
दुर्लभ बीमारियों (Rare Disease) के उपचार के लिए भारत सरकार की राष्ट्रीय नीति में 450 दुर्लभ बीमारियों का जिक्र है। जिनकी अनुमानित वैश्विक संख्या 6,000 से 8,000 तक है। ये बीमारियां लगभग 72 से 96 मिलियन भारतीयों को प्रभावित करती हैं। दुर्लभ बीमारियों के लिए कोई एक परिभाषा नहीं है। मोटे तौर पर वे सामान्य आबादी में अन्य बीमारियों की तुलना में कम संख्या में लोगों को प्रभावित करने वाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हैं।
हर देश की अपनी व्यापकता, गंभीरता और वैकल्पिक चिकित्सीय विकल्पों की उपलब्धता को देखते हुए दुर्लभ बीमारियों की अपनी परिभाषा है। यह कई आनुवांशिक कारणों से होती हैं और कैरियर स्क्रीनिंग यह पहचानने के तरीकों में से एक है कि क्या पैदा होने वाला बच्चा किसी प्रकार की दुर्लभ बीमारी के जोखिम में है।

दुर्लभ बीमारियां क्या हैं: What Is A Rare Disease
वो बीमारियां जिनका होना दुर्लभ होता है, उन्हें दुर्लभ बीमारियां कहा गया है। इसके अंतर्गत सबसे आम बीमारियों में हीमोफिलिया, थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया, प्राइमरी इम्यूनो डेफिशिएंसी, सिस्टिक फाइब्रोसिस और मस्कुलर डिस्ट्रोफी के नाम शामिल हैं। लगभग 50% नए मामले बच्चों में होते हैं, और इनमें से 35% मौतें तभी हो जाती हैं जब वह 1 साल के भी नहीं हो पाते। इन स्थितियों की दुर्लभता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उल्लेखित संख्याओं में से केवल 500 में ही यूएस-एफडीए द्वारा उपचार के लिए अनुमोदित दवाएं हैं।
दुर्लभ बीमारियों से जुड़ी चुनौतियां: Rare Diseases Challenges
दुर्लभ बीमारियां काफी जटिल हैं, जो लगातार विकसित होती जा रही हैं। ये बीमारियां भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बनकर उभर रही हैं। अन्य चुनौतियों में स्थितियों के बारे में जागरूकता की कमी, चल रहे अनुसंधान और विकास और समय पर निदान शामिल हैं। ऐसे मामलों में जहां कुछ दुर्लभ बीमारियों के लिए उपचार उपलब्ध है, वहां दवाइयां पहुंच से बाहर हैं। उनका प्रबंधन भी जटिल है क्योंकि दुर्लभ बीमारियों वाले लोगों को अक्सर लंबी देखभाल और पुनर्वास की आवश्यकता होती है।
अक्सर, छोटी जगहों में स्वास्थ्य चिकित्सकों को यह समझ नहीं आता है कि ये एक आनुवांशिक बीमारी के लक्षण हो सकते हैं हैं और इसका उपचार उसके अनुरूप जारी रखा जा सकता है। भारत जैसे देश में शुरुआती निदान खराब मातृ स्वास्थ्य के कारण खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में यह एक बड़ी चुनौती है।
दुर्लभ बीमारियों का समाधान: Solution To Rare Diseases
हाल ही में, भारत में जीनोम अनुक्रमण (Genome sequencing) पर एक छह महीने की पायलट परियोजना का समापन किया गया था, जिसमें यह कहा गया कि कैसे दुर्लभ बीमारियों का निदान किया जा सकता है। एक जीनोम एक व्यक्ति का डीएनए का पूरा सेट है, जिसमें 3 बिलियन से अधिक डीएनए बेस जोड़े वाले जीन शामिल हैं। जीनोम अनुक्रमण जीनों के कार्यों को समझने और उत्परिवर्तन की पहचान करने में मदद कर सकता है जो कुछ बीमारियों के लिए जिम्मेदार हैं। इसके जरिए, अंतर्निहित रोगों की पहचान करना और सटीक चिकित्सा के माध्यम से इलाज करना संभव है।
जीनोम अनुक्रमण के माध्यम से उत्पन्न डेटा किसी व्यक्ति की आनुवांशिक प्रवृत्ति को दुर्लभ बीमारियों को समझने में मदद कर सकता है और अपने अद्वितीय आनुवंशिक प्रोफाइल के अनुसार लोगों के चिकित्सा उपचार में सक्षम कर सकता है। कई हेल्थ-टेक स्टार्टअप पहले से ही जोखिम को समझने के लिए गर्भाधान से पहले ही एडवांस कैरियर स्क्रीनिंग विकल्प पेश कर रहे हैं।
एक्सपर्ट का मत
रेडक्लिफ लाइफ साइंसेज की लीड साइंटिस्ट डॉ दीपिका कालो कहती हैं, "भारत में कई प्राथमिक क्षेत्र उभर रहे हैं जब यह दुर्लभ बीमारियों की बात आती है, तो प्राथमिक स्तर पर नवजात बच्चों की स्क्रीनिंग का कदम राष्ट्रव्यापी स्तर पर अनिवार्य कर देना चाहिए। यह इन बीमारियों के बोझ को कम करने में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। अब ऐसे विकल्प भी मौजूद हैं, जहां पहली तिमाही के दौरान एक अजन्मे बच्चे में दुर्लभ बीमारियों के जोखिम का पता लगाना संभव है।
सरकार शोधकर्ताओं स्वास्थ्य-तकनीक स्टार्टअप और अस्पतालों सहित सभी हितधारकों के लिए वक्त की मांग है कि वे इन परिस्थितियों से निपटने के लिए एक सार्थक रास्ता खोजने में मिलकर काम करें।"
नोट: यह लेख रेडक्लिफ लाइफ साइंसेज की लीड साइंटिस्ट डॉ दीपिका कालो से हुई बातचीत पर आधारित है।
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