हमें मालूम है कि दूसरों से अपनी तुलना करना अच्छा नहीं। हमें मालूम है कि हर इनसान अलग होता है और उसकी खूबियां भी। हमें यह भी मालूम होता है कि हम अपने आप में अनोखे और अद्भुत हैं। सब कुछ तो मालूम होता है हमें ।लेकिन, बावजूद इसके हम क्यों दूसरों से खुद को तौलने में लग जाते हैं। हम क्यों इस सोच में डूब जाते हैं कि आखिर हम उस जैसे क्यों नहीं। हम क्यों खुद को कमतर मानकर अवसाद के सागर में डुबकियां लगाने लग जाते हैं। सब कुछ जानते बूझते हुए भी... क्यों... ।
रोज क्यों नकारात्मक खयाल हमारे मन के आंगन में डेरा डालकर बैठ जाते हैं। हम क्यों अपने ही अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न उठाने लगते हैं। क्यों हमें लगने लगता है कि हम प्यार किये जाने के काबिल ही नहीं। क्यों भीतर से यह आवाज आती रहती है कि अपनी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। ऐसे ही कई क्यों विचारों की डोरियों में उलझते रहते हैं।
इनसान की सबसे बड़ी जद्दोजेहद अपने आप से होती है। खुद के भीतर उठते झंझावतों से लगातार जूझना ही उसकी नियति का अंग बन जाता है। हम बहाने से अपने भीतर नयी-नयी खामियां तलाश्ते हैं। आखिर इतनी उम्र होने के बाद भी हम अकेले क्यों हैं। मेरी कमाई बहुत कम है। आखिर मेरा जीवन इतना सामाजिक क्यों नहीं है। दूसरों के सामने आखिर मेरे बर्ताव में यह फर्क क्यों आ जाता है। जैसे-जैसे आप इस प्रकार के विचारों में गहरे उतरते जाते हैं वैसे-वैसे यह लिस्ट लंबी और लंबी होती जाती है। और यह नाहक दबाव हमें जिंदगी की खूबसूरती से महरूम कर देता है। हम अपनी खूबियों-खासियतों की ओर देखने का वक्त ही नहीं मिलता।
हमारी सोच एक खास जगह आकर अटक जाती है। हमारे भीतर बैठा आत्मालोचक हमारे आत्मसम्मान को तार-तार कर देता है। हमें खुद से नफरत होने लगती है। इस वक्त हम कुछ खाना, रोजमर्रा के टीवी शो देखना या फिर सोना ही पसंद करते हैं। लेकिन, क्या यही जीवन है। आत्म-विश्लेषण करना करना अच्छी बात है। और वक्त के साथ-साथ उसमें सुधार करना भी। आत्म-आलोचना भी उतनी बुरी नहीं। लेकिन, उसे खुद पर हावी होने देना, तो पूर्णत: अस्वीकार्य है।
इस तथ्य को स्वीकार्य कीजिये कि आप इनसान हैं। आपकी कुछ अपनी सीमायें हैं। और ऐसा होना कोई बुरी बात नहीं। हां, हमें अपनी क्षमताओं को लगातार बढ़ाते रहना चाहिये। लेकिन, जब भी आपकी खामियां आपके वजूद पर हावी होने लगें तो इन बातों को याद रखना चाहिये।
तुलना सब करते हैं
हम सब अपनी तुलना दूसरों से करते हैं। और यकीन जानिये जिन लोगों से आप अपनी तुलना करते हैं, वे भी अपनी तुलना दूसरों से जरूर करते होंगे। जब आप दूसरे व्यक्तियों को ईर्ष्या और निणर्यात्मक दृष्टिकोण से देखते हैं, तब समस्या शुरू होती है। आवश्यकता तटस्थ होकर उस व्यक्ति को देखने की होती है। इससे आप उसे बेहतर ढंग से समझ और जान पाएंगे। आप यह देखेंगे कि जैसे आप खुद की तुलना उनसे करते हैं, वे भी अपनी तुलना दूसरे लोगों से करते हैं। कहने का अर्थ है कि अपूर्णता का भाव उनके भीतर भी है। और सभी इससे जूझ रहे हैं।
आपका मन झूठ बोल सकता है
किसी ने कहा है कि अपनी सोची हर बात पर विश्वास न करें। और जब आपके भीतर नकारात्मक और अति आत्म आलोचना हावी होने लगे, तो इस वाक्य को अंर्तमन में दोहराइये। विचार केवल विचार होते हैं। और नकारात्मक विचारों को अपने ऊपर हावी होने देना वाकई अपनी ऊर्जा को नष्ट करने समान है।
अच्छाइयों को देखें
हर व्यक्ति के साथ अच्छा-बुरा होता है। आप कोई अपवाद नहीं है जिसकी जिंदगी में कुछ खामियां चल रही हों। जॉन कबाट-जिन का कहना है, 'जब तक आपकी सांसें चल रही हैं, तब तक आपके साथ सही ज्यादा और बुरा कम हो रहा है।'
जब लोग मेरी खामियों के बारे में बात करते हैं, तब मुझे अपनी खूबियां और प्यारी लगने लगती हैं। मुझे अहसास होता है कि अपने बारे में कितनी ही चीजों को मैं बहुत प्यार करता हूं। मुझे यह बहुत अच्छा लगता है कि मैं जिंदा हूं और जीवन के नये आयामों को तलाशने का प्रयासरत भी हूं।
खुद को प्यार करना न भूलें
जब आप कमजोर महसूस कर रहे हों, ऐसे समय में खुद से सबसे ज्यादा प्यार करें। आपने महसूस किया होगा कि जब आप गुस्से, चिंता या अवसाद के शिकार होते हैं, तो लोगों का नजरिया भी आपकी ओर दूसरा होता है। ऐसे समय में किसी से प्यार और समझदारी की उम्मीद करना भी जरा चुनौतीपूर्ण ही होता है। लेकिन, अपने नजरिये को बदलकर आप इस बदलाव को स्वीकार कर सकते हैं। जरूरत है कि आप खुद को प्यार करना सीखें। खुद को समझना सीखें। कई बार यही एकाकीपन आपको आत्मसाक्षात्कार के अवसर देता है। इसी समय आपको अपनी सबसे ज्यादा जरूरत होती है।
परफेक्शन नहीं, प्रोग्रेस पर जोर
परफेक्ट तो कोई भी नहीं। आपको अपने व्यक्तित्व की विकास यात्रा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। कितना आगे जाना है से ज्यादा जरूरी यह जानना है कि आप कितना आगे आ चुके हैं। हम अकसर आगे की यात्रा को लेकर चिंतित रहते हैं, लेकिन कई बार ठहरकर यह देखना भी जरूरी होता है कि आखिर हम कितना आगे आ चुके हैं। और यदि हमारी यह प्रगति संतोषजनक नहीं हो, तो हमें अपने तौर-तरीकों पर पुनर्विचार करना चाहिये। इसका अर्थ यह नहीं कि हम अतीत से अटके रहें, इसका अर्थ है कि हम अतीत से सीखकर आगे की यात्रा को बेहतर बनाने की तैयारी करें।
हमें मालूम है कि यह सब कहना जितना आसान है, करना उतना ही मुश्किल। लेकिन आसानी से आखिर मिलता ही क्या है। प्रयास करते रहना ही इनसानी प्रवृत्ति का हिस्सा है। खुद से प्यार करते रहें और आगे बढ़ने का प्रयास करते रहें।