Judgemental Hai Kya: क्‍या भारत में 'मजाक' बनकर रह जाते हैं मानसिक रोगी, जानें मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट की राय

कंगना रानौत और राजकुमार राव की फिल्‍म 'जजMental Hai Kya' 26 जुलाई को रिलीज हो रही है। क्‍या ये फिल्‍म मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति असंवेदनशीलता को बढ़ा रही? जानें एक्‍सपर्ट की राय। 
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Judgemental Hai Kya: क्‍या भारत में 'मजाक' बनकर रह जाते हैं मानसिक रोगी, जानें मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट की राय


कंगना रानौत और राजकुमार राव अभिनीत फिल्‍म Judgemental Hai Kya का ट्रेलर रिलीज हो चुका है। कई ट्विस्‍ट और मर्डर मिस्‍ट्री से भरा ये ट्रेलर काफी थ्रिलिंग है। इसमें कंगना और राजकुमार का किरदार हंसाने वाला है तो वहीं दोनों को मानसिक समस्‍याओं से ग्रसित दिखाया गया है। इस फिल्‍म की निर्माता एकता कपूर हैं। 

आपको बता दें कि इस फिल्‍म को पहले "मेंटल है क्‍या" के नाम से बनाई जा रही थी। इसका पोस्‍टर भी जारी हो चुका था। लेकिन नाम को लेकर ऑल इंडिया साइकियाट्री डिपार्टमेंट की आपत्ति के बाद इस फिल्म का नाम "मेंटल है क्‍या" से "Judgemental Hai Kya" कर दिया गया। इस फिल्‍म के नाम को लेकर संस्‍था का कहना था कि, इसे फिल्‍म मानसिक रोग को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। 

वहीं दीपिका पादुकोण के लिव लव लाफ फाउंडेशन ने भी फिल्‍म के नाम पर आपत्ति जताई थी। वहीं सेंसरबोर्ड की आपत्ति के बाद इस फिल्‍म को अब "जजMental Hai Kya" के नाम से 26 जुलाई को रिलीज किया जा रहा है।

ये तो हुई फिल्‍म की बात, मगर यहां फिल्‍म के नाम से उपजे मानसिक रोग से जुड़े मुद्दों को समझने के लिए हमने मानसिक रोग विशेषज्ञ से बातचीत की। इस पर उन्‍होने विस्‍तार से अपनी राय रखी।  

गौतमबुद्ध युनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ साइकोलॉजी के विभागाध्‍यक्ष डॉक्‍टर आनंद प्रताप सिंह ने कहा, "हमारे समाज में काफी पुराने समय से बहुत ही तिरस्‍कृत भाव से लोगों के लिए मेंटल शब्‍द का प्रयोग किया जाता रहा है। अगर बॉलीवुड ऐसे शब्‍दों का चयन फिल्‍मों के लिए करेगी तो समाज पर नकारात्‍मक प्रभाव पड़ सकता है। मानसिक रोग एक जटिल समस्‍या है। मानसिक समस्‍या को अगर गंभीरता से लेने के बजाए, मजाक में लिया जाएगा या किसी फिल्‍म का नाम रखा जाएगा तो यह समाज के लिए और मानसिक रोगियों के लिए सही नहीं होगा। इससे मानसिक समस्‍याओं की गंभीरता के प्रति असंवेदनशीतला बढ़ती है। इससे भ्रांतियों को बढ़ावा मिलेगा" 

डॉक्‍टर आनंद आगे कहते हैं "बदलते परिवेश में लोगों में मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को लेकर स्‍वीकार्यता बढ़ी है, ऐसे में यदि 'मेंटल है क्‍या' जैसे नामों की फिल्‍म समाज में आएंगी या ऐसी फिल्‍में जो मनोरोग को मजाक के तौर पर प्रस्‍तुत करेंगी तो मानसिक रोगियों के प्रति लोगों में बढ़ रही स्‍वीकार्यता कमजोर पड़ जाएगी, ऐसी फिल्‍मों को हास्‍यास्‍पद बनाना सही नहीं है।"

डॉक्‍टर आनंद के मुताबिक, ऐसी फिल्‍मों की पटकथा ऐसी होनी चाहिए जो मानसिक रोग के वैज्ञानिक पहलुओं को प्रस्‍तुत करे और भ्रांतियों को दूर करे और लोगों में जागरूकता फैलाए, इसके अलावा फिल्‍मों के नाम भी ऐसे होने चाहिए जिसमें मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति लोगों में सकारात्‍मक सोच विकसित किया जा सके। 

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