
केवल दवाओं की मदद से कुछ स्वास्थ्य समस्याओं को पूरी तरह दूर करना बहुत मुश्किल होता है। इसके अलावा उनके निरंतर सेवन से साइड इफेक्ट की भी आशंका बढ़ जाती है। ऐसे में फिजि़योथेरेपी उपचार का एक ऐसा विकल्प है, जो बिना किसी साइड इफेक्ट के मजऱ् को आसानी
केवल दवाओं की मदद से कुछ स्वास्थ्य समस्याओं को पूरी तरह दूर करना बहुत मुश्किल होता है। इसके अलावा उनके निरंतर सेवन से साइड इफेक्ट की भी आशंका बढ़ जाती है। ऐसे में फिजि़योथेरेपी उपचार का एक ऐसा विकल्प है, जो बिना किसी साइड इफेक्ट के मजऱ् को आसानी से दूर करने में मददगार होता है। आमतौर पर लोगों के मन में यह धारणा है कि फिजि़योथेरेपी का इस्तेमाल केवल चोट लगने के बाद या हड्डियों व जोड़ों से संबंधित समस्याओं के लिए किया जाता है पर ऐसा नहीं है। यह वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने में मददगार साबित होती है। अगर आप दवा, इंजेक्शन और ऑपरेशन के बिना दर्द से राहत पाना चाहते हैं तो फिजि़योथेरेपी निश्चित रूप से एक बेहतर विकल्प है लेकिन जागरूकता के अभाव में ज्यादातर लोग इसे अपनाने में झिझकते हैं।
फिजि़योथेरेपी के माध्यम से हड्डियों-जोड़ों, हृदय और फेफड़े से संबंधित बीमारियों के अलावा स्त्रियों, बच्चों और बुज़ुर्गों की सेहत संबंधी समस्याओं का भी उपचार संभव है। इलाज शुरू करने से पहले फिजि़योथेरेपिस्ट मरीज़ की पूरी केस हिस्ट्री देखते हैं। उसी के अनुसार आधुनिक इलेक्ट्रोथेरेपी, स्ट्रेचिंग और व्यायाम की विधि अपनाई जाती है। दर्द से राहत के लिए फिजि़योथेरेपिस्ट मसाज भी देते हैं।
कैसे मिले पूरा लाभ
पेन किलर्स की तरह इसका असर तुरंत दिखाई नहीं देता। समस्या के स्थायी समाधान के लिए थोड़े धैर्य की ज़रूरत होती है। खासतौर पर फ्रोजन शोल्डर, कमर व पीठ दर्द के मामलों में कई सिटिंग्स लेने की ज़रूरत पड़ती है। नियमित एक्सरसाइज़ इसका अहम हिस्सा है। उपचार का यह तरीका तभी कारगर साबित होता है, जब इसके नियमों का पूरी तरह पालन किया जाए।
उपचार के विभिन्न तरीके
विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार के लिए फिजि़योथेरेपिस्ट अलग-अलग तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। कुछ समस्याओं में मशीनों की मदद ली जाती है तो कुछ में एक्सरसाइज़ करवाई जाती है।
कॉम्बिनेशन थेरेपी : इस विधि में दर्द दूर करने के लिए दवाओं और व्यायाम की मदद ली जाती है।
इलेक्ट्रोथेरेपी : इसमें दवाओं का इस्तेमाल नहीं होता, बल्कि मशीनों की मदद से विभिन्न प्रकार की तरंगों से दर्द में राहत पहुंचाई जाती है। मांसपेशियों में दर्द के साथ सूजन की स्थिति में यह थेरेपी बेहद कारगर है। तरंगें प्रभावित हिस्से पर सीधा असर डालती हैं। इसमें इलाज के दौरान ठंडी-गर्म सिंकाई और ट्रैक्शन के अलावा लेज़र, अल्ट्रासोनिक आदि मशीनों का भी इस्तेमाल होता है।
इंस्टेंट या ऑर्थोपेडिक मैनुअल थेरेपी : कई बार अचानक दर्द होता है। ऐसे में फिजियोथेरेपिस्टइंस्टेंट थेरेपी का प्रयोग करते हैं। इसमें प्रभावित हिस्से की मांसपेशियों के खिंचाव या उनके डिस्लोकेट होने की स्थिति में मांसपेशियों का पोस्चर ठीक करके इस समस्या को दूर किया जाता है। स्पॉण्डिलाइटिस, कमर दर्द और चोट लगने पर यह तरीका बहुत मददगार साबित होता है।
