समय के साथ लोगों के काम करने के तरीकों और लाइफस्टाइल में बड़ा बदलाव आया है। आज के समय में शहरी इलाकों में ऑफिस दिन रात चौबीसों घंटे खुले रहते हैं। ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में देश को आगे ले जानें के लिए यह जरूरी भी है। लेकिन, ऐसे में खुद की सेहत के साथ खिलवाड़ करना भारी पड़ सकता है। लेट नाइट ऑफिस और काम के बढ़ते घंटों के चलते लोगों को देर रात तक काम करना पड़ता है। जबकि, लाइफ में आगे निकलने के चलते लोग रात में कई योजनाओं को तैयार करते हैं। ऐसे में उनकी नींद का पैर्टन (Sleep Pattern) डिसटर्ब हो सकता है। इसका सीधा ब्रेन की कार्यक्षमता पर पड़ता है। दरअसल, ब्रेन पर्याप्त और गहरी नींद (Deep Sleep) के दौरान शरीर के सेल्स को रिपेयर करने के सिंग्नलस भेजता है। इसके साथ ही पर्याप्त नींद लेने से स्ट्रेस (Stress), तनाव व चिंता तेजी से कम होती है और व्यक्ति को तरोताजा महसूस होता है। यदि, आपकी नींद पूरी नहीं हो पाती है, तो ऐसे में आपको पूरा दिन थकान, कमजोरी और आलस बना रह सकता है। इस लेख में आगे मणिपाल अस्पताल, गुरुग्राम के कंसल्टेंट न्यूरोलॉजी डॉक्टर अपूर्वा शर्मा से जानते हैं कि ब्रेन हेल्थ के लिए नींद कितनी आवश्यक होती है।
सोने से ब्रेन हेल्थ पर क्या असर पड़ता है?
नींद एक जटिल और गतिशील प्रक्रिया है जिसमें कई चरण शामिल होते हैं, जिसमें रैपिड आई मूवमेंट (आरईएम) और नॉन-आरईएम नींद शामिल हैं। प्रत्येक चरण मस्तिष्क के कार्य और स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस वजह से डॉक्टर 6 से 8 घंटे नींद लेने की सलाह देते हैं। आगे जानते हैं कि नींद से ब्रेन हेल्थ पर क्या असर पड़ता है।
सूचनाओं को स्टोर करना - Memory Consolidation
नींद में अलग-अलग चरण में ब्रेन पूरे दिन की जानकारियों को व्यवस्थित और स्टोर करता है। इसमें नई चीज को सीखने के दौरान ली गई सूचनाएं भी शामिल हैं। नींद के रैपिड आई मूवमेंट (REM) स्टेज में इमोशनल मेमोरी स्टोर होता है।
ब्रेन को डिटॉक्स करने में सहायक - Brain Detoxification
पर्याप्त नींद लेने से ब्रेन डिटॉक्स होता है। नींद के दौरान ब्रेन के चैनलों का नेटवर्क, जिसे ग्लाइम्फैटिक सिस्टम कहते हैं, एक्टिव हो जाता है। यह प्रकिया ब्रेन की बेकार सूचनाओं को हटाने का काम करती है , इसमें अल्जाइमर रोग से जुड़ा प्रोटीन (एमिलॉयड बीटा) भी शामिल है। वहीं, पर्याप्त नींद न लेने से ब्रेन डिटॉक्स नहीं हो पाता है, जिससे न्यूरोडीजेनेरेशन और कॉग्नेटिव स्किल में कमी आ सकती है। लगातार नींद की कमी को अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों से संबंधित माना जाता है।
इमोशनल नियंत्रण और मानसिक स्वास्थ्य - Emotional Regulation and Mental Health
नींद व्यक्ति के इमोशनल कंट्रोल और मानसिक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। रैपिड आई मूवमेंट- REM नींद के दौरान, ब्रेन भावनात्मक अनुभवों और तनाव को प्रोसेस करता है, जिससे इमोशनल स्टेब्लिटी बनाए रखने में मदद मिलती है। नींद की कमी इस प्रक्रिया को बाधित करती है, जिससे भावनात्मक प्रतिक्रिया बढ़ जाती है और मूड से संबंधित डिसऑर्डर होने की संभावना बढ़ जाती है।
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पर्याप्त नींद न लेने से व्यक्ति के द्वारा नई चीजें सीखने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। इसके अलावा, स्ट्रेस, हार्मोनल बदलाव, न्यूरोडिजेनरेटिव डिजीज और निर्णय लेने में समस्या हो सकती है। ऐसे में आप सोते समय गैजेट का इस्तेमाल न करें, सोने वाले रूम का टेम्परेचर कम रखें, कॉटन के कपड़े पहनें और सोने के निश्चित स्लीप पैर्टन को फॉलो करें।
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