अगर शरीर के प्रमुख अंगों की बात की जाए तो इस दृष्टि से फेफड़ों की अहमियत सबसे ज्य़ादा है क्योंकि इन्हीं की वजह से हम सांस ले पाते हैं। नाक और सांस की नलियों के साथ मिलकर ये शरीर के भीतर शुद्ध ऑक्सीजन पहुंचाने और कॉर्बनडाइऑक्साइड को बाहर निकालने का काम करते हैं। भले ही ये शरीर के भीतर होते हैं पर प्रदूषण का सबसे ज्य़ादा असर इन्हीं पर ही पड़ता है। चिंताजनक बात यह है कि मेडिकल साइंस के क्षेत्र में अभी कोई ऐसी तकनीक उपलब्ध नहीं है, जिससे किडनी, लिवर या हार्ट की तरह लंग्स को भी टांस्प्लांट किया जा सके। इसीलिए हमें इनका विशेष ध्यान रखने की ज़रूरत होती है।
क्या है कार्य प्रणाली
हमारे शरीर को जीवित रखने के लिए प्रत्येक कोशिका को शुद्ध ऑक्सीजन की ज़रूरत होती है। इसे पूरा करने जि़म्मेदारी हमारे श्वसन-तंत्र पर होती है, जो नाक, सांस की नलियों और फेफड़ों के साथ मिलकर सांस लेने और छोडऩे की प्रक्रिया को संचालित करता है।
सांस लेने के दौरान नाक के ज़रिये हवा फेफड़ों तक पहुंचती है। उसमें मौज़ूद धूल-कण और एलर्जी फैलाने वाले बैक्टीरिया के कुछ अंश नाक के भीतर ही फिल्टर हो जाते हैं पर इतना ही काफी नहीं है। फेफड़ों में अत्यंत बारीक छलनी की तरह छोटे-छोटे असंख्य वायु तंत्र होते हैं, जिन्हें एसिनस कहा जाता है। फेफड़े में मौज़ूद ये वायु तंत्र हवा को दोबारा फिल्टर करते हैं। इस तरह ब्लड को ऑक्सीजन मिलता है और हार्ट के ज़रिये शरीर के हर हिस्से तक शुद्ध ऑक्सीजन युक्त ब्लड की सप्लाई होती है।
इसके बाद बची हुई हवा को फेफड़े दोबारा फिल्टर करके उसमें मौज़ूद नुकसानदेह तत्वों को सांस छोडऩे की प्रक्रिया द्वारा शरीर से बाहर निकालने का काम करते हैं। अगर लंग्स अपना काम सही तरीके से न करें तो दूषित वायु में मौज़ूद बैक्टीरिया और वायरस रक्त में प्रवेश करके दिल सहित शरीर के अन्य प्रमुख अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
कब होती है रुकावट
वातावरण में मौज़ूद वायरस और बैक्टीरिया की वजह से फेफड़े में संक्रमण और सूजन की समस्या होती है, जिसे न्यूमोनिया कहा जाता है। सांस का बहुत तेज़ या धीरे चलना, सीने से घरघराहट की आवाज़ सुनाई देना, खांसी-बुखार आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। छोटे बच्चों और बुज़ुर्गों का इम्यून सिस्टम बहुत कमज़ोर होता है। इसलिए अकसर उनमें यह समस्या देखने को मिलती है। प्रदूषण फेफड़े का सबसे बड़ा दुश्मन है। ज्य़ादा स्मोकिंग करने वाले लोगों के फेफड़े और सांस की नलियों में नुकसानदेह केमिकल्स का जमाव होने लगता है।
आमतौर पर सांस की नलियां भीतर से हलकी गीली होती हैं लेकिन धुआं, धूल और हवा में मौज़ूद प्रदूषण की वजह से इनके भीतर मौज़ूद ल्यूब्रिकेंट सूखकर सांस की नलियों की भीतरी दीवारों से चिपक जाता है। इससे व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होती है। चालीस वर्ष की आयु के बाद लोगों को यह समस्या ज्य़ादा परेशान करती है क्योंकि उम्र बढऩे के साथ व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर पड़ जाती है।
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बदलते मौसम में हानिकारक बैक्टीरिया ज्य़ादा सक्रिय होते हैं और उनसे लडऩे के लिए इम्यून सिस्टम को ज्य़ादा मेहनत करनी पड़ती है। इसलिए कुछ लोगों को इस दौरान भी सांस लेने में परेशानी होती है। ज्य़ादा गंभीर स्थिति में ब्रेन तक ऑक्सीजन पहुंचने के रास्ते में भी रुकावट आती है तो ऐसी अवस्था सीपीओडी यानी क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ कहा जाता है। ऐसी स्थिति में मरीज़ को नेब्युलाइज़र द्वारा दवा देने की ज़रूरत होती है और डॉक्टर पल्स ऑक्सीमीटर द्वारा यह जांचते हैं कि ब्रेन को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीज़न मिल रही है या नहीं?
अगर ब्रेन में ऑक्सीजन सैचुरेशन 90 प्रतिशत से कम हो तो व्यक्ति को अलग से ऑक्सीजन देने की आवश्यकता होती है। ऐसे हालात में उसे कुछ समय के लिए हॉस्पिटल में एडमिट कराने की भी नौबत आ सकती है। कुछ विशेष स्थितियों में सीपीओडी के गंभीर मरीज़ों के लिए घर पर ही पल्स ऑक्सीमीटर, ऑक्सीजन सिलिंडर या कंसंट्रेटर रखने की ज़रूरत पड़ती है। उन उपकरणों का इस्तेमाल बहुत आसान होता है और इनकी मदद से मरीज़ के लिए सांस लेने की प्रक्रिया आसान हो जाती है।
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उपचार से बेहतर बचाव
अगर आप खुद को सीओपीडी, न्यूमोनिया और टीबी जैसी गंभीर बीमारियों से बचाना चाहते हैं तो स्मोकिंग से दूर रहें। मॉर्निंग वॉक के लिए मास्क पहन कर जाएं। कार का शीशा हमेशा बंद रखें। बच्चों को इन्फेक्शन से बचाने के लिए घर में सफाई का पूरा ध्यान रखें। वैसे आजकल न्यूमोनिया से बचाव के लिए लिए वैक्सीन भी उपलब्ध हैं। डॉक्टर की सलाह पर परिवार के सभी सदस्यों का वैक्सिनेशन ज़रूर करवाएं। चेस्ट की फिजि़योथेरेपी और ब्रीदिंग एक्सराइज़ से भी राहत मिलती है। अनुलोम-विलोम की क्रिया भी फेफड़ों को स्वस्थ बनाए रखने में मददगार होती है। इसके बावज़ूद अगर सांस लेने में तकलीफ हो तो बिना देर किए डॉक्टर से सलाह लें।
फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए एंटी ऑक्सीडेंट तत्वों से भरपूर रंग-बिरंगे फलों और हरी पत्तेदार सब्जि़यों का पर्याप्त मात्रा में सेवन करें। विटमिन सी युक्त खट्टे फल भी इम्यून सिस्टम की सक्रियता बढ़ाकर फेफड़ों को मज़बूती देते हैं।
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