सच्‍ची घटना: गालस्टोन (पित्ताशय की पथरी) से पीड़ित नरेन को कैसे मिली इस समस्‍या से आजादी, पढ़ें पूरी कहानी

36 वर्षीय नरेन को जब पेट में दर्द उठा तो वह परेशान हो उठे। उन्‍हें समझ नहीं आ रहा था कि क्‍या करें। इसके बाद वह डॉक्‍टर गौरव चावला से मिले, उन्‍होंने नरेन को इस समस्‍या से छुटकारा दिलाया।
  • SHARE
  • FOLLOW
सच्‍ची घटना: गालस्टोन (पित्ताशय की पथरी) से पीड़ित नरेन को कैसे मिली इस समस्‍या से आजादी, पढ़ें पूरी कहानी


चार महीने पहले, नरेन, मुंबई में बसे 36 वर्षीय इन्वेस्टमेंट बैंकर, को पेट में तेज़ दर्द होता था। हरदम व्यस्त रहने वाले इस पेशेवर ने देर तक काम, अपर्याप्त व्यायाम और फास्ट फूड को जिम्मेदार ठहराते हुए करीब-करीब स्वीकार कर लिया कि अपच ही लगातार होने वाले पेट दर्द का कारण है। गूगल पर इसके इलाज के लिए कुछ दवाईयां पता लगाने और कुछ एनाल्जेसिक्स के साथ प्रयोग करने के बावजूद दर्द नहीं थमा और इससे उनकी व्यक्तिगत और पेशेवर ज़िंदगी भी प्रभावित होने लगी। इस मामले को अपने हाथ में लेते हुए उनकी पत्नी ने एक विशेषज्ञ के साथ परामर्श करने की व्यवस्था की। 

नरेन को बाद में गालस्टोन (गाल ब्लैडर/पित्ताशय की पथरी ) होने का पता चला। उन मामलों में जहां कोलेस्ट्रोल से युक्त स्टोन्स (पथरी) केवल गाल ब्लैडर (पित्ताशय) में होते हैं तो गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोग या संभावित अवयव की विफलता से बचने के लिए सर्जरी के माध्यम से संपूर्ण गाल ब्लैडर को हटाना संभव है। हालांकि, ये काफी जटिलताओं से भरी स्थिति थी। स्टोन्स पित्त वाहिनी (बाइल डक्ट) में भी फंसे हुए थे, जो भोजन को पचाने में सहायता के लिए पित्त रस को लीवर से गाल ब्लैडर में जाने में मदद करता है।

पित्त वाहिनी में रुकावट के चलते बाह्य ध्वनि तरंगों जैसे परम्परागत पद्धति से उन्हें तोड़ना असंभव हो गया था। इसलिए डॉक्टरों को मार्ग में फंसे स्टोन्स को तोड़ने और पित्त वाहिनी के सामान्य तौर पर कार्य शुरु करने के लिए मिनिमली इन्वेसिव प्रोसीजर करनी पड़ी। उन्नत पित्तीय पथरी प्रबंधन (बाइलियरी स्टोन मैनेजमेंट) में, कोलैंजियोस्कोपी, एक मिनिमली इन्वेसिव प्रोसीजर डॉक्टरों को गाल स्टोन्स (पित्ताशय की पथरी) निकालने में मदद करती है, जिससे जटिल सर्जरी भी संभव हो पाती है और अंत में जीवन की गुणवत्ता में सुधार के साथ मरीज़ को ही इसका फायदा होता है।

gallstone

दशकों से गाल स्टोन निकालने के लिए एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलैंजियो-पैंक्रियाटोग्राफी (ईआरसीपी) सर्वश्रेष्ठ माना जाता रहा है। हालांकि, मरीज़ो की बदलती ज़रुरतों और जुड़ी हुई जटिलताओं की समस्याओं जैसे मोटापा, गर्भावस्था इत्यादि के चलते उन्नत उपचार पद्धति की मांग होती रही है। आईए समझते हैं कैसे कोलैंजियोस्कोपी जैसी टेक्नोलॉजी गालस्टोन्स के मरीज़ों के लिए एक आशाजनक बेहतर भविष्य दे रही है।

क्‍या कहते हैं एक्‍सपर्ट? 

