कोरोना के कारण 'अपनों' को खो चुके बच्चों को कैसे दें इमोशनल सपोर्ट? बता रही हैं साइकोलॉजिस्ट

कोरोना की दूसरी लहर में जो बच्चे अपनों को खो चुके हैं, उन्हें भावनात्मक रूप से मदद करने में परिजन बहुत मददगार हो सकते हैं। 
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कोरोना के कारण 'अपनों' को खो चुके बच्चों को कैसे दें इमोशनल सपोर्ट? बता रही हैं साइकोलॉजिस्ट

‘’काश मेरे पापा को उस दिन बेड और ऑक्सीजन मिल गया होता तो आज पापा हमारे बीच होते।’’ 10वीं की छात्रा गितिका ने अपने पापा को कोविड की वजह से खो दिया। रूआंसी सी आवाज में गितिका बताती हैं कोरोना ने हम सभी को इतना होपलेस कर दिया कि न अस्पतालों से उम्मीद रही और न किसी और से। पापा को कोविड होने के बाद हम उन्हें अस्पताल नहीं ले गए क्योंकि वहां बेड नहीं थे, इसलिए डॉक्टर ने घर पर इलाज शुरू किया। हमने उन्हें बचाने की बहुत कोशिश की पर वो नहीं रहे। मेरे पापा पापा कम दोस्त ज्यादा थे। मैंने दोस्त और पापा दोनों को खो दिए।’’ अपनों को खोने का यह दुख केवल गितिका का ही नहीं है बल्कि लाखों लोगों का है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक अब तक कोविड से 249992 इतनी मौतें हो चुकी हैं।

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कोरोना की दूसरी लहर ने भयावह रूप से लोगों को प्रभावित किया उन्हीं में से एक गितिका के पापा थे। गितिका बताती हैं कि उनके पापा डायबिटीज और बीपी के मरीज भी थे। जब उन्हें कोरोना हुआ तो दो दिन के अंदर ही उनकी सांस फूलने लगी थी। ऑक्सीजन 80 पर थी। हमने उन्हें ऑक्सीजन लगा रखा था। वो बहुत बेचैन रहते थे। बहुत बार सीढ़ियों पर ऊपर-नीचे चक्कर लगाते रहते थे। पर हम उन्हें बचा नहीं सके। 

एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल दौड़ते रहे पर पापा को कहीं एडमिट नहीं किया : अंजली

दिल्ली के आयानगर की रहने वाली अंजली ने भी कोरोना की वजह से अपने पापा को खो दिया। अंजली के पापा कनहाई मिश्रा को कोरोना के सारे लक्षण थे। उन्हें सांस लेने में दिक्कत थी। फेफड़ों में कफ जम गया था। फेफड़े पूरी तरह से खराब हो गए थे। अंजली बताती हैं कि हमने पापा को बचाने के लिए दिल्ली में जितने अस्पताल जानते थे वहां सब जगह ले गए। पर कहीं भी बेड नहीं मिला।

फोन पर हुई इस बातचीत के बीच अंजली अपनी बात कहते-कहते रो पडीं और बोलीं कि अपने पापा को बचाने के लिए उनकी दीदी और जीजा दिल्ली के हर अस्पताल में दौड़ते रहे। अंजली ने बताया कि दीदी और जीजा पापा को 24 अप्रैल को नीलकंठ अस्पताल लेकर गए वहां डॉक्टर ने देखते ही कह दिया कि यह कोविड अस्पताल नहीं है इन्हें कोविड हॉस्पिटल ले जाओ। फिर वे उन्हें नारायणा ले गए, वहां भी एडमिट नहीं किया। फिर एम्स ले गए। एम्स में कोरोना जांच हुई, लेकिन टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आई। इसलिए डॉक्टरों ने कहा कि इनको सारे लक्षण कोरोना के हैं, इसलिए इन्हें कोविड हॉस्पिटल ले जाओ।

