गर्भ में शिशुओं की मौत हो जाना एक बढ़ी समस्या है। और बीते कुछ वक्त से इसके मामलों में बढ़ोतरी भी हुई है। दरअसल गर्भ में ऑक्सीजन की कमी हो जाने पर शिशु के मानसिक विकास पर असर पड़ता है या मृत्यु तक हो जाती है। लेकिन इस समस्या की संख्या में कमी लाने के लिए विशेषज्ञों ने एक नया तरीका ईजाद किया है।
पहली बार विशेषज्ञों ने मां के रक्त की जांच कर यह पता लगाने में सफलता हासिल की है कि गर्भ में विकसित भ्रूण को ऑक्सीजन की कमी से कोई खतरा तो नहीं है। गर्भ में ऑक्सीजन की कमी की समस्या से बहुत सी महिलायें जूझती हैं।
ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं ने इस संदर्भ में कहा कि गर्भ में शिशु को ऑक्सीजन की कमी हो जाने पर आरएनए (जेनेटिक तत्व) के कुछ पार्टिकल्स प्लेसेंटा से महिला के रक्त में पहुंच जाते हैं। ऐसा होने का सीधा मतलब है कि गर्भ में मौजूद शिशु को खतरा है।
मर्सी हेल्थ ट्रांसलेशनल ऑब्टेट्रिक्स ग्रुप के स्टीफन टोंग के अनुसार ऐसी स्थिति की जांच के लिए अधिकतर डॉक्टर अल्ट्रासाउंड पर ही निर्भर होते हैं। लेकिन केवल अल्ट्रासाउंड से परिणाम उतने सटीक नहीं आते हैं। यह शोध बीएमसी मेडिसन में प्रकाशित हुआ।
वहीं लांसेट के 2011 में आए अध्ययन में बताया गया था कि दुनिया में रोज 7300 बच्चे गर्भ में ही मर जाते हैं। इस अध्ययन के ही अनुसार सालाना यह आंकड़ा 26 लाख मृत बच्चों का है। दुनिया में 98 प्रतिशत मृत बच्चे कम या औसतन आय वाले देशों में पैदा होते हैं और इस प्रकार के 75 प्रतिशत मृत बच्चे दक्षिण एशिया व अफ्रीका में होते हैं।
मृत बच्चों के सबसे अधिक मामले पाकिस्तान में हैं। पाकिस्तान में 46 प्रतिशत बच्चे मृत पैदा होते हैं वहीं नाइजीरिया में यह 41 प्रतिशत है।
यह आंकड़ा सबसे कम (प्रति हजार पर केवल दो मृत शिशुओं का जन्म) फिनलैंड और सिंगापुर में है। ऑस्ट्रेलिया में हर साल दो हजार शिशु गर्भ में ही मर जाते हैं। जबकि भारत में गर्भस्थ शिशुओं की मृत्यु दर प्रति हजार पर 22 शिशुओं की है। लेकिन गंभीर बात यह है कि कुछ राज्यों में यह आंकड़ा 60 पार कर जाता है।
शोधकर्ताओं ने ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड के 7 अस्पतालों की 180 गर्भवती महिलाओं का रक्त परीक्षण और उनके गर्भस्थ शिशु की सेहत का परीक्षण कर यह निष्कर्ष निकाला। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगले पांच वर्षों में यह टेस्ट सभी जगहों पर उपलब्ध हो सकेगा।
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