
नवजात बच्चे के स्वास्थ्य का सही पता लगाने के लिए उसकी कई तरह की स्वास्थ्य जांच की जाती है। जिस तरह से शिशु के जन्म के बाद उसके रोने से इस बात का पता चलता है कि वह ठीक है उसी तरह से जन्म के बाद कई तरह के टेस्ट यह पता लगाने में मददगार होते हैं कि बच्चे का स्वास्थ्य कैसा है और क्या उसे किसी तरह के उपचार की आवश्यकता है। कई बार ऐसा होता है कि बच्चे जन्म के समय से ही कई तरह के विकारों से ग्रसित होते हैं और उसका ठीक समय पर पता न चलने से आगे चलकर कई तरह की गंभीर समस्याएं पैदा होती हैं। इन समस्याओं से बचने और बच्चे के स्वास्थ्य व विकास को प्रभावित होने से बचाने के लिए जन्म के बाद कई स्क्रीनिंग टेस्ट किये जाने चाहिए। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के मुताबिक बच्चे के जन्म के बाद उसका हियरिंग टेस्ट (Hearing Screening Test) जरूर किया जाना चाहिए। नवजात का जन्म के बाद हियरिंग टेस्ट करने से उसे श्रवण दोष और बहरेपन जैसी गंभीर समस्या से बचाया जा सकता है। आइये विस्तार से जानते हैं इस टेस्ट के बारे में।
क्यों जरूरी है हियरिंग स्क्रीनिंग टेस्ट? (Importance Of Hearing Screening Test)
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नवजात बच्चे अगर जन्म के समय विकारों के साथ पैदा होते हैं तो इन विकारों का सही समय पर इलाज जरूर किया जाना चाहिए। अगर बच्चों में शुरूआती समय पर जांच कर इन समस्याओं का पता नहीं लगाया जाता है तो ये आगे चलकर कई तरह की दिक्कतें पैदा करते हैं। बच्चों के जन्म के बाद उन्हें सुनाई न देना या बहरापन होना बच्चे के विकास को बुरी तरह से प्रभावित कर सकता है। शुरुआत में बच्चे अगर सुन नहीं पाते हैं तो इसकी वजह से उनके संपूर्ण विकास पर प्रभाव पड़ता है। कई बार ऐसा होता है कि बच्चे को सही इलाज मिलने पर शुरू में ही इस समस्या से बचाया जा सकता है। लेकिन कुछ मामलों में अगर लापरवाही बरती जाती है तो आगे चलकर यह समस्या हमेशा के लिए बच्चों में बनी रह सकती है। बच्चे के जन्म के समय हियरिंग टेस्ट किये जाने से पता चलता है कि बच्चा सही से सुन सकता है या नहीं। अगर बच्चा जन्म से ही श्रवण दोष के साथ जन्मा है तो हो सकता है कि इसकी वजह से बच्चे की बोलने की क्षमता भी प्रभावित हो। ऐसी स्थिति में जब बच्चे ज्यादातर चीजों को सुनकर सीखते हैं बच्चे को कुछ सुनाई न देना एक गंभीर समस्या बन सकती है। इसकी वजह से बच्चे की स्पीच एबिलिटी भी खत्म हो सकती है। शुरुआत में ही हियरिंग स्क्रीनिंग टेस्ट के माध्यम से बात का पता लगाकर बच्चे का इलाज होने से उसे इन समस्याओं से बचाया जा सकता है।
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कब किया जाता है नवजात का हियरिंग स्क्रीनिंग टेस्ट? (When Is Newborn Hearing Screening Test Done?)
न्यूबॉर्न बेबी का हियरिंग टेस्ट आमतौर पर चिकित्सक की देखरेख में अस्पताल में किया जाता है। बच्चे को हॉस्पिटल में जन्म के कुछ दिनों बाद इस टेस्ट से गुजरना पड़ता है। भारत के हर राज्य में नवजात बच्चो के स्वास्थ्य की जांच के लिए अलग-अलग टेस्ट के प्रावधान हैं जो अस्पताल में जन्म के 1 महीने के भीतर किये जाते हैं। बच्चों में सुनने में कोई प्रॉब्लम है या नहीं इस बात की जानकारी के लिए हियरिंग स्क्रीनिंग टेस्ट किया जाता है। सामान्यतः यह टेस्ट बच्चे के जन्म के बाद जब आप हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो रहे हों उस वक्त किया जा सकता है या फिर आप इस टेस्ट को जन्म के 3 महीने के भीतर करवा सकते हैं। बच्चों के हियरिंग टेस्ट में ओटाकॉस्टिक एमिशन टेस्ट (ओएई) और ऑटोमेटेड ऑडिटरी ब्रेनस्टेम रिस्पॉन्स टेस्ट (एएबीआर) जैसी मशीनों का इस्तेमाल किया जाता है। कई एक्सपर्ट्स यह मानते हैं कि बच्चे के जन्म के बाद 1 महीने बीत जाने के बाद ही हियरिंग स्क्रीनिंग टेस्ट किया जाना चाहिए।
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क्यों सभी नवजात का होना चाहिए हियरिंग स्क्रीनिंग टेस्ट? (Why Are Newborn Hearing Screenings Important?)
