कावासाकी रोग एक ऐसी समस्या है जो अधिकांश पांच साल व इससे कम उम्र के बच्चों में पायी जाती है। इसमें बच्चों को त्वचा, गले, मुंह तथा लिम्फ नोड आदि की समस्या होती है। इस लेख को पढ़ें और बच्चों में कावासाकी रोग के बारे में जानाकारी प्राप्त करें।
कावासाकी रोग में बच्चों के शरीर के विभिन्न हिस्सों में सूजन या छाले हो जाते हैं। हृदय में यह सूजन मायोकार्डिटिस (हृदय की मांसपेशियों को प्रभावित करता है), पेरीकार्डिटिस (हृदय के आवरण झिल्ली को प्रभावित करता है) या वॉल्वुलिटिस (हृदय के वॉल्व को प्रभावित करता है) का रूप ले सकती है।
कावासाकी रोग
कावासाकी रोग जापान और कोरिया के बच्चों में आम है। संयुक्त राज्य और दूसरे उद्योगीकृत देशों में, कावासाकी रोग बच्चों में सबसे ज्यादा पाया जाने वाला ऐसा हृदय रोग है, जो जन्म से नहीं होता। इन देशों में वहां पर पांच वर्ष की उम्र के करीब पांच हजार बच्चों में यह एक बच्चे में पाया जाता है। अधिकांश मामलों में कावासाकी रोग से पीड़ित बच्चों की उम्र पांच साल से कम ही होती है। लड़कियों के मुकाबले यह लड़कों में अधिक होता है।
किड्स हेल्थ वेबसाइट के अनुसार अमेरिका में हर दस लाख बच्चों में से 19 बच्चे कावासाकी रोग से प्रभावित होते हैं। इस बीमारी के कारण मेनिंजाइटिस (मस्तिष्क या मेरूरज्जू के आवरण की समस्या) भी हो सकती है और इससे आंखों, त्वचा, फेफड़े, लिम्फ ग्रंथियां, हड्डी के जोड़ों और मुंह की समस्या या छाले भी हो सकते हैं। इसके द्वारा होनेवाली सबसे गंभीर समस्या वैस्कुलिटिस(रक्त शिराओं में परेशानी) है जो कि खासकर मध्यम आकार की धमनियों की समस्या होती है।
अगर यह हृदय की कोरोनरी धमनियों को क्षति पहुंचाती है तो ऐसी स्थिति में यह बहुत घातक हो सकता है, इससे धमनी असामान्य रूप से चौड़ी हो सकती है या इसमें सूजन आ सकती है। कभी-कभी (बहुत कम मामलों में) कावासाकी के कारण धमनियों को हुए नुकसान से हृदय को खून की आपूर्ति प्रभावित होती है और बहुत छोटे बच्चों में हृदयाघात भी हो सकता है। तीन चीजें किसी बच्चे में कावासाकी रोग के होने की संभावना को बढ़ा देती हैं।
आयु
पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में कावासाकी रोग ज्यादा पाया जाता है।
लिंग
लड़कों में लड़कियों की अपेक्षा कावासाकी रोग होने की आशंका अधिक होती है।
जातीयता
एशिया प्रांत के बच्चों में जैसे जापानी और कोरियन लोगों में कावासाकी रोग होने की अधिक आशंका होती है।
चूंकि कावासाकी रोग की पुष्टि के लिए कोई जांच उपलब्ध नहीं है, डॉक्टर परिस्थितियों की समीक्षा से रोग का अनुमान लगाते हैं। इसमें कम से कम पांच दिनों तक तेज बुखार (सामान्यतः 104 डिग्री या अधिक) रहता है। इसके अलावा बुखार के साथ प्रायः निम्नलिखित में से कम से कम चार लक्षण पाये जाते हैं।
दोनों आंखों का कंजक्टिवाइटिस होना (लाल आंखें होना), मुंह या गले से संबंधित लक्षण, जिसमें होंठों और गले के अंदरूनी भाग का लाल हो जाना, होंठ फटना, होंठों से खून आना या जीभ का स्ट्राबेरी की तरह लाल हो जाना आदि शामिल हैं। हाथ या पैरों से संबंधित लक्षण, जिसमें सूजन, हथेलियों या तलवों की त्वचा का लाल होना या उंगली के सिरों, पैरों की उंगलियों, हथेलियों या तलवों पर बदरंग त्वचा का हो जाना शामिल है।
बच्चों में कावासाकी रोग के अन्य लक्षण-
शरीर के धड़ भाग पर चकत्ते पड़ना, गले की ग्रंथियों में सूजन। कावासाकी रोग के पीड़ितों में दूसरे कुछ लक्षण भी हो सकते हैं, जिन्हें रोग की परिभाषा में स्थान नहीं दिया गया है। ये इस प्रकार हैं-हड्डियों के जोड़ों में दर्द और सूजन, डायरिया, उल्टियां होना, पेट दर्द की शिकायत, कफ/बलगम, कान दर्द, नाक बहना, बेचैनी, आकस्मिक झटका, शरीर में कमजोरी महसूस होना, चेहरे की मांसपेशियों में कमजोरी, हृदयगति का अनियमित होना आदि इसके लक्षण है।
एक अनुमान के अनुसार कावासाकी रोग पूरी दुनिया में प्रति एक लाख बच्चों में नौ में से 19 फीसदी बच्चों को प्रभावित करता है। यानी इस रोग के रोगी काफी कम मिलते हैं। इसमें से भी 85 प्रतिशत बच्चे पांच वर्ष से कम उम्र के होते हैं। भारत में आठ वर्ष से कम उम्र के प्रति एक लाख बच्चों में से लगभग 14 से 20 बच्चों में इसका प्रभाव देखा गया है। इससे प्रभावित होने वाला सामान्य आयु वर्ग छह से 14 वर्ष है जिसमें से 20 से 30 प्रतिशत में हृदय रक्त धमनी से संबंधित समस्याएं उत्पन्न होती हैं। पहचान नहीं होने के कारण बहुत से मामले तो दर्ज भी नहीं हो पाते। मुंबई में प्रति एक लाख पर 20 बच्चे कावासाकी से प्रभावित पाए गए हैं।
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