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एम्स से हम उन्हें लाल बहादुर शास्त्री ले आए। वहां भी टेस्ट किया और रिपोर्ट नेगेटिव आई तो वहां के डॉक्टर बोले कि जीटीबी हॉस्पिटल ले जाओ वो कोविड अस्पताल है, वहां इलाज होगा। वहां ले गए तो वहां गार्ड ने गेट नहीं खोला, बोला यहां बेड नहीं है। 25 तारीख को पूरे दिन मेरी दीदी और जीजू उन्हें लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल लेकर भागते रहे, फिर लाल बहादुर शास्त्री में एम्स के डॉक्टर की सिफारिश पर वापस लेकर गए। अंजली ने बताया कि पिताजी का ऑक्सीजन लेवल 28 से ऊपर जा ही नहीं रहा था। लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल में डॉक्टरों ने ऑक्सीजन लगा दिया था, लेकिन बोले कि यहां इलाज नहीं होगा क्योंकि यह कोविड अस्पताल नहीं है और इनको सारे लक्षण कोविड के हैं। पर रिपोर्ट नेगेटिव थी। डॉक्टर एक बार ऑक्सीजन लगाकर चले गए पर वापस देखने नहीं आए। वहां एक ऑक्सीजन सिलेंडर से चार से पांच मरीज को ऑक्सीजन दी जा रही थी। 26 अप्रैल को शाम में पापा नहीं रहे। डॉक्टरों की लापरवाही की वजह से मेरे पापा गए।

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मदद को आगे आईं संस्थाएं

अंजली और दीपिका जैसे न जितने बच्चे हैं जो कोरोना के चलते बना मां या पिता के रह गए हैं। उनका दुख जमाने में हर गम से कम है। ऐेसे बच्चों की मदद के लिए कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं भी आगे आई हैं। इसी कडी में दिल्ली कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने ऐसे बच्चों की मदद के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किया जिससे उनको जरूरी चीजों की पूर्ति की जा सके।

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बच्चों को इमोशनली सपोर्ट देने के लिए परिजन ऐसे कर सकते हैं मदद

जिन बच्चों ने कोरोना की दूसरी लहर में अपनो को खो दिया है वे मानसिक रूप से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। ऐसे बच्चों के परिजन उन बच्चों की मानसिक रूप से क्या मदद कर सकते हैं इस पर मनोवैज्ञानिक तन्वी पारीक ने कुछ सुझाव दिए हैं, जो सभी के काम आ सकते हैं। तन्वी पीसफुल माइंड फाउंडेशन के साथ काम करती हैं।

  • बच्चों के साथ सिंपैथी नहीं एम्पैथी दिखाएं।
  • बच्चों को हिम्मत दें। हिम्मत देने के लिए बच्चों के लिए सही शब्दों का इस्तेमाल करें। 
  • बच्चों की तबीयत खराब न हो जाए, इसलिए उनके खाने का ध्यान रखें। खाना खिलाते समय उसे मोटिवेट करें। बच्चों को यह बताएं कि हम सभी तुम्हारे साथ हैं।
  • बच्चे अगर रो रहे हैं तो रोने दें। ताकि वे अपनी भावनाएं बाहर निकाल पाएं। पर बच्चों को अकेला न छोड़ें। 
  • अगर बच्चों से आमने-सामने नहीं मिल पा रहे हैं तो फोन पर बात करते रहें। 
  • बच्चों के पोटेशियल को बचाए रखने की कोशिश करें। 
  • एंग्जाइटी, पैनिक अटैक के समय बच्चों को ज्यादा कुछ न कहें। बल्कि उनसे बात करें। एंग्जाइटी होने पर उन्हें पानी पिला दें। उनके हाथ, पैर, पीठ रगड़ें। 
  • ऐसे बच्चे अकेले न सोएं।
  • प्रॉपर्टी, पैसा, करियर आदि की बातें उस समय में बच्चे से न करें। बच्चों को वापस पुरानी वाली स्थिति में आने के लिए समय दें। 
  • बच्चों के अंदर माता या पिता के जाने का खौफ न बैठने दें। परिजन कोशिश करें कि बच्चे का जो विश्वास अपने माता-पिता पर वही विश्वास अपने लिए आप उसमें पैदा करें।
  • बच्चों को कहें कि यह दुखभरे दिन बीत जाएंगे। ऐसा उन्हें कहें।

जो बच्चे कोरोना की दूसरी लहर में अपनों को खो चुके हैं, उन्हें मानसिक रूप से सशक्त बनाना बहुत् जरूरी है। अभी चारों तरफ मायूसी का माहौल है। इस माहौल का बच्चों के बाल मन पर बहुत असर पड़ रहा है। इन बच्चों को भावनात्मक रूप से मदद करने में परिजन बहुत मददगार साबित हो सकते हैं। 

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