बहरापन या सुनने में परेशानी एक ऐसी समस्या है जिसमें शुरुआत में जांच की जानी बहुत जरूरी है। अगर बच्चे जन्म से ही बहरेपन की समस्या के साथ पैदा हुए हैं तो उनके विकास पर भी इसका असर पड़ता है। शुरुआत में जब बच्चे बड़े होना शुरू करते हैं तो उसनके सीखने और समझने का सबसे अच्छा जरिया सुनकर चीजों के बारे में जानना होता है। बच्चों में अगर जन्म से ही किसी भी प्रकार के श्रवण दोष की उपस्थिति है और इसका पता आपको नहीं चल पाया है तो इसकी वजह से आपके बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास प्रभावित होगा। इस समस्या से बचने के लिए आप बच्चे के जन्म के कुछ समय बाद ही हियरिंग स्क्रीनिंग टेस्ट जरूर करना चाहिए। आप बच्चे के जन्म के 48 घंटे बाद से लेकर जब चाहें हियरिंग स्क्रीनिंग टेस्ट करवा सकते हैं लेकिन इस टेस्ट के दौरान जरूरी बातों का ध्यान रखना अनिवार्य है। इस टेस्ट के माध्यम से ऐसा बच्चों को बहरेपन की समस्या से बचाया जा सकता है जिनमें शुरुआत से ही बहरेपन या सुनने से जुड़ी किसी गंभीर समस्या के लक्षण हैं।
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बच्चों में श्रवन दोष होने पर ये लक्षण दिखाई देते हैं (Hearing Loss Symptoms in Newborn)
जन्म से ही सुनने से जुड़ी समस्या यानी श्रवण दोष होने पर बच्चों का विकास तो प्रभावित होता ही है और इसके साथ कई अन्य समस्याएं शुरू हो सकती हैं। बच्चों में शुरुआत से ही श्रवण दोष होने पर माता-पिता इन लक्षणों से उसकी पहचान कर सकते हैं।
- बच्चे की उम्र 6 महीने हो जाने के बाद भी उसका आवाज सुनकर उसकी तरफ सिर न घुमाना।
- नाम पुकारने पर किसी भी प्रकार का रिएक्शन न देना।
- तेज आवाज जैसे गोला या पटाखे के धमाके के बाद भी किसी प्रकार की चौंकने वाली प्रतिक्रिया का न होना।
- बच्चे का 1 साल का होने के बाद भी बोल न पाना।
कैसे किया जाता है नवजात का हियरिंग टेस्ट? (How Is The Hearing Test Done?)
नवजात बच्चे के जन्म के एक महीने बाद या तीन महीने का होने तक हियरिंग स्क्रीनिंग टेस्ट जरूर किया जाना चाहिए। अस्पताल में जन्म के बाद बच्चे की हियरिंग कैपेसिटी की जांच करने के लिए चिकित्सक कई तरह के टेस्ट का सहारा ले सकते है। आपको पहले भी बताया गया है कि हियरिंग स्क्रीनिंग टेस्ट में प्रमुख रूप से दो तरह के हियरिंग टेस्ट का सहारा लिया जाता है। जिनमें पहला एएबीआर और दूसरा ओएई के नाम से जाना जाता है। इन दोनों टेस्ट के माध्यम से एक्सपर्ट बच्चों में सुनने की क्षमता की जानकारी लेते हैं। ओटाकॉस्टिक एमिशन (ओएई) टेस्ट में बच्चे के काम के अंदरूनी हिस्से में साउंड वेव मूवमेंट का इस्तेमाल कर पता लगाया जाता है। इस टेस्ट में बच्चे के कान में एक ध्वनि पास की जाती है अगर आपका बच्चा उस ध्वनि को अच्छी तरह से सुन सकता है तो उसे ठीक माना जाता है। वहीं दूसरे तरह से किये जाने वाले टेस्ट ऑटोमेटेड ऑडिटरी ब्रेनस्टेम रिस्पॉन्स टेस्ट (एएबीआर) में कंप्यूटर की मदद से ब्रेन को कनेक्ट किया जाता है और इसके बाद छोटे सॉफ्ट इयरफोन का उपयोग करके बच्चे की हियरिंग स्क्रीनिंग की जाती है।
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हमें उम्मीद है कि हियरिंग स्क्रीनिंग को लेकर दी गयी यह जानकारी आपको पसंद आई होगी। इस लेख में आपको बच्चों में हियरिंग स्क्रीनिंग की आवश्यकता के बारे में बताया गया है। आपको चिकित्सक की सलाह के बाद बच्चे के जन्म के तीन महीने के भीतर इस टेस्ट को जरूर कराना चाहिए। इस जांच के बाद आपको बच्चे के हियरिंग स्टेटस के बारे में पता चलता है।
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