प्रदूषण की वजह से 7 साल कम हो गई है उत्तर भारत में रहने वाले लोगों की जिंदगी: स्टडी

उत्तर भारत में प्रदूषण पिछले 20 सालों में इतना ज्यादा बढ़ गया है कि लोगों की जिंदगी लगभग 7 साल तक कम हो गई है। दिल्ली के कई इलाकों में इन दिनों प्रदूषण का स्तर 500 के भी पार है, जो इंसानी जिंदगी के लिए बेहद खतरनाक है। WHO के आंकड़ों के अनुसार हर साल 70 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है।
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प्रदूषण की वजह से 7 साल कम हो गई है उत्तर भारत में रहने वाले लोगों की जिंदगी: स्टडी


पूरा उत्तर और मध्य भारत इन दिनों भीषण वायु प्रदूषण (Air Pollution) की चपेट में है। इन दिनों दिल्ली एनसीआर का हाल सबसे बुरा है। यहां दिवाली के 5 दिन बाद भी कई इलाकों में प्रदूषण का स्तर 500 से ऊपर बना हुआ है, जबकि इंटरनैशनल स्टैंडर्ड्स के अनुसार सिर्फ 50 AQI तक इंसानों के लिए सेहतमंद माना जाता है। हाल में जारी एक अध्ययन की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर भारत में रहने वाले ज्यादातर लोगों की जिंदगी प्रदूषण के कारण 7 साल तक कम हो गई है।

यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो स्थित एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट में हुए इस शोध के लिए एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (AQLI) बनाया गया, जिसके बाद वैज्ञानिकों ने बताया कि मध्य भारत के इलाकों में 1998 से 2016 के बीच प्रदूषण 72% ज्यादा बढ़ गया है। ये स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) द्वारा बताए गए सुरक्षित स्तर से काफी ज्यादा है, जिसका असर लोगों की सेहत पर बहुत बुरा पड़ रहा है।

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किन राज्यों में है सबसे ज्यादा खतरा

उत्तर और मध्य भारत के लगभग सभी राज्यों में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण की मार का असर सबसे ज्यादा बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल राज्यों में बताया गया है। इन इलाकों में भारत की लगभग 40% जनसंख्या रहती है। देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले उत्तर भारतीय राज्यों में प्रदूषण 3 गुना ज्यादा है। 2016 में प्रदूषण के कारण जहां देश के अन्य इलाकों में रहने वाले लोगों का जीवन 2.6 साल घटा, वहीं उत्तर भारत में रहने वाले लोगों का जीवन 7 साल तक घट गया। इसका कारण हवा में मौजूद PM 2.5 और PM10 कण हैं।

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प्रदूषण के कारण हर साल 70 लाख मौतें

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार दुनिया भर में जिस तेजी से जनसंख्या और गर्मी बढ़ रही है, उसके असर से प्रदूषण का स्तर भी बढ़ रहा है। दुनिया में मौजूद हर 10 में से 9 इंसान प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है। प्रदूषण के कारण हर साल 70 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है। इनमें से ज्यादातर मौतों का कारण स्ट्रोक, फेफड़ों का कैंसर, दिल की बीमारियां आदि हैं। कई इलाकों में प्रदूषण का स्तर इतना ज्यादा है कि ये धूम्रपान से भी ज्यादा खतरनाक है।

93% बच्चों को नहीं मिल रही साफ हवा

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ही एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 93% बच्चों को सांस लेने के लिए साफ हवा नहीं मिल रही है। 15 साल से कम उम्र के लगभग 180 करोड़ बच्चे प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं, जिसके कारण आने वाले समय में उन्हें कई तरह की गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा प्रदूषण का असर बच्चों को शारीरिक और मानसिक विकास भी पड़ता है। WHO के आंकड़े बताते हैं कि 2016 में 6 लाख से ज्यादा बच्चों की मौत प्रदूषण के कारण फैली सांस की बीमारियों के कारण हुई थी।

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प्रदूषण कैसे छीन रहा है आपकी जिंदगी

इंसानों को जीने के लिए जिन बुनियादी चीजों की जरूरत होती है, उनमें सबसे महत्वपूर्ण हवा है। हवा से हमें ऑक्सीजन मिलती है, जो शरीर को फंक्शन करने और मेटाबॉलिज्म में मदद करती है। जब आप प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं, तो हवा में मौजूद छोटे-छोटे कण भी आपके शरीर में पहुंच जाते हैं। ये प्रदूषण के कण आपके फेफड़ों और मस्तिष्क के अंदरूनी हिस्से को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके अलावा रक्त में घुल जाने के बाद ये आपकी किडनियों, लिवर, पाचनतंत्र और शरीर के अन्य हिस्सों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

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