घुटने और कूल्हे के प्रत्यारोपण के बाद इन अंगों को सक्रिय तो किया जा सकता है, लेकिन इनके कारण दिल को नुकसान होता है और बाद में इससे हृदयाघात का खतरा बढ़ जाता है। हाल ही में न्यूयार्क में हुए एक शोध में यह बात सामने आयी।
इस रिसर्च के परिणाम यह दिखाते हैं कि इस प्रक्रिया के बाद दीर्घकालिक हृदयाघात का जोखिम तो नहीं होता लेकिन कुछ समय के लिए नर्व और फेफड़ों में खून के थक्के जमने का जोखिम बना रहता है।
जब ज्वाइंट कार्टिलेज यानी संयुक्त उपास्थियां और अस्थियां क्षरित होने लगती हैं तो घुटने या कुल्हे का प्रतिरोपण ही दर्द और अकड़न से निजात पाने एवं गतिशीलता बनाए रखने के लिए एक मात्र विकल्प हो सकता है।
अमेरिका के बोस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन ने इसपर शोध किया। इसके मेडीसिन एवं एपिडिमियोलोजी के प्रोफेसर युकिंग झांग ने बताया, ‘इस बात के सबूत हैं कि संयुक्त प्रतिरोपण सर्जरी से अस्थि रोगियों को दर्द से आराम होता है, जीवन की गुणवत्ता सुधर जाती है लेकिन इससे उनके हृदय के सेहत पर पड़ने वाले प्रभाव की पुष्टि नहीं हुई।'
उन्होंने यह भी बताया, ‘हमारा शोध इस बात का परीक्षण करता है कि क्या जोड़ों की प्रतिरोपण सर्जरी से अस्थि रोगियों में गंभीर हृदय रोग का जोखिम घटता है या नहीं।’ उन्होंने कहा कि पूर्ण घुटना एवं कुल्हा प्रतिरोपण कराने वालों के लिए पहले महीने और उसके बाद कुछ समय के लिए शिराओं में खून के थक्के जमने का जोखिम रहता है।