

औषधीय गुणों के कारण गुणकारी नीम सदियों से भारत में कीट-कृमिनाशी और जीवाणु-विषाणुनाशी के रूप में प्रयोग में लाया जाता रहा है। अब कोलकाता के वैज्ञानिक इसके प्रोटीन का इस्तेमाल करते हुए कैंसर के खिलाफ जंग छेड़ने की तैयारी में जुट गए हैं। चित्तरंजन नेशनल कैंसर इंस्टीच्यूट (सीएनसीआई) के अनुसंधानकर्ताओं की एक टीम ने अपने दो लगातार पर्चो में बताया है कि किस तरह नीम की पत्तियों से संशोधित प्रोटीन चूहों में ट्यूमर के विकास को रोकने में सहायक हुआ है।
कैंसर की कोशिकाओं को सीधे निशाना बनाने के बजाय यह प्रोटीन-नीम लीफ ग्लाइकोप्रोटीन या एनएलजीपी- ट्यूमर के भीतर और रक्त जैसे परिधीय तंत्र में मौजूद प्रतिरक्षण कोशिकाओं (जो कोशिकाएं शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों से प्रतिरक्षा प्रदान करने के लिए उत्तरदायी होती हैं) को बल प्रदान करता है। प्रतिरक्षण कोशिकाएं आम तौर पर कैंसर कोशिकाओं के साथ ही नुकसान पहुंचाने वाली कोशिकाओं की शत्रु होती हैं। ट्यूमर के विकास के दौरान कैंसर वाली कोशिकाएं अपने विकास और विस्तार के लिए इन प्रतिरक्षक कारकों को अपना दास बना लेती हैं। इसलिए इन जहरीली कोशिकाओं को मारने की जगह प्रतिरक्षक कोशिकाएं उनकी सहायता करने लगती हैं।
एनएलजीपी की खासियत यह है कि यह ट्यूमर के चारों ओर मौजूद कोशिका परिवेश (इसे ट्यूमर सूक्ष्मपारिस्थितिकी कहा जाता है) का सुधार करता है और उन कोशिकाओं को एक सामान्य अवस्था की ओर अग्रसित करता है, जो कैंसर कोशिकाओं की तरह खतरनाक हो रही होती हैं।
सीएनसीआई के इम्यूनोरेग्युलेशन एंड इम्यूनडाइग्नोस्टिक्स विभाग के अध्यक्ष रथिंद्रनाथ बराल ने कहा, हमारे हाल के अध्ययन में हमने पाया है कि एनएलजीपी में ट्यूमर कोशिकाएं और ट्यूमर से संबद्ध गैर परिवर्तित कोशिकाएं जो ट्यूमर के विकास में सहायक होती हैं, से युक्त ट्यूमर की सूक्ष्म-पारिस्थितिकी को सामान्य करने की शक्ति मौजूद है। मूल रूप से एनएलजीपी ट्यूमर की सूक्ष्मपारिस्थतिकी में इस तरह से बदलाव लाता है, जिससे उसका आगे का विकास बाधित हो जाता है।
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