कानपुर मेडिकल सेंटर के सीनियर गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट, डॉ. गौरव चावला ने समझाते हुए कहा, “जब गाल ब्लैडर में गालस्टोन्स बनते हैं और सिस्टिक वाहिनी के ज़रिए सामान्य पित्तवाहिनी में पहुंचते हैं, इससे पित्त रस के बहाव में अवरोध उत्पन्न हो सकता है। इस तरह के अवरोध से तीव्र पेट दर्द, उच्च बुखार और कभी-कभी अंग काम करना बंद कर देता है। मरीज़ द्वारा पेट दर्द के शुरुआती संकेत को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए और कीमती समय बर्बाद किए बगैर विशेषज्ञ से परामर्श करना चाहिए। चिकित्सकीय हस्तक्षेप में किसी भी तरह की देरी से मरीज़ की स्थिति और बिगड़ सकती है और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल बीमारी हो सकती है। लेकिन अच्छी खबर ये है कि देखभाल करने वालों के पास गालस्टोन के प्रभावी उपचार के लिए स्लिमर एंडोस्कोप, लेज़र थेरपी, और स्मार्ट कैथेटर्स जैसी अत्‍याधुनिक टेक्नोलॉजी उपलब्ध है।”

एक नॉन इन्वेसिव एंडोस्कोपिक विधि, कोलैंजियोस्कोपी का इस्तेमाल एक ही समय में सीधे दृष्य निदानात्मक मूल्यांकन और गालस्टोन्स को निकालने, दोनों के लिए किया जाता है। लाइट के साथ एक छोटी लचीली ट्यूब और आखिरी छोर में 1 एमएम चौड़ा वीडियो कैमरे का इस्तेमाल करते हुए डॉक्टर एंडोस्कोप की मदद से गले के नीचे डालते हैं। वाहिनी के सीधे और स्पष्ट विज़ुअलायजेशन से डॉक्टर को मरीज़ की स्थिति को सटीकता से निगरानी करने और ज़रुरी उपाय करने में मदद करता है। स्टोन (पथरी) की पहचान किए जाने पर ट्यूब के अंदर एक छोटा प्रोब स्टोन्स को तोड़ने के लिए विद्युतीय बिजली की बौछार छोड़ता है। विद्युतीय बौछार की तीव्रता हमेशा डॉक्टर द्वारा एक फुट पैडल के इस्तेमाल से नियंत्रित की जाती है।

परम्परागत ईआरसीपी प्रोसीजर से कहीं आगे जाते हुए कोलैंजियोस्कोपी अभी तक की प्रक्रियात्मक सीमाओं पर जीत हासिल करते हुए मिनिमली इन्वेसिव सर्जरी को एक डे केयर प्रक्रिया बनाती है। इसका मतलब ये है कि मरीज़ को अस्पताल में लंबे समय तक रहने की ज़रुरत नहीं है, इससे जल्दी स्वस्थ हो पाना सुनिश्चित होता है। इसका श्रेय सीधे विजुअलायजेशन को जाता है जिसकी मदद से एक डॉक्टर बाइल डक्ट में शेष बचे हुए किसी भी स्टोन को गुब्बारे या बास्केट की मदद से निकाल सकता है, संपूर्ण सफाई सुनिश्चित कर सकता है और रिवीज़न सर्जरी की संभावनाओं को दूर कर सकता है।  

इसे भी पढ़ें: जानें क्यों होती है पित्त की पथरी और किन आहारों से करना चाहिए परहेज

