मस्कुलर डिस्ट्राफी मांसपेशियों के रोगों का एक समूह है, जो जीन विकृति के कारण उत्पन्न होती है। हालांकि इस समूह में कई प्रकार के रोग शामिल हैं, लेकिन आज भी सबसे खतरनाक और जानलेवा बीमारी-ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी (डीएमडी) है। अगर इस बीमारी का समय रहते इलाज न किया जाए तो ज्यादातर बच्चों की मौत 11 से 21 वर्ष के मध्य हो जाती है, लेकिन डॉक्टरों और अभिभावकों में उत्पन्न जागरूकता ने इनकी जान बचाने और ऐसे बच्चों की जिंदगी बेहतर बनाने में विशेष भूमिका निभाई है। विशेष रूप से स्टेम सेल और बोन मैरो सेल-ट्रांसप्लांट के प्रयोग से इन मरीजों की आयु बढ़ाई जा रही है।
ऐसे होती है पहचान
- ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्राफी सिर्फ लड़कों में ही उजागर होती है और लड़कियां, जीन विकृति होने पर कैरियर (वाहक) का कार्य करती हैं या अपनी संतान को भविष्य में ये बीमारी दे सकती हैं, जबकि लड़कियों में किसी प्रकार के लक्षण उत्पन्न नहीं होते हैं।
- ज्यादातर बच्चों में 2 से 5 वर्ष की आयु में ही पैरों में कमजोरी शुरू हो जाती है।
- दौड़ते समय गिर जाना।
- पैरों की मांसपेशियों का फूल जाना।
- जमीन से उठते समय घुटने पर हाथ रखना या न उठ पाना।
- जल्दी थक जाना।
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क्योें है यह गंभीर रोग
चूंकि यह मांसपेशियों का रोग है। इसलिए यह सबसे पहले कूल्हे के आसपास की मांसपेशियों और पैर की पिंडलियों को कमजोर करता है, लेकिन उम्र बढ़ते ही यह कमर और बाजू की मांसपेशियों को भी प्रभावित करना शुरू कर देता है, लेकिन लगभग नौ वर्ष की उम्र के बाद से यह फेफड़े को और हृदय की मांसपेशियों को भी कमजोर करना शुरू कर देता है। नतीजतन, बच्चे की सांस फूलना शुरू हो जाती है और ज्यादातर बच्चों में मृत्यु का कारण हृदय और फेफड़े का फेल हो जाना होता है।
कैसे कार्य करती है स्टेम सेल्स
वैज्ञानिकों के अनुसार स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन से मांसपेशियों में मौजूद सोई हुई या डॉर्मेन्ट सैटेलाइट स्टेम सेल (एक प्रकार की विशिष्ट कोशिकाएं) जाग्रत हो जाती हैं और वे नई मांस पेशियों का निर्माण करती हैं, जबकि ग्रोथ फैक्टर (एक प्रकार का उत्प्रेरक) क्षतिग्रस्त मांसपेशियों की रिपेर्यंरग और रिजनरेशन में मदद करता है। इसीलिए आजकल अनेक डॉक्टर स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के साथ (आईजीएफ -1) नामक इंजेक्शन का प्रयोग करते हैं, जो एक प्रकार का ग्रोथ फैक्टर है। कई हेल्थ सप्लीमेंट्स इन मरीजों की ताकत बनाए रखने में काफी मदद कर रहे हैं, जो मुख्यत: ओमेगा-3 फैटी एसिड्स और यूबीनक्यूनॉल और एल-कार्निटीन रसायन हैं।
उपलब्ध इलाज
चूंकि इस बीमारी को लाइलाज बीमारियों की श्रेणी में रखा जाता है। इसलिए अधिकतर डॉक्टर अभी भी कार्टिकोस्टेरॉयड को मुख्य इलाज के रूप में प्रयोग करते हैं। हालांकि इसके दुष्परिणाम आने पर ज्यादातर रोगियों में इस इलाज को रोकना पड़ता है। इसके अतिरिक्त फिजियोथेरेपी का प्रयोग किया जाता है। नये इलाजों में मुख्यत: आटोलोगस बोन मेरो सेल ट्रांसप्लांट और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट को शामिल किया जाता है। यह इलाज मांसपेशियों की सूजन कम करने के साथ-साथ नई मांसपेशियों का निर्माण भी करता है।
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जेनेटिक इंजीनियरिंग और इलाज
चूंकि यह रोग एक जीन विकृति है। इसीलिए इसका पुख्ता इलाज जेनेटिक इंजीनियरिंग ही है। अमेरिका के साउथवेस्टर्न मेडिकल सेंटर में कार्यरत डॉ. एरिक आल्सन ने ‘सी.आर.आई.एस.पी.आर’. टेक्नोलॉजी का सफलतापूर्वक प्रयोग कर इन जीन विकृतियों को दूर कर दिया है।
महत्वपूर्ण राय
चूंकि निकट भविष्य में डी.एम.डी. के कारगर इलाज की संभावनाएं बढ़ गयी हैं। इसीलिए यह जरूरी है कि ऐसे मरीजों की स्थिति को और खराब होने से रोका जाए और उन्हें स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन के साथ-साथ अन्य सहयोगी इलाज भी उपलब्ध कराए जाएं।
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