कृत्रिम गर्भाधान से जन्म लेने वाले बच्चों को पिता की तरफ से कोई गंभीर बीमारी तो नहीं मिल रही है, इसका पता लगाना अब संभव हो सकेगा। दिसंबर माह में अमेरिका की 'जीनपीक्स' नामक कंपनी यह तकनीक शुरू करने जा रही है।
दरअसल, 30 फीसदी बच्चे दुर्लभ आनुवांशिक बीमारियों के कारण पांच साल की उम्र पार नहीं कर पाते। ऐसे मामलों से निपटने में यह तकनीक कारगर साबित हो सकती है। न्यूयॉर्क स्थित यह कंपनी अपनी महिला क्लाइंट के लिए भावी पिता के शु्क्राणुओं से मिले डीएनए के आधार पर डिजिटल शिशु विकसित करेगी।
कंपनी का कहना हे कि इस तकनीक के दो लाभ है। पहला तो यह कि शुक्राणु दान के जरिये गर्भधारण करने वाली महिलाएं अपने होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर आश्वस्त हो सकेंगी। इसका दूसरा फायदा यह होगा कि कंपनी अपनी महिला क्लाइंट को एक कैटेलॉग के जरिये संभावित पिता के चुनाव में मदद करेगी।
इस तकनीक से संभावित पिता के डीएनए से संबंधित तकनीकी ब्योरा पहले ही मिल जाएगा। यह तकनीक ऐसे डोनर पर प्रयोग की जाएगी जिनकी उर्वरता तो सर्वोतम है लेकिन जिनसे वंशानुगत बीमारियों के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में पहुंचने का खतरा भी अधिक है।
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