Khushkhabri with IVF: अधिक उम्र और प्रजनन समस्याओं के चलते संतान सुख से वंचित कपल्स के लिए मेडिकल साइंंस ने आईवीएफ ट्रीटमेंट की खोज की है। यह ट्रीटमेंट संतान उत्पत्ति के नए विकल्पों को खोलता है। आज यह तकनीक दुनियाभर के लोगों में लोकप्रिय हो रही है। दरअसल, इस तकनीक की मदद से कई घरों में बच्चों की किलकारियां गुंजी है। यही कारण है कि भारत में जो लोगों संतान प्राप्ति के लिए प्रयासरत होने के बावजूद भी सफल नहीं हो पाते हैं उनके लिए यह तकनीक नई आशा की किरण लेकर आती है। हालांकि, इस आईवीएफ ट्रीटमेंट से पहले महिला और पुरुष के स्वास्थ्य और प्रजनन स्वास्थ्य की बारीकी से जांच की जाती है। इसमें सभी संभावित समस्याओंं को दूर करने का प्रयास किया जाता है। इसके बाद एक निश्चित प्रक्रिया के तहत ट्रीटमेंट को शुरु किया जाता है। इस ट्रीटमेंट में महिला के एग्स को बनाना, एग्स के साथ पुरुष के स्पर्म को मिलाकर एंब्रियों तैयार करना और स्वस्थ एंब्रियों को महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित करने को शामिल किया जाता है। यह एक बेहद जटिल प्रक्रिया होती है, जिसके लिए प्रत्येक चरण का सही होना बेहद आवश्यक होता है। इस ट्रीटमेंट में जब महिला के अधिकतम एग्स को निकालने के लिए कुछ दवाएं इंजेक्ट की जाती हैं तो उससे ओवेरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम का जोखिम बढ़ जाता है। यह स्थिति आईवीएफ ट्रीटमेंट की सफलता दर को प्रभावित कर सकती हैं। इस लेख में आगे जानते हैं कि ओवेरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम से आईवीएफ ट्रीटमेंट पर क्या प्रभाव पड़ता है। साथ ही जानेगें कि ओवरीयन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम क्या है, इसके कारण क्या होते हैं, यह कैसे आईवीएफ प्रक्रिया को प्रभावित करता है, इसके लक्षण, जोखिम कारक और उपचार कैसे किया जाता है।
देश में कई निःसंतान दंपत्तियों की संतान प्राप्ति की इच्छा को पूरा करने में आईवीएफ का एक बड़ा रोल अदा करती है। लेकिन, आईवीएफ की सही जानकारी न होने के चलते कई कपल्स इस ट्रीटमेंट को अपनाने से घबराते हैं। ऐसे में इस विषय को आसनी से समझाने के लिए ऑनलीमायहेल्थ ने Khushkhabri with IVF सीरीज को शुरु किया है। इस सीरीज में आईवीएफ के सभी छोटे-बड़े पहलुओं पर चर्चा की जाती है। आज की इस सीरीज में ओवेरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम से आईवीएफ ट्रीटमेंट पर क्या प्रभाव पड़ता है और इससे जुड़े कई महत्वपूर्ण विषयों के बारे में जानकारी दी जा रही है। इस जानकारी के लिए हमारी टीम ने यशोदा फर्टिलिटी एंड आईवीएफ सेंटर कड़कड़डूमा की इन्फ़र्टिलिटी और आईवीएफ़ कंसलटेंट डॉ. स्नेहा मिश्रा से संपर्क किया। डॉक्टर स्नेहा ने जटिल विषय को आगे बेहद ही सरल शब्दों में विस्तार से बताया है।
ओवरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम (OHSS) क्या है? - What is Ovarian Hyperstimulation Syndrome
ओवरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम (Ovarian Hyperstimulation Syndrome- OHSS) एक मेडिकल कंडीशन है, जब IVF Treatment के दौरान ओवरीज अत्यधिक सक्रिय हो जाती हैं. तो यह स्थिति उत्पन्न होती है। इसमें आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली प्रजनन दवाओं से ओवरी अत्यधिक उत्तेजित हो जाती है। ये दवाएं, विशेष रूप से गोनाडोट्रोपिन - gonadotropins (हार्मोन जो ओवरी को अंडे बनाने के लिए उत्तेजित करते हैं), फर्टिलाइजेशन की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए दी जाती हैं। इससे महिलाओं के शरीर से अधिक एग्स लिए जा सकते हैं। हालांकि, कुछ मामलों में, ओवरी इन हार्मोन्स के प्रति बहुत संवेदनशील हो जाती हैं और अत्यधिक संख्या में फॉलिक्स बनाती हैं। इसकी वजह से कुछ तरह पदार्थ रक्त वाहिकाओं (नसों) से पेट और अन्य टिश्यू में फैल सकते हैं। OHSS का प्रभाव हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं। यह स्थिति आईवीएफ ट्रीटमेंट की सफलता दर को प्रभावित कर सकती हैं।
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ओवरियन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम के क्या कारण होते हैं? - Causes Of Ovarian Hyperstimulation Syndrome In Hindi
Ovarian Hyperstimulation Syndrome का मुख्य कारण आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान उपयोग किए जाने वाले हॉर्मोनल ट्रीटमेंट होते हैं, जिनमें गोनाडोट्रोपिन्स प्रमुख हैं। ये मेडिसिन ओवरीज को अधिक एग्स उत्पन्न करने के लिए उत्तेजित करती हैं। हालांकि, कुछ महिलाओं में ये हॉर्मोन अत्यधिक प्रतिक्रिया करते हैं, जिससे ओवरीज सामान्य से अधिक बड़ी हो जाती हैं और उनमें सूजन होने लगती है।
इसके अलावा, OHSS की संभावना तब और बढ़ जाती है जब ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (HCG) का इंजेक्शन दिया जाता है, जो एग्स को पकाने और ओवरीज से बाहर निकालने के लिए उपयोग किया जाता है। कुछ मामलों में, OHSS की स्थिति इस इंजेक्शन के बाद और भी गंभीर हो जाती है, क्योंकि इससे ओवरीज में तरल पदार्थों का अधिक उत्पादन होता है।
OHSS के प्रकार और इसके लक्षण - Symptoms And types Of Ovarian Hyperstimulation Syndrome In Hindi
ओएचएसएस के लक्षण हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं, और इसे आमतौर पर तीन प्रकारों में बांटा जा सकता है। आगे जानते हैं इनके बारे में
OHSS के हल्का प्रभाव
ओएचएसएस के हल्के प्रभाव के लक्षण IVF Treatment के दौरान दिखाई देते हैं और कुछ दिनों में अपने आप समाप्त हो जाते हैं। इसमें पेट में हल्का दर्द, सूजन, मतली और वजन बढ़ना शामिल हो सकता है। यह स्थिति आमतौर पर बिना किसी विशेष इलाज के ठीक हो जाती है।
OHSS के मध्यम प्रभाव
ओएचएसएस के मीडियम में ओवरीज में अधिक सूजन हो जाती हैं, और इसके साथ-साथ पेट में असहजता और दर्द बढ़ जाता है। इस स्तर पर मतली, उल्टी और वजन में तेजी से बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। इस कंडीशन में पेट में तरल पदार्थ जमा होने के कारण सूजन अधिक हो सकती है।
OHSS के गंभीर प्रभाव
गंभीर ओएचएसएस एक मेडिकल इमरजेसी होती है और इसे तुरंत इलाज की आवश्यकता होती है। इसमें पेट में गंभीर सूजन, पेशाब की कमी, अत्यधिक वजन बढ़ना, सांस लेने में कठिनाई और खून के थक्के बनने का खतरा हो सकता है। यह स्थिति जानलेवा हो सकती है, इसलिए तुरंत अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है।
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OHSS का IVF Treatment पर प्रभाव - How Ovarian Hyperstimulation Syndrome Affect IVF Treatment In Hindi
ओएचएसएस आईवीएफ प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है, और गंभीर मामलों में उपचार को रोकने की आवश्यकता भी हो सकती है। आगे इसके बारे में बताया गया है।
