आजकल न सिर्फ बच्चे और युवा बल्कि बुजुर्ग लोग भी हर वक्त फोन से चिपके रहते हैं। मामूली नुकसानों के साथ ही यह आदत एक बड़ी बीमारी का भी न्यौता दे सकती है। हाल ही में हुए एक शोध से पता चलता है कि स्मार्ट फोन से निकलने वाली ब्लू लाइट से छोटे तरंग दैर्ध्य निकलते हैं जो और अन्य रंगों की तुलना में काफी सक्रिय होते हैं। इनके संपर्क में लगातार रहने से आपकी दृष्टि को नुकसान हो सकता है। इस वजह से इंसान के रेटिना के हल्के संवेदनशील भाग, मैकुला और मैकुलर प्रभावित होते हैं। आंखों के रेटिना में मौजूद अहम मॉलीक्यूल्ए को स्मार्टफोन या डिजिटल उपकरणों से निकलने वाली रोशनी घातक कोशिकाओं में तब्दील कर सकती है।
यह अध्ययन यूनीवर्सिटी ऑफ टोलेडो में किया गया है। इसमें कहा गया है कि स्मार्टफोन या अन्य डिजिटल उपकरणों से निकलने वाली नीली रोशनी न सिर्फ खतरनाक है बल्कि यह लोगों को अंधा बना सकती है। विशेषज्ञों ने बताया कि मैक्यूलर डिजेनेरेशन नाम की एक ठीक न होने वाली आंखों की बीमारी है, जिसमें आंखों की रोशनी न के बराबर रह जाती है। एक्सपर्ट कहते हैं यह समस्या बुजुर्गों को जल्दी घेरती है, हालांकि युवा भी इससे अछूते नहीं हैं। औसतन 50 से 60 साल की उम्र में शुरू होती है।
इसमें रेटिना में मौजूद फोटोरिसेप्टर सेल मर जाते हैं। इन कोशिकाओं को रेटिनल मॉलीक्यूल की जरूरत होती है रोशनी को समझने के लिए, जिससे यह दिमाग को उससे संबंधित संकेत दे सकें। कॉर्निया और लेंस इसके ब्लॉक या परावर्तित नहीं कर सकते हैं। यह बात अब किसी से नहीं छुपी है कि ब्लू लाइट रेटिना को क्षतिग्रस्त करके हमारी आंखों की रोशनी को नुकसान पहुंचाती है। प्रोफेसर करुनारत्ने का कहना है कि हम उम्मीद करते हैं कि मैक्यूलर डिजेनेरेशन की प्रक्रिया को धीमा करने की दवा, जैसे कोई आई ड्रॉप विशेषज्ञ जल्द ही बना लेंगे। यह अध्ययन साइंटिफिक रिपोर्ट्स पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है।
क्या मेरा फोन मुझे अंधेरा बना रहा है?
स्मार्टफोन, लैपटॉप और अन्य स्क्रीन उपकरणों का उपयोग करते समय सावधानी बरतने की बहुत जरूरत होती है। वास्तव में, अध्ययन के मुख्य लेखक अजीत करुणरथने, पीएचडी ने द वेर्ज ने पूछा था कि उनके शोध से पता चला है कि इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीन का उपयोग करके अंधापन होता है, और उन्होंने एक शानदार जवाब दिया, "बिल्कुल नहीं।"
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दिमाग के लिए है खतरा
दिन भर मोबाइल फोन से चिपके रहना सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है। हाल ही में हुए शोध में सामने आया है कि अगर आप हर समय मोबाइल से जुड़े रहते हैं तो यह दिमाग के लिए खतरा हो सकता है। दिन में 15 घंटे से अधिक का समय मोबाइल फोन पर बिताने वाले लोगों को ब्रेन ट्यूमर का जोखिम तीन गुना अधिक होता है। शोध में माना गया है कि सेल्स और बिजनेस के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों से लेकर घंटों फोन पर बाते करने वाले युवाओं तक, दिमाग से जुड़े इस खतरे का रिस्क अधिक होता है। शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि ब्रेन ट्यूमर के शिकार अधिकतर लोग महीने में औसतन 15 घंटों से अधिक समय मोबाइल फोन पर बात करके काटते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर कैंसर रिसर्च ने भी मोबाइल फोन से निकलने वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों को कार्सिनोजेनिक होने की आशंका जताई है। हालांकि शोधकर्ता अपने इस अध्ययन को बेहद शुरुआती दौर में मान रहे हैं।
स्मार्टफोने के ज्यादा इस्तेमाल से होने वाले नुकसान
कई जगहों में मोबाइल सेटों का प्रयोग करने के बाद मोबाइल को फेंक दिया जाता है। लेकिन इससे उनमें मौजूद जहरीले रसायनों का खात्मा नहीं होता। हर साल पूरी दुनिया में करोड़ों सेलफोन प्रयोग करने के बाद फेंक दिये जाते हैं। जिसके कारण ये खतरनाक रसायन और धातु मिट्टी और पानी में मिलते हैं और इससे पानी और मिट्टी में जहर फैलता है और कई खतराक बीमारियों को बढ़ा सकता है। इन मोबाइलों में लीड, ब्रोमीन, क्लोरीन, मर्करी और कैडमियम पाया जाता है, जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
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मोबाइल में मोबाइल में पॉलीक्लोरीनेटेड बाईफिनायल्स रसायन निकलता है, जिसके कारण शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता घटती है। मोबाइल का प्रयोग करने से लीवर व थाइराइड से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं। महंगा और अच्छा दिखने वाला फोन भी आपके स्वास्थ्य को खराब कर सकता है, इसलिए मोबाइल का जरूरत से ज्यादा प्रयोग करने से बचें। मोबाइल से होने वाला रेडिएशन आपके कानों को भी खराब कर सकता है।
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