गर्भाशय (बच्चेदानी) से जुड़ी समस्याओं में किया जाता है हिस्टेरोस्कोपी टेस्ट, जानें इससे जुड़ी जरूरी बातें

महिलाओं की बच्चेदानी से जुड़ी कई समस्याओं में हिस्टेरोस्कोपी जांच बहुत उपयोगी मानी जाती है, जानें इसके फायदे, उपयोग और जोखिम के बारे में।

Prins Bahadur Singh
Written by: Prins Bahadur SinghUpdated at: Oct 21, 2021 19:34 IST
गर्भाशय (बच्चेदानी) से जुड़ी समस्याओं में किया जाता है हिस्टेरोस्कोपी टेस्ट, जानें इससे जुड़ी जरूरी बातें

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महिलाओं में बच्चेदानी से जुड़ी कई समस्याओं में हिस्टेरोस्कोपी की जांच बहुत उपयोगी मानी जाती है। मासिक धर्म के दौरान होने वाली दिक्कतों या प्रेग्नेंसी आदि से जुड़ी समस्याओं में यह जांच बहुत उपयोगी मानी जाती है और इसकी सलाह चिकित्सक देते हैं। इस जांच में डॉक्टर गर्भाशय की ग्रीवा और गर्भाशय को करीब से बिना ऑपरेशन किये देखकर स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं। हिस्टेरोस्कोपी की जांच बच्चेदानी से जुड़ी समस्याओं में जानकारी जुटाने के लिए बिना ऑपरेशन एक सफल विकल्प माना जाता है। गर्भाशय में सेप्टम, गर्भाशय में फाइब्रॉयड या पॉलिप आदि होने पर आप हिस्टेरोस्कोपी की सहायता ले सकते हैं। आइये विस्तार से जानते हैं इस जांच के बारे में।

हिस्टेरोस्कोपी क्या है? (What Is Hysteroscopy?)

Hysteroscopy-Procedure-Uses-Risks

(image source - freepik.com)

हिस्टेरोस्कोपी एक ऐसी जांच है जिसका प्रयोग ब्लीडिंग और बच्चेदानी से जुड़ी कई समस्याओं में किया जाता है। बच्चेदानी से जुड़ी समस्याओं की जांच और उपचार दोनों के लिए आप इसका प्रयोग कर सकते हैं। इस जांच के माध्यम से डॉक्टर हिस्टेरोस्कोप के माध्यम से गर्भाशय के अंदर करीब से देख सकते हैं। हिस्टेरोस्कोप एक तरह की रोशनी वाली ट्यूब होती है जिसकी सहायता से आप गर्भाशय ग्रीवा और गर्भाशय के अंदर की जांच कर सकते हैं। हिस्टेरोस्कोपी की जांच दो तरह से की जाती है। आइये जानते हैं इनके प्रकार के बारे में।

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1. डायग्नोस्टिक हिस्टेरोस्कोपी (Diagnostic Hysteroscopy)

डायग्नोस्टिक हिस्टेरोस्कोपी का प्रयोग गर्भाशय की समस्याओं की जांच के लिए किया जाता है। बच्चेदानी में होने वाली दिक्कतों की जांच और उनके निदान में आप इस जांच का इस्तेमाल कर सकते हैं। कई अन्य परीक्षणों के परिणामों की पुष्टि करने के लिए भी आप डायग्नोस्टिक हिस्टेरोस्कोपी का इस्तेमाल कर सकते हैं।  हिस्टेरोसाल्पिंगोग्राफी (एचएसजी) जैसे जांच में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, हिस्टेरोस्कोपी का उपयोग अन्य प्रक्रियाओं के साथ भी किया जा सकता है। लैप्रोस्कोपी में भी आप इस जांच का इस्तेमाल कर सकते हैं। लैप्रोस्कोपी में, आपका डॉक्टर आपके गर्भाशय, अंडाशय और फैलोपियन ट्यूब के बाहर देखने के लिए आपके पेट में एक एंडोस्कोप (फाइबर ऑप्टिक कैमरा से सुसज्जित एक पतली ट्यूब) का इस्तेमाल करते है।

