कैंसर एक प्राणघातक बीमारी है जिससे बहुत कम लोग ही रिकवर हो पाते हैं। इस कारण कई बार लोग कैंसर की बीमारी का पता चलने के कारण अवसादग्रस्त हो जाते हैं। जबकि अवसादग्रस्त होने या तनाव में आने से कैंसर की बीमारी में और अधिक बढ़ोतरी होती है। हाल ही में हुए नए शोध से पता चला है कि मरीज का तनाव उसके कैंसर में औऱ अधिक बढ़ोतरी करता है।
इलाज में बाधा पैदा करता है तनाव
कैंसरग्रस्त मरीज का तनाव बड़ी आंत (कोलोन व रेक्टम) के कैंसर रोगियों के इलाज में गंभीर रूप से बाधा पैदा करता है। हाल ही में किए गए नए शोध से पता चला है कि बिना तनाव रहिक कैंसर रोगियों की तुलना में तनावग्रस्त मरीजों में चिकित्सा थेरेपी कम प्रभावशाली होती है। इस नए शोध से पता चला है कि हर पांच कैंसर मरीजों में से एक कैंसर मरीज इलाज के दौरान अवसाद ग्रस्त हो जाता है जिससे उस पर इलाज का असर अन्य मरीजों की तुलना में कम पड़ता है।
सेहत खराब होने की सात गुना अधिक संभावना
तनावग्रस्त कैंसर रोगियों का सेहत अन्य रोगियों की तुलना में सात गुना अधिक खराब होता है। ये लोग इलाज पूरा होने के दो साल बाद भी काफी मुश्किल से रिकवर हो पाते हैं। फिर भी रिकवर होने के बाद भी इन्हें काफी दिनों तक चलने-फिरने में दिक्कत का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्तियों की जीवन गुणवत्ता दर भी 13 गुना अधिक खराब होती है। इनकी याद्दाश्त में भी फर्क पड़ता है। साथ ही इनका यौन जीवन भी प्रभावित होता है।
ब्रिटेन की युनिवर्सिटी ऑफ साउथहैंपटन में प्रोफेसर क्लेयर फॉस्टर ने कहा, “हमारा शोध बताता है कि कैंसर का पता लगते ही रोगी को चिकित्सा के साथ मनोवैज्ञानिक समर्थन भी देना चाहिए।”यह शोध ‘पीएलओएस ओएनई’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
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