गर्भ में भ्रूण के विकास में किसी भी तरह की परेशानी बच्चे के लिए बड़ी चिंता का विषय बन सकती हैं। दरअसल, माता-पिता की कई अनुवांशिक बीमारियां बच्चों में ट्रांसफर हो जाती हैं। इस तरह का एक रोग ज्यून्स सिंड्रोम (Asphyxiating thoracic dystrophy) हैं। इस बच्चे के हड्डियों का विकास सही तरह से नहीं हो पाता है। इस सिंड्रोम में मुख्य रूप से पसलियां की हड्डियां सिकुड़ जाती है। जिससे बच्चे को सांस लेने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, कई बार बच्चे के हाथ-पैरों और उंगलियों की हड्डियां भी छोटी हो जाती है। कुछ बच्चों का इस समस्या में दम घुटने लगता है। आगे जानते बाल रोग के सीनियर डॉक्टर रुचिर अग्रवाल से जानते हैं इस तरह की समस्या के क्या कारण होते हैं और इसका इलाज कैसे किया जा सकता है।
बच्चों में ज्यून सिंड्रोम के कारण - Causes Of Jeune's Syndrome in hindi
इस समस्या का मुख्य कारण जीन में बदलाव होता है। जीन में आनुवांशिक रूप से परिवर्तन होने पर बच्चे को इस तरह की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। फिलहाल, इस के कारणों पर अभी अन्य रिचर्स जारी हैं। जबकि, डॉक्टरों का मानना है कि 70 फीसदी मामलों में जीन के म्यूटेशन की वजह से इस तरह का सिंड्रोम होता है।
ज्यून सिंड्रोम में किस तरह के लक्षण दिखाई देते हैं- Symptoms Of Jeune's Syndrome In hindi
- पसलियां सिकुड़ना, इससे फेफड़ों कमजोर हो जाते हैं
- धड़ की तुलना में हाथ व पैर छोटे होना
- किडनी पर दबाव पड़ता है।
- फेफड़ों की क्षमता कम होने के साथ लंबी और असामान्य रूप से छोटी छाती होना
- धड़ की तुलना में छोटे हाथ और पैर और कुल मिलाकर छोटा कद (छोटे अंगों वाला बौनापन)
- गुर्दे के घाव जो गुर्दे की विफलता का कारण बन सकते हैं
जीन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों में अन्य लक्षण हो सकते हैं
- लीवर की समस्या
- हृदयम संबंधी समस्याएं
- बच्चा जब बड़ा हो रहा होता है, दो उसको सांस लेने में परेशानी होती है। इससे किडनी और आंतों पर भी दबाव पड़ता है।
ज्यून सिंड्रोम का इलाज कैसे किया जाता है? Treatment Of Jeune's Syndrome in Hindi
ज्यून सिंड्रोम वाले बच्चों के इलाज में डॉक्टर सबसे पहले रेस्पिरेटरी इंफेक्शन को रोकने पर ध्यान देते हैं। कई शिशु व बच्चे छाती का आकार कम होने के कारण बार-बार रेस्पिरेटरी इंफेक्शन का शिकार होते हैं और इसके चलते अपनी जान गवां बैठते हैं।
कुछ मामलों में, डॉक्टर पसलियों की सर्जरी करके रेस्पिरेटरी सिस्टम पर पड़ने वाले दबाव को कम कर देते हैं। यह सर्जरी बेहद कठिन होती है। जिन बच्चों को सांस लेने में ज्यादा समस्या होती है। उनके लिए सर्जरी को चुना जाता है।
ज्यून सिंड्रोम में बच्चे को किडनी की बीमारी और हाई बीपी की समस्या भी हो सकती है। कई बार स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि डॉक्टर को डायलिसिस करना पड़ता है। जिन बच्चों में इस सिंड्रोम के प्रभाव बेहद कम होते हैं, उनको आगे चलकर किसी तरह परेशानी नहीं होती है।
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बच्चों को सांस लेने में किसी भी तरह परेशानी होने पर आप उसे नजरअंदाज न करें। किसी भी तरह के आनुवांशिक रोगों से बच्चे को बचाने के लिए माता-पिता को प्रेग्नेंसी प्लान करने से पहले ही डॉक्टर से मिलकर आवश्यक टेस्ट करावा लेने चाहिए।
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