव बनाने के लिए अपने सैनिकों को दो दिशाओं में बांट दिया था। उनका यह फैसला बेहद जोखिम भरा था, लेकिन दुश्मनों पर दबाव बनने लगा था। एक राइफलमैन ने बरसों बाद कहा था कि “साहब सामने गए। गोली चली। पर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उस दिन हमें सवा लाख की ताकत महसूस हुई।”

प्राणों की आहुति देकर दुश्मनों को हराया

बारामूला के पास भारी गोलीबारी होने लगी थी। ऐसे में कर्नल रंजीत खुद चार्ज लेकर पहाड़ी पर चढ़ने लगे। पहाड़ी पर चढ़ते समय दुश्मनों की गोली ने उन्हें घायल कर दिया और लेकिन वह पीछे नहीं हटे और अंत तक लड़ते रहे। कर्नल रंजीत के हमले को देखकर दुश्मनों को लगा कि भारतीय सेना की बड़ी टुकड़ी आ गई है और इसी भ्रम में घुसपैठिए 48 घंटे तक वहीं रूके रहे। इससे भारत को काफी समय मिल गया और अन्य सैनिक वहां पहुंच गए। इस वजह से कश्मीर का ताज श्रीनगर आज भी उसी खूबसूरती के साथ बना हुआ है।

मरणोपरांत मिला आखिरी खत

कर्नल रंजीत राय को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह भारत का दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है। उनकी वीरता की कहानियां आज भी सिख रेजिमेंट के समारोह में सुनाई जाती है कि रंजीत ने दिखाया है कि पहली जंग कैसे लड़ी जाती है। सालों बाद जब जंग लगे ट्रंक में कर्नल राय की बेटी को अधूरा पत्र मिला था। जिसमें लिखा था, “अगर मेरा यह आखिरी खत हो, तो समझ लेना कि मैंने किसी निराशा में प्राण नहीं त्यागे। मुझे यकीन है कि भारत मेरे खून की हर बूंद से कहीं ज्यादा बढ़कर है। एक दिन, तुम इस पत्र को शांति से पढ़ोगी, और वह शांति राजनीति से नहीं, बल्कि उन लोगों से आएगी जिन्होंने जमीन पर डटकर लड़ाई लड़ी।”

कश्मीर बना भारत का अभिन्न अंग

आज कश्मीर सिर्फ कागजों में दस्तखत करने से ही भारत का हिस्सा नहीं बना है, बल्कि कर्नल रंजीत राय जैसे वीरों की शहादत और त्याग से बना है। उन्होंने जो जमीन पर लड़ाइयां लड़ी है, उनकी वजह से ही कश्मीर आज भारत का ताज बना हुआ है। कश्मीर सिर्फ एक राज्य नहीं है, बल्कि वीरता और शौर्य की पहचान है।

 

(यह कहानी भारत रक्षा पर्व की एक पहल है)

लेखक- लेफ्टिनेंट जनरल शौकीन चौहान (PVSM, AVSM, YSM, SM, VSM, PhD)

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