बाइलियरी स्टोन मैनेजमेंट (पित्‍ताशय की पथरी प्रबंधन) के क्षेत्र में हुई प्रगति से स्वास्थ्य सेवा प्रदानकर्ताओं को परम्परागत ईआरसीपी प्रोसीजर की खामियों को दूर करने में मदद मिल रही है। उदाहरण के लिए, कोलैंजियोस्कोपी 3-डी प्लैटफॉर्म पर कार्य करती है और एक्स-रे द्वारा प्राप्त होनेवाले मार्गदर्शन पर निर्भर नहीं है, जिससे मरीज़ को होनेवाले रेडिएशन के प्रभाव को कम किया जाता है। कोलैंजियोस्कोपी से क्लिनिकल क्षमता और सुरक्षा में वृद्धि हुई है, जहां पहले पेट पर चीरा लगाना और लंबे समय तक अस्पताल में रहना पड़ता था वहीं अब उसकी जगह मिनिमली इन्वेसिव प्रोसीजर ने ले ली है जिसमें आराम करने का समय भी कम हो गया है।

इसे भी पढ़ें: पित्त की पथरी के घरेलू उपाय

डॉ. चावला ने कहा, “नई पद्धति में कीहोल सर्जरी (लेप्रोस्कोपी द्वारा की गई सर्जरी) से होनेवाला घाव शामिल नहीं है जिसके कारण संक्रमण की संभावना कम होती है और कॉस्मेटिक परिणामों में सुधार आता है। पहले गालस्टोन के प्रबंधन के लिए दो अनुभवी एंडोस्कोपिस्ट के बीच बेहतरीन समन्वय के साथ उपकरण के चलाने में खराबी आती थी। वहीं दूसरी ओर, कोलैंजियोस्कोपी में फोर-वे स्टीयरेबिलिटी के चलते प्रोब और उपकरण चलाने में सुधार आया है। सीधे विजुअलायजेशन के कारण डॉक्टर को बाइल डक्ट (पित्त वाहिनी) की दीवारों के विजुअलायजेशन में अवरोध उत्पन्न कर रहे किसी भी द्रव या बाइल स्टोन के टुकड़े साफ करने में मदद मिलती है।”

इसे भी पढ़ें: पित्‍त की थैली में जमा पथरी को आसानी से बाहर निकालते हैं ये 10 घरेलू उपाय

गालस्टोन्स का उपचार अब पहले जैसी ब्लाइंड तकनीक नहीं रही, क्योंकि इसमें अतिसूक्ष्म कोलैंजियोस्कोपिक कैमरा न सिर्फ गालस्टोन्स के उपचार में मदद करता है, बल्कि इसके साथ ही सर्जरी के बाद वाहिनी (डक्ट) में हुए ज़ख्‍मों की पहचान करने और ट्यूमर्स का जल्दी निदान करने का मार्ग भी खोलता है। शुक्र है आज कोलैंजियोस्कोपी जैसी नई खोज उपलब्ध है, जिससे जोखिम कम करने के लिए एक डॉक्टर सर्जरी से पहले और बाद में प्री-सर्जिकल मैपिंग और शरीर रचना का मूल्यांकन कर सकता है। सीधा विज़ुअलायज़ेशन, मिनिमली इन्वेसिव प्रोसीजर और स्वस्थ होने की छोटी अवधि के चलते निश्चित तौर पर बाइल डक्ट की बीमारियों के उपचार के लिए मिनिमली इन्वेसिव थेरपी के रुप में एक मज़बूत और बेहतर रास्ता तैयार हो गया है। 

Read More Articles On Other Diseases In Hindi

Read Next

बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक खतरनाक है अकेलापन, जानें इसके नुकसान

Disclaimer

How we keep this article up to date:

We work with experts and keep a close eye on the latest in health and wellness. Whenever there is a new research or helpful information, we update our articles with accurate and useful advice.

  • Current Version