एक ताजा अध्ययन से इस बात की पुष्टि हुई है कि जो लोग कैफीन का अति सेवन करते हैं, उन्हें मतिभ्रत की समस्या हो सकती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक जो लोग कैफीन का किसी भी रूप में आवश्यकता से ज्यादा सेवन करते हैं फिर चाहे काफी, चाय, चाकलेट या एनर्जी ड्रिंक के रूप में हो, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। ऐसे लोग एक ही आवाज को सामान्य लोगों की तुलना में तीन गुणा ज्यादा सुनते हैं। इतना ही नहीं यही समस्या दिख रही चीजों के साथ भी है। वे चीजों को ऐसी जगह महसूस करते हैं, जहां वह वास्तव में नहीं होती।
हालांकि जो लोग अति की मात्रा में कॉफी लेते हैं, उन्हें हैल्युसिनेशन यानी मतिभ्रम हो। ऐसा आवश्यक नहीं है। बावजूद इसके यदि उन्हें हैल्युसिनेशन की समस्या होती है तो उन्हें तुरंत मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए। आपको यह बताते चलें कि शोधकर्ताओं का दावा है कि प्रत्येक दिन जो लोग 7 कप काफी पीते हैं, वे वास्तव में 315 मिलिग्राम कैफीन का सेवन करते हैं। यह असल में 6 कप स्ट्रांग चाय के बराबर है और 9 कोला के बराबर। बहरहाल कैफीन के सेवन से बचने के लिए हमें चाहिए कि कैफीन के प्रभाव से लेकर हैल्युसिनेशन के दिख रहे लक्षणों पर नजर दौड़ाएं। जानने के लिए आगे पढ़ें।
कैफीन का प्रभाव
कैफीन एक ऐसी चीज है जो सीधे हमारे नर्वस सिस्टम को प्रभावित करती है। असल में कैफीन हमारे शरीर पर तुरंत असर करती है। कैफीन से अस्थाई रूप से सुस्ती तुरंत भाग जाती है और एलर्टनेस लौट आती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक समूचे विश्व में कैफीन का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है। इस पर कोई रोक टोक नहीं है और न ही ज्यादातर लोग इसके घातक परिणामों से अवगत हैं। बहरहाल कैफीन ऐसा खाद्य पदार्थ है जिसे हमारा पेट पीने के 45 मिनट के भीतर पूरी तरह सोख लेता है। परिणामस्वरूप कैफीन हमें सक्रिय करता है और मानसिक रूप से भी सचेत बनाता है। यही कारण है कि ज्यादातर लोग देर रात काम करने के लिए काफी का इस्तेमाल करते हैं।
लेकिन जैसे ही काफी का सेवन अतिरिक्त मात्रा में किया जाता है तो यह महज एक पेय पदार्थ नहीं रह जाता। इसके उलट यह एक जहरीला पेय पदार्थ बन जाता है। इसके अतिरिक्त सेवन से नर्वसनेस, असहजता, बेचैनी, मसल्स का फड़कना, इनसोमेनिया, सिरदर्द, दिल का धधकना आदि प्रभाव दिखने लगते हैं। दरहम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक कैफीन के सेवन से सिर्फ हैल्युसिनेशन की समस्या ही नहीं जन्म लेती। यह अन्य मानसिक बीमारियों को भी पैदा करता है। इससे डिल्यूज़न, सिज़ोफ्रेनिया भी हो सकता है। कैफीन के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए लोगों को चाहिए कि कैफीन का सेवन कम करे। इसके अलावा जीवनशैली में कुछ आवश्यक परिवर्तन भी करे।
तनाव स्तर बढ़ना
कैफीन का पानी की तरह सेवन करने वालों में तनाव का स्तर बढ़ता रहता है। तनाव बढ़ने के कई कारण हैं। असल में वे उन चीजों को देखते हैं, जो होती नहीं है। ऐसी आवाजे सुनते हैं, जो है नहीं। इसी तरह ऐसी चीजों को महसूस करते हैं जिनका वजूद नहीं है। ऐसी चीजों के कारण उनका तनाव स्तर तो बढ़ता ही है। साथ ही हैल्युसिनेशन का अनुभव भी कटु होता चला जाता है। वास्तव में कहना यह चाहिए कि कैफीन का हमारे दिमाग पर वश हो जाता है। हम मानसिक रूप से कुछ सोचने की स्थिति में नहीं रह जाते। अतः यह आवश्यक है कि कैफीन का उतना ही सेवन करें, जितना पर्याप्त हो। इससे ज्यादा सेवन से कई मानसिक बीमारियों को न्यौता देने जैसा होता है।
हैल्युसिनेशन से सम्बंध
शोधकर्ताओं ने हैल्युसिनेशन और कैफीन के बीच सम्बंधित शोध मानसिक मरीजों पर नहीं वरन स्वस्थ लोगों पर किया। पहले पहल उन्होंने पाया कि हैल्युसिनेशन परवरिश, आनुवांशिक आदि वजहें पायी है। इसके अलावा शरीर में तनाव का स्तर भी हैल्युसिनेशन की एक बड़ी वजह है। बहरहाल शोध से इस बात का पता चलता है कि फूड और मूड का गहरा सम्बंध है। यह जरूरी नहीं है कि हैल्युसिनेशन मानसिक बीमारी का लक्षण हो। ज्यादातर लोगों को इस तरह का भ्रम हो जाता है। जो चीज नहीं होती, उन्हें वही चीज दिखती है या फिर आवाजें सुनाई देती है।
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