Suicide Prevention Tips in Hindi: भारत में कोविड महामारी के समय से ही सुसाइड यानि आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़े (Suicide Cases Rise in India after Covid) हैं। कुछ लोग आर्थिक तंगी, कुछ मेंटल हेल्थ खराब होने तो कुछ लोग शारीरिक बीमारियों के चलते आत्महत्या कर लेते हैं। आजकल युवाओं के साथ ही कम उम्र के बच्चे तक अपनी जान लेने पर तुले रहते हैं। वे तो चले जाते हैं, लेकिन इसका खामियाज़ा उनके परिवार को पूरी जिंदगी भुगतना पड़ता है। हाल ही में एक्ट्रेस मलाइका अरोड़ा के पिता अनिल अरोड़ा ने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली थी। चाहे सेलिब्रिटी हो या आम इंसान आत्महत्या के मामले हर तपके के लोगों में शामिल हैं।
मेंटल हेल्थ के अलावा अन्य पहलुओं पर भी ध्यान देना जरूरी
10 सितंबर को दुनियाभर में वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे (World Suicide Prevention Day) मनाया जाता है। इस मौके पर द लांसेट जर्नल (The Lancet journal) में एक स्टडी छपी है। जिसके मुताबिक भारत में आत्महत्या के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए केवल मेंटल हेल्थ ही नहीं बल्कि, अन्य भी कई पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है। लांसेट में छपी 6 सीरीज के मुताबिक आत्महत्या को केवल मेंटल हेल्थ से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। इसके पीछे गरीबी, लड़ाई-झगड़ा, समाज से अलग या सोशल इंटरेक्शन कम होने और कर्ज आदि जैसे कई पहलु शामिल हैं। जिनपर मेंटल हेल्थ से हटकर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
एक लाख 70 हजार लोग हर साल करते हैं आत्महत्या
सीरीज की लेखिका और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की प्रोफेसर डॉ. राखी डंडोना ने कहा कि आत्महत्या को रोकने के लिए निश्चित रूप से दूसरे पहलुओं पर भी गौर करना जरूरी है। आज के समय में हमारे पास काफी डेटा है, जो बताता है कि हमें मेंटल हेल्थ से परे होकर भी इसपर कुछ करना चाहिए। आंकड़ों की मानें तो भारत में हर साल एक लाख 70 हजार लोग आत्महत्या कर अपनी जान दे देते हैं।
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आत्महत्या को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है?
डॉ. डंडोना के मुताबिक आत्महत्या के मामलों को रोकने के लिए हमें इसके पीछे के कारणों को समझना होगा। साथ ही एक दृष्टिकोण बनाकर लोगों की आर्थिक तंगी, समाज के दबाव और अन्य समस्याओं को समझते हुए एक अच्छा माहौल या वातावरण बनाने की जरूरत है। हो सकता है कि इस तरह के दृष्टिकोण को अपनाकर आत्महत्या के सिलसिले को कम किया जा सके।