कहीं आपको हॉस्पिटल सिंड्रोम तो नहीं? बहुत मामूली हैं इस रोग के लक्षण

ओवरियन सिस्ट बनना स्त्रियों में आम बात है। ज्यादातर सिस्ट नुकसानदेह नहीं होती हैं। 
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कहीं आपको हॉस्पिटल सिंड्रोम तो नहीं? बहुत मामूली हैं इस रोग के लक्षण


ओवरियन सिस्ट बनना स्त्रियों में आम बात है। ज्यादातर सिस्ट नुकसानदेह नहीं होती हैं। कई लोगों को अकारण ही बीमार होने का भ्रम हो जाता है। पूरी तरह से स्वस्थ होते हुए भी बीमार होने का अहसास होना असल में एक तरह की मानसिक समस्या है, जिसे डॉक्टर हॉस्पिटल सिंड्रोम या मंचूसियन सिंड्रोम कहते हैं। भारत में भी यह समस्या तेजी से बढ़ रही है। साइकेट्रिस्ट  डॉ.गौरव गुप्ता बताते हैं, हॉस्पिटल आने वाले एक तिहाई लोगों को कोई बीमारी नहीं होती है। उन्हें सिर्फ एक काउंसलर की जरूरत होती है। जो उनकी बात सुने और उन्हें यकीन दिलाए कि वे ठीक हैं।

संयुक्त परिवारों में छोटी-मोटी बीमारियां होने पर जहां बड़े बुजुर्ग घरेलू उपचार बता देते थे, वहीं आज परिवार से अलग रह रहे युवा बीमारी के जरा से भी लक्षण दिखने पर सलाह के लिए इंटरनेट की शरण में चले जाते हैं। डॉ. गौरव कहते हैं, यूं तो इंटरनेट पर जानकारियों का भंडार होता है। लेकिन इसकी जानकारियों के आधार पर खुद को कोई गंभीर बीमारी होने की धारणा बना लेना या परेशान हो जाना गलत है पर आजकल यह आम हो गया है।

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चिकित्सकों की मानें, तो हॉस्पिटल सिंड्रोम से ग्रस्त मरीजों में सबसे ज्यादा संख्या स्त्रियों की होती है। न्यूरोस्पाइन सर्जन डॉ.अमिताभ गुप्ता कहते हैं, कुछ परिवारों में स्त्रियों को घर से निकलने की आजादी नहीं दी जाती। ऐसे में वे बीमारी का बहाना करती हैं ताकि उन्हें घर से बाहर निकलने का मौका मिल जाए। कभी-कभी छोटे बच्चे भी कई बार स्कूल जाने से बचने के लिए बीमारी का बहाना बनाते हैं।

डॉ.गौरव गुप्ता कहते हैं, हॉस्पिटल सिंड्रोम से बचने का सबसे अच्छा तरीका है काउंसलिंग। अगर घर में किसी को यह समस्या हो तो उन्हें यह यकीन दिलाएं कि उन्हें कोई बीमारी नहीं है। घर के किसी सदस्य के मन में अवसाद जन्म न लेने दें क्योंकि यह हॉस्पिटल सिंड्रोम का सबसे बड़ा कारण है। घर के सदस्यों पर बहुत ज्यादा बंदिशें न लगाएं और स्वस्थ माहौल बनाकर रखें। आपसी सहयोग और देखभाल से इस बीमारी से सुरक्षित रहा जा सकता है।

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बीमारी न होने पर भी करनी पड़ती है सर्जरी

इन दिनों तो बेहद आधुनिक डायग्नॉस्टिक टेक्नीक्स आ गई हैं। मेडिकल टेस्ट करवाने के बाद डॉक्टर मरीजों को प्रूफ दिखाकर यह यकीन दिला देते हैं कि उन्हें कोई समस्या नहीं है। लेकिन जब ये टेस्ट नहीं थे, तब हॉस्पिटल सिंड्रोम से पीड़ित लोगों की तसल्ली के लिए डॉक्टरों को सर्जरी तक करनी पडती थी। डायग्नॉस्टिक लैप्रेक्टमी नाम की इस सर्जरी के माध्यम से डॉक्टर मैनुअली यह चेक करते थे कि कहीं शरीर के अंदर कुछ असामान्य तो नहीं है।

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