प्रदूषण से बढ़ रहा है हेपेटाइटिस का खतरा, घरेलू उपचार से खुद को रखें दूर

हेपेटाइटिस ए. और ई प्रदूषित खाद्य व पेय पदार्थों के सेवन से होता है। 
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प्रदूषण से बढ़ रहा है हेपेटाइटिस का खतरा, घरेलू उपचार से खुद को रखें दूर


हेपेटाइटिस ए. और ई प्रदूषित खाद्य व पेय पदार्थों के सेवन से होता है। वहीं, बी और सी हेपेटाइटिस रक्त के जरिये होता है। रक्त व रक्त के उत्पाद जैसे प्लाज्मा में प्रदूषित सिरिंज के इस्तेमाल से दूसरे व्यक्ति में संक्रमण होना। इसी तरह संक्रमित व्यक्ति द्वारा रक्तदान करने से भी यह रोग संभव है। डॉ.संजीव सहगल के अनुसार टैटू गुदवाना, किसी संक्रमित व्यक्ति का टूथब्रश और रेजर इस्तेमाल करना और असुरक्षित शारीरिक संपर्क से हेपेटाइटिस बी व सी होने का जोखिम बढ़ जाता है। लंबे समय तक शराब पीने की लत भी हेपेटाइटिस का कारण बन सकती है। वहीं डॉ.जैन के अनुसार हेपेटाइटिस डी उन मरीजों को होता है, जो पहले से ही हेपेटाइटिस बी से ग्रस्त हैं।

लक्षण

 

  • -पीलिया होना।
  • -भूख न लगना।
  • -बुखार रहना।
  • -पेट में दर्द रहना।
  • -उल्टियां होना।

 

बचाव

 

  1. सिर्फ हेपेटाइटिस ए और बी से बचाव के लिए टीके (वैक्सीन्स) उपलब्ध हैं।
  2. पानी उबालकर या फिल्टर कर के पीएं।
  3. खाद्य व पेय पदार्र्थो की स्वच्छता का ध्यान रखें।

 

हेपेटाइटिस बी और सी का इलाज

 

  1. इसमें बीमारी तो होती है, लेकिन वह स्वत: ठीक हो जाती है।
  2. हेपेटाइटिस बी और सी का वाइरस लिवर में लगातार सूजन पैदा करता रहता है। यह स्थिति अगर छह माह तक चले, तो इसे मेडिकल भाषा में क्रॉनिक हेपेटाइटिस कहते हैं। इस अवस्था में बीमारी का दवाओं से इलाज संभव है।
  3. बीमारी तो होती है, लेकिन तात्कालिक तौर पर मरीज उस बीमारी को महसूस नहीं करता, लेकिन अगर वाइरस लिवर में बरकरार रह गए, तो वे कालांतर में लिवर सिरोसिस और लिवर कैंसर का कारण बनते हैं।
  4. लिवर अचानक काम करना बंद कर देता है। इस स्थिति को मेडिकल भाषा में एक्यूट लिवर फेल्यर कहते हैं। यह स्थिति जानलेवा होती है और इसका इलाज लिवर ट्रांसप्लांट है।

 

डाइट पर दें ध्यान

 

  • हेपेटाइटिस के रोगियों की समुचित डाइट उनकी बीमारी की स्थिति, उम्र और उनके वजन पर निर्भर करती है। इस संदर्भ में कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
  • वसायुक्त खाद्य पदार्र्थो या चिकनाईयुक्त खाद्य पदार्र्थो से परहेज करें या फिर इन्हें कम मात्रा में लें।
  • रोगी की ऊर्जा संबंधी बढ़ी हुई जरूरतों की पूर्ति के लिए उसे समुचित मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स की जरूरत होती है। इसके लिए उसे खाने के लिए रोटी दें। मरीज जितना खा सके, उसे उतना ही खाने दें। धीरे-धीरे उसकी भूख जब खुलेगी, तो वह इच्छा के अनुसार रोटियां खाने लगेगा।
  • मरीज को फल दें और घर में तैयार किए गए फलों का रस पिलाएं। पीडि़त व्यक्ति आलू खा सकते हैं, लेकिन तले-भुने रूप में नहीं। सब्जियों को अच्छी तरह से धोएं। मरीज मूली भी ले सकते हैं। छिली हुई सब्जियों को भी अच्छी तरह से धुलें ताकि भविष्य में कोई संक्रमण न हो सके।
  • किसी भी तरह की शराब लिवर की शत्रु होती है। इसके सेवन से मर्ज बढ़ता है।
  • एक निश्चित अंतराल पर रोगी को पर्याप्त मात्रा में पानी, तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट्स (जैसे सोडियम और पौटेशियम) देना चाहिए।

 

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