पीरियड्स के स्थायी रूप से बंद हो जाने की क्रिया को मेनोपॉज या रजोनिवृत्ति कहते हैं। यह किसी भी महिला के जीवन का वह समय होता है जब उसके अंडकोष की गतिविधियां समाप्त हो जाती है। एक खास उम्र के बाद सभी स्त्रियों को इस महत्वपूर्ण शारीरिक बदलाव से गुज़रना पड़ता है। मेनोपॉज़ को लेकर उनके मन में कई सवाल होते हैं। एक्सपर्ट के माध्यम से जानें ऐसी ही कुछ ज़रूरी बातें।
मेनोपॉज़ की औसत उम्र क्या है?
भारत में मेनोपॉज़ की औसत उम्र 48 से 50 वर्ष के बीच होती है। फिर भी कुछ स्त्रियों में निर्धारित आयु से 2-4 वर्ष पहले या बाद में रजोनिवृत्ति हो सकती है।
क्या आजकल युवतियों में निर्धारित उम्र से पहले मेनोपॉज़ की समस्या बढ़ रही है?
आजकल कुछ स्त्रियों में यह समस्या बढ़ रही है लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है, इस बारे में अभी कुछ भी कहना मुश्किल है।
क्या उपचार से अर्ली मेनोपॉज़ को टाला जा सकता है?
कुछ मेडिकल कंडीशन्स ऐसी होती हैं, जिनमें किसी उपचार की गुंज़ाइश नहीं होती। ऐसे मामलों में अर्ली मेनोपॉज़ को नहीं टाला जा सकता। सामान्य दशा में इसे कुछ इस तरह मैनेज किया जाता है, जिससे शरीर की सारी गतिविधियां वर्षों तक सामान्य ढंग से चलती रहें और मेनोपॉज़ को भी लंबे समय तक टाला जा सके। इसके लिए गाइनी हेल्थ के प्रति जागरूकता बहुत ज़रूरी है ताकि स्त्रियों की ओवरी को स्वस्थ रखा जा सके।
हालांकि विज्ञान में इसके लिए अब तक कोई ऐसा समाधान नहीं खोजा गया है लेकिन स्वस्थ जीवनशैली, संतुलित आहार और नियमित व्यायाम से स्त्रियों का शरीर स्वस्थ रहता है तो इससे आमतौर पर उन्हें अर्ली मेनोपॉज़ की समस्या नहीं होती।
क्या इसके बाद ऑस्टियोपोरोसिस की आशंका बढ़ जाती है?
जी हां, मेनोपॉज़ के बाद ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या बढ़ जाती है। हालांकि 30 साल की उम्र तक सभी स्त्रियों की हड्डियां मज़बूत होती हैं। अगर पहले से ही वे मिल्क प्रोडक्ट्स के साथ हेल्दी डाइट अपनाएं और नियमित एक्सरसाइज़ करें तो मेनोपॉज़ के बाद उनकी हड्डियों को कम नुकसान होगा। जो स्त्रियां पहले से अपनी सेहत का ध्यान नहीं रखतीं, मेनोपॉज़ तक उनकी हड्डियां इतनी कमज़ोर हो चुकी होती हैं कि मामूली चोट लगने पर भी फ्रैक्चर की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे में उन्हें अपनी बोन हेल्थ का विशेष का ध्यान रखना चाहिए।
अगर हड्डियां कमज़ोर हैं तो उन्हें मज़बूत बनाएं। ताकि मेनोपॉज़ के बाद आपको कोई समस्या न हो। ऐसे मामलों में कभी-कभी स्त्रियों को एस्ट्रोजन हॉर्मोन दिया जाता है। इसके अलावा हड्डियों की मज़बूती बनाए रखने के लिए उन्हें कुछ दवाएं भी दी जा सकती हैं।
इस दौरान मूड स्विंग की समस्या क्यों होती है?
मेनोपॉज़ के बाद स्त्रियों के शरीर में हार्मोन्स असंतुलित होने लगते हैं। एस्ट्रोजन की कमी इसका मुख्य कारण है, जिसकी वजह से मूड स्विंग की समस्या होती है। जिन स्त्रियों में यह समस्या ज़्यादा गंभीर हो, उन्हें एस्ट्रोजन हॉर्मोन देकर ठीक किया जा सकता है।
क्या इसके बाद यूरिनरी इंकॉन्टिजेन्स और यूटीआई की आशंका बढ़ जाती है?
मेनापॉज़ के बाद स्त्रियों के यूरिनरी ट्रैक में शिथिलता आ जाती है। इससे उनमें यूटीआई और यूरिनरी इंकॉन्टिजेन्स यानी यूरिन के प्रेशर पर नियंत्रण न होना, खांसने पर यूरिन डिस्चार्ज होना, जैसी समस्याएं परेशान करने लगती हैं। जिन स्त्रियों का पेल्विक एरिया पहले से ही कमज़ोर होता है, मेनोपॉज़ के बाद उनमें यह समस्या और बढ़ जाती है। आजकल ऐसी सभी समस्याओं का उपचार संभव है। इसके लिए डॉक्टर से सलाह लें।
क्या मेनोपॉज़ के बाद स्त्रियों की सुंदरता घटने लगती है?
बदलाव के इस दौर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरॉन हॉर्मोन की कमी के कारण कुछ स्त्रियों की त्वचा पतली और रूखी हो जाती है, जिससे उनके चेहरे और हाथों पर झुर्रियां दिखने लगती हैं और बाल झड़ने लगते हैं। कई बार इसी वजह से उनके चेहरे पर अवांछित बाल भी उग आते हैं। हालांकि आजकल ऐसे कई ब्यूट्री ट्रीटमेंट्स उपलब्ध हैं, जिनकी मदद से वे मेनोपॉज़ के बाद भी अपनी सुंदरता बरकरार रख सकती हैं।
क्या सेक्स लाइफ पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ता है?
मेनोपॉज़ के बाद एस्ट्रोजन हॉर्मोन की कमी के कारण वजाइना का स्वाभाविक ल्युब्रिकेशन खत्म हो जाता है, जिससे स्त्रियों में सेक्स के प्रति अरुचि पैदा होने लगती है। अगर ऐसी कोई समस्या हो तो डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
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मेनोपॉज़ के बाद किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए?
इस शारीरिक बदलाव को सहजता से स्वीकारें और इसके लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करें। अपनी दिनचर्या में नियमित रूप से व्यायाम और सुबह की सैर को शामिल करें। मिल्क प्रोडक्ट्स, हरी पत्तेदार सब्जि़यों और फलों का सेवन भरपूर मात्रा में करें। वजाइनल ड्राइनेस से बचने के लिए ल्युब्रिकेंट जेली का इस्तेमाल कर सकती हैं।
विशेषज्ञ की सलाह से कीगल एक्सरसाइज़ करना भी फायदेमंद साबित होता है। इससे पेल्विक मांसपेशियों में कसाव आता है। उम्र के इस दौर में ब्रेस्ट और एंडोमीट्रियल कैंसर की आशंका बढ़ जाती है। इससे बचने के लिए साल में एक बार ब्रेस्ट की मैमोग्राफी, पेल्विक अल्ट्रासाउंड, पेप स्मीयर टेस्ट ज़रूर कराएं। संतुलित खानपान और नियमित एक्सरसाइज़ से बढ़ते वज़न को नियंत्रित रखें।
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