ओवरीज में सूजन और दर्द
ओएचएसएस के दौरान ओवरीज में सूजन और दर्द बढ़ सकता है, जिससे ओवरी से एग्स निकालने (Egg Retrival) की प्रक्रिया में कठिनाई हो सकती है। ओवरीज में अत्यधिक सूजन होने पर एग्स निकालना जोखिमपूर्ण हो सकता है, और इससे मां और भ्रूण दोनों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
गर्भधारण की प्रक्रिया में बाधा
OHSS की स्थिति में, डॉक्टर आमतौर पर भ्रूण स्थानांतरण (Embryo Transfer) को रोकने का निर्णय ले सकते हैं। इससे आईवीएफ ट्रीटमेंट का समय बढ़ सकता है और प्रेग्नेंसी की प्रक्रिया में देरी हो सकती है। गंभीर ओएचएसएस होने पर आईवीएफ ट्रीटमेंट को अस्थायी रूप से रोककर शरीर को आराम देने की आवश्यकता होती है।
अन्य समस्याएं होना
ओएचएसएस के गंभीर मामलों में महिला के शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में महिलाओं को ब्लड प्रेशर लो होना, ब्लड क्लॉटिंग और किडनी या लंग्स की समस्याएं हो सकती ैहै। ऐसे मामलों में आईवीएफ प्रक्रिया को रोकना आवश्यक होता है।
महिला के शरीर में तरल पदार्थ बढ़ना या जमा होना
ओएचएसएस के दौरान महिला के पेट और छाती में तरल पदार्थ जमा हो सकते हैं। जिससे उनको सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। इससे महिला की शारीरिक स्थिति प्रभावित होती है और आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान होने वाली अन्य समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है।
किन महिलाओं को होता है OHSS का अधिक जोखिम
हालांकि यह स्थिति सभी महिलाओं को प्रभावित नहीं करती है। लेकिन कुछ कारक ओएचएसएस के जोखिम को बढ़ा सकते हैं। आगे जानते हैं इनके बारे में
- महिला की उम्र 30 साल से कम होना
- महिला का वजन कम होना
- महिला को पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS) होना
- पहले कभी ओएचएसएस की स्थिति से गुजरना, आदि।
ओएचएसएस का इलाज कैसे किया जाता है? - Treatment Of Ovarian Hyperstimulation Syndrome in Hindi
OHSS की गंभीरता के आधार पर इलाज अलग-अलग हो सकता है। इसमें सबसे पहले डॉक्टर इस स्थित की जांच के लिए फिजिकल एग्जामिन, अल्ट्रासाउंड और ब्लड टेस्ट करते हैं। इसमें ओवरी की सूजन और तरल पदार्थ के जमा होने का पता लगाया जाता है। इसके बाद हल्के और मध्यम ओएचएसएस के लिए इलाज में तरल पदार्थों का सेवन बढ़ाना, दर्द निवारक दवाएं और नियमित मॉनिटरिंग शामिल होती है। जबकि, गंभीर ओएचएसएस के लिए महिला को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ सकता है। जहां शरीर में इकट्ठा हुए तरल पदार्थों को बाहर निकालने के लिए विशेष उपचार किया जाता है, जैसे पेट से तरल निकालना (पैरासेंटेसिस) और सांस की समस्याओं को ठीक करना आदि।
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ओवरीयन हाइपरस्टिम्यूलेशन सिंड्रोम (OHSS) एक ऐसी स्थिति है जो आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान समस्याएं उत्पन्न कर सकती है, लेकिन इसकी सही पहचान और समय पर उपचार से नियंत्रित किया जा सकता है। ओनलीमाय हेल्थ की Khushkhabri with IVF की सीरीज का यह लेख आप अपने दोस्तों और करीबियों के साथ शेयर करें, ताकि उनको भी आईवीएफ की संपूर्ण और सटिक जानकारी मिल सकें। हम इस सीरीज में आपको आगे भी इससे जुड़े अन्य विषयों पर संपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे।
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