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2. ऑपरेटिव हिस्टेरोस्कोपी (Operative Hysteroscopy)

डायग्नोस्टिक हिस्टेरोस्कोपी की जांच के दौरान बच्चेदानी में मौजूद दिक्कतों और समस्याओं को दूर करने के लिए ऑपरेटिव हिस्टेरोस्कोपी का इस्तेमाल किया जाता है। डॉक्टर डायग्नोस्टिक हिस्टेरोस्कोपी के दौरान जब किसी भी समस्या या असामान्य स्थिति की जांच करते हैं तो दूसरी सर्जरी से बचाने के लिए उसी समय ऑपरेटिव हिस्टेरोस्कोपी का प्रयोग किया जाता है। ऑपरेटिव हिस्टेरोस्कोपी के दौरान, स्थिति को ठीक करने के लिए उपयोग किए जाने वाले छोटे उपकरणों को हिस्टेरोस्कोप के माध्यम से डाला जाता है।

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हिस्टेरोस्कोपी की आवश्यकता (Hysteroscopy Uses)

हिस्टेरोस्कोपी का प्रयोग इन स्थितियों में किया जाता है।

  • मेनोपॉज के बाद ब्लीडिंग की समस्या में।
  • गर्भाशय पर फाइब्रॉएड, पॉलीप्स या निशान।
  • एक से अधिक गर्भपात या गर्भवती होने में समस्या।
  • गर्भाशय की परत के एक छोटे ऊतक के नमूने (बायोप्सी) की जरूरत होने पर।
  • नसबन्दी के कारण होने वाली दिक्कत।
  • आईयूडी जगह से बाहर आ जाने पर।
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हिस्टेरोस्कोपी का प्रोसीजर (Hysteroscopy Procedure)

हिस्टेरोस्कोपी के दौरान जांच करने वाला डॉक्टर आपकी योनि (वेजाइना) में जांच करने वाले उपकरण हिस्टेरोस्कोप का इस्तेमाल करते हैं। हिस्टेरोस्कोप एक तरह की पलती प्रकाश की ट्यूब होती है जिसके माध्यम से आप गर्भाशय ग्रीवा और गर्भाशय तक देख पाने में सक्षम होते हैं। इस जांच के दौरान अगर डॉक्टर को कुछ असामान्य दिखता है तो उसकी जांच के लिए अलग से नमूना ले सकते हैं। 

हिस्टेरोस्कोपी के रिस्क (Hysteroscopy Risk)

महिलाओं को हिस्टेरोस्कोपी प्रक्रिया के बाद योनि से हल्की ब्लीडिंग और ऐंठन की समस्या हो सकती है। इस प्रक्रिया के दौरान भी आपको कुछ ऐंठन महसूस हो सकती है। इसके अलावा हिस्टेरोस्कोपी जांच के बाद कुछ समस्याएं हो सकती हैं। गर्भाशय के छेद में दिक्कत, ब्लीडिंग, संक्रमण और पाचन तंत्र या मूत्राशय को नुकसान जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इस जांच के प्रमुख रिस्क फैक्टर इस प्रकार से हैं।

  • एनेस्थीसिया से समस्या
  • संक्रमण
  • गर्भाशय ग्रीवा में दिक्कत
  • गर्भाशय में गैस या तरल पदार्थ की दिक्कत
  • मूत्राशय, आंत्र, या अंडाशय जैसे आस-पास के अंगों को नुकसान
  • पेल्विक सूजन की बीमारी
  • बुखार, गंभीर पेट दर्द

इन लक्षणों के दिखने पर आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। बच्चेदानी (गर्भाशय) से जुड़ी समस्याओं में हिस्टेरोस्कोपी की जांच बहुत फायदेमंद मानी जाती है। इस जांच की जरूरत होने पर चिकित्सक के परामर्श के बाद ही इसका उपयोग करना चाहिए।

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