इंटीगे्रटेड होलिस्टिक हीलिंग थेरेपी : यह खासतौर पर वृद्धों, बच्चों और ऐसे सभी लोगों के लिए कारगर है, जो स्वास्थ्य संबंधी किसी भी अति गंभीर समस्या की वजह से दूसरों पर पूरी तरह निर्भर हो गए हैं। इसमें व्यायाम के साथ मरीज़ की बॉडी क्लॉक को ध्यान में रखते हुए दिनचर्या, खानपान में बदलाव की मदद से उपचार किया जाता है। यह थेरेपी न्यूरोलॉजी से संबंधित समस्याओं के उपचार में बहुत मददगार साबित होती है। पैरालिसिस होने की स्थिति में ब्रेन के साथ मांसपेशियों का तालमेल बिगड़ जाता है। इससे बॉडी मसल्स अपना सही एक्शन भूल जाती हैं। ऐसी स्थिति में फिजि़योथेरेपी की मदद से उन्हें रीएजुकेट करके दोबारा काम करना सिखाया जाता है। इसके लिए इलेक्ट्रोथेरेपी की भी मदद ली जाती है।
फेफड़ों को रखें स्वस्थ
यह उपचार पद्धति केवल हड्डियों और मांसपेशियों तक सीमित नहीं है। यह हमारे श्वसन-तंत्र को दुरुस्त रखने में भी मददगार होती है। फेफड़ों की समस्याओं के उपचार के लिए कार्डियोवैस्कुलर फिजि़योथेरेपिस्ट मरीज़ों से गुब्बारे फुलाने, कैंडल बुझाने जैसे अभ्यास के अलावा सांस रोकने और छोडऩे वाली एक्सरसाइज़ भी करवाते हैं। इस पद्धति की मदद से कार्डियोवैस्कुलर फिजि़योथेरेपिस्ट गर्दन और छाती की मांसपेशियों की स्ट्रेचिंग करवाते हैं, ताकि उनमें मज़बूती आ जाए। एस्थमा के मरीज़ों को इससे बहुत जल्दी राहत मिलती है।
कमर दर्द से राहत
पीठ और कमर-दर्द के इलाज के लिए फिजि़योथेरेपी में कुछ सामान्य तरीके आज़माए जाते हैं। इनमें से एक है, शरीर का वज़न कम करना ताकि जोड़ों पर पडऩे वाले अतिरिक्त भार को कम किया जा सके। दूसरा, मांसपेशियों की मज़बूती और तीसरा तरीका है, री-पैटर्निंग ऑफ मसल्स यानी शरीर के किसी खास हिस्से में मांसपेशियों के पैटर्न को व्यायाम के ज़रिये ठीक करना। पीठ और कूल्हे के निचले हिस्से में दो दर्जन से ज्यादा मांसपेशियां होती हैं, शारीरिक सक्रियता के लिए इनका ठीक रहना बहुत ज़रूरी है।
असहनीय दर्द से छुटकारा
फिजि़योथेरेपी ऑस्टियोपोरोसिस या किसी अन्य फ्रैक्चर में होने वाले दर्द से राहत दिलाती है। इसमें एक्सपर्ट एक्सरसाइज़ की मदद से दर्द के आसपास वाली मांसपेशियों और जोड़ों को मज़बूत बना देते हैं, जिससे दर्द दूर हो जाता है। फिजि़योथेरेपिस्ट कुछ व्यायाम करवाने के साथ विशेष प्रकार के जूते पहनने की भी सलाह देते हैं, जिसे पहनने के बाद मरीज़ आसानी से चल-फिर सकता है। यह तरीका ऐसे बुज़ुर्गों पर भी आज़माया जाता है, जो कमज़ोरी की वजह से चल नहीं पाते। फ्रैक्चर या हिप एवं नी रीप्लेस्मेंट सर्जरी के बाद भी फिजि़योथेरेपी की ज़रूरत पड़ती है।
घुटनों का मददगार फिजि़योथेरेपी का सबसे ज्य़ादा इस्तेमाल ऑस्टियोपोरोसिस, आथ्र्राइटिस और मांसपेशियों के दर्द से राहत के लिए किया जाता है। इस चिकित्सा पद्धति में दर्द की मूल वजहों को तलाश कर उन्हें जड़ से खत्म कर दिया जाता है। मसलन यदि मांसपेशियों में खिंचाव के कारण घुटनों में दर्द है तो स्ट्रेचिंग और व्यायाम के ज़रिये इलाज किया जाता है। यदि पैरों के असंतुलन की वजह से दर्द हो रहा है तो फियोथेरेपिस्ट ऑर्थोटिक्स शू पहनने की सलाह देते हैं, जिससे व्यक्ति के पैर एक सीध में रहते हैं और उसे चलने में दर्द महसूस नहीं होता।
स्त्रियों के लिए फायदेमंद
फिजि़योथेरेपी का इस्तेमाल स्त्री रोगों के उपचार के लिए भी किया जाता है। प्रेंग्नेंसी में फेफड़े के सांस लेने की क्षमता घट जाती है। इसे मज़बूत बनाने के लिए प्रेग्नेंट स्त्रियों से कुछ ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ भी करवाई जाती है। इसके अलावा उनसे कुछ ऐसी एक्सरसाइज़ भी करवाई जाती है, जिससे नॉर्मल डिलिवरी आसान हो जाती है। प्रसव के बाद अकसर होने वाले कमर-दर्द से राहत दिलाने में पोस्ट नैटल फिजि़योथेरेपी मददगार होती है। उम्र बढऩे के बाद कुछ स्त्रियों को यूरिनरी इन्कॉन्टिनेंस की समस्या होती है, ऐसी स्थिति में यूरिन के प्रेशर पर उनका नियंत्रण खत्म हो जाता है।
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