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प्रेग्नेंसी के दौरान मां और शिशु की सेहत का सही पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट क्यों जरूरी हैं? डॉक्टर से जानें

प्रेग्नेंसी में महिलाओं को ब्लड टेस्ट की सलाह दी जाती है। इस लेख मे जानते हैं कि प्रेग्नेंसी में ब्लड टेस्ट से किन समस्याओं के बारे में जानकारी मिलती है।
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प्रेग्नेंसी के दौरान मां और शिशु की सेहत का सही पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट क्यों जरूरी हैं? डॉक्टर से जानें


Role Of Blood Tests To Monitoring Maternal Health In Hindi: प्रेग्नेंसी हर महिला के जीवन का महत्वपूर्ण चरण होता है। इस दौरान न केवल गर्भवती महिला के शरीर में कई शारीरिक और हार्मोनल परिवर्तन होते हैं, बल्कि शिशु के विकास की प्रक्रिया भी तेजी से चल रही होती है। ऐसे में यह बेहद आवश्यक हो जाता है कि मां और शिशु दोनों के स्वास्थ्य की समय-समय पर जांच होती रहे। इन्हीं टेस्ट में ब्लड टेस्ट में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं । ये टेस्ट महिला की हेल्थ की सटीक जानकारी प्रदान करते हैं और संभावित जोखिमों को बताने में मदद करते हैं। इस लेख में न्यूबर्ग अजय शाह लेबॉरेट्री के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉक्टर अजय शाह से जानते हैं कि गर्भावस्था के दौरान ब्लड टेस्ट क्यों जरूरी हैं और ये किन-किन पहलुओं की जानकारी देते हैं?

प्रेग्नेंसी में मां और शिशु स्वास्थ्य का पता लगाने के लिए क्यों आवश्यक होता है ब्लड टेस्ट कराना? - Role Of Blood Tests To Monitoring Maternal Health During Pregnancy In Hindi

एनीमिया (Anemia) की पहचान

गर्भवती महिलाओं में खून की कमी (एनीमिया) एक आम समस्या है, जो शिशु के विकास और प्रसव को प्रभावित कर सकती है। ब्लड टेस्ट के जरिए हीमोग्लोबिन स्तर की जांच की जाती है जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि महिला को आयरन या विटामिन B12 की जरूरत है या नहीं। यदि समय रहते इसकी पहचान हो जाए, तो उचित सप्लीमेंट्स और आहार से इसका इलाज संभव है।

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ब्लड ग्रुप और Rh फैक्टर की जानकारी

गर्भावस्था के शुरुआती चरण में माँ का ब्लड ग्रुप और Rh फैक्टर (Positive या Negative) जानना बहुत जरूरी होता है। अगर माँ Rh Negative और पिता Rh Positive हैं, तो भ्रूण के रक्त से प्रतिक्रिया हो सकती है, जिससे शिशु को खतरा हो सकता है। ब्लड टेस्ट से इसकी पहचान करके डॉक्टर समय रहते Rh इम्यूनोग्लोबिन इंजेक्शन दे सकते हैं।

थायरॉइड फंक्शन टेस्ट

गर्भावस्था में थायरॉइड हार्मोन का संतुलन बेहद जरूरी होता है। हाइपोथायरॉइडिज्म (थायरॉइड की कमी) या हाइपरथायरॉइडिज्म (अधिकता) दोनों ही माँ और बच्चे के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। ब्लड टेस्ट से थायरॉइड स्तर की निगरानी की जाती है ताकि आवश्यक दवा समय पर शुरू की जा सके।

ब्लड शुगर 

जेस्टेशनल डायबिटीज (Gestational Diabetes) एक अस्थायी अवस्था होती है जो गर्भावस्था के दौरान होती है। ब्लड शुगर टेस्ट (Fasting और GTT) के जरिए इसका पता लगाया जाता है। यदि शुगर लेवल हाई हो, तो उसे नियंत्रित करने के लिए डाइट, एक्सरसाइज़ और दवा का सहारा लिया जाता है। इससे माँ और शिशु दोनों सुरक्षित रहते हैं।

संक्रमण की जांच (Infections Screening)

ब्लड टेस्ट के माध्यम से डॉक्टर कई प्रकार के संक्रमणों की जांच करते हैं जैसे HIV, हेपेटाइटिस B और C, सिफलिस, रूबेला और टॉक्सोप्लास्मोसिस आदि। इनमें से कुछ इंफेक्शन मां से बच्चे में ट्रांसफर हो सकते हैं। समय पर पहचान से इलाज संभव हो पाता है और जटिलताओं से बचा जा सकता है। इससे लिवर और किडनी फंक्शन की जांच, ब्लड क्लॉटिंग प्रोफाइल और शिशु के जन्मजात विकारों की जांच की जाती है। 

इसे भी पढ़ें: जानें प्रेगनेंसी में कौन से टेस्ट कराने हैं बेहद जरूरी, ताकि मां और शिशु दोनों की सेहत का ठीक पता चल सके

गर्भावस्था में ब्लड टेस्ट सिर्फ एक टेस्ट नहीं है, बल्कि यह मां और बच्चे दोनों के भविष्य को सुरक्षित रखने का एक प्रभावी माध्यम है। ये टेस्ट न केवल वर्तमान स्वास्थ्य की जानकारी देते हैं, बल्कि संभावित जोखिमों के बारे में भी बताते हैं।

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