शिशु को 6 माह की उम्र तक इन 6 बीमारियों का रहता है ज्यादा खतरा, एक्सपर्ट से जानें कारण और बचाव के टिप्स

व्यस्कों की तुलना में शिशु में इम्युनिटी कमजोर होती है। इसलिए जन्म के 6 से 7 महीने तक उन्हें इन बीमारियों का खतरा रहता है, जानने के लिए पढ़ें।

Satish Singh
Written by: Satish SinghUpdated at: Oct 01, 2021 12:20 IST
शिशु को 6 माह की उम्र तक इन 6 बीमारियों का रहता है ज्यादा खतरा, एक्सपर्ट से जानें कारण और बचाव के टिप्स

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जन्म के बाद बच्चों में बीमारी सामान्य बात होती है है। शिशु का जल्दी जन्म होने से उसका वजन कम होता है। यदि शिशु का वजन 2 किलो से कम होता है तो इन्हें प्रीमेच्योर कहते हैं। इसमें शिशु को ब्रेस्टफिड करने में प्रॉबल्म होती है। इसके साथ नवजात में संक्रमण का भी खतरा होता है। इससे डायरिया, निमोनिया जैसी बीमारी हो सकती है। इसलिए डॉक्टर हमेशा सलाह देते हैं कि हैंड वॉश करके अच्छे से हाथ धोकर बच्चों को पकड़ें। भारत में प्री मेच्योरिटी के कारण 35 फीसद बच्चों की मौत हो जाती है। इस आर्टिकल में हम जमशेदपुर के बारीडीह के आयुर्वेदाचार्य डॉ. आनंद पाठक से बात कर आपको बताएंगे कि शिशु को जन्म से छह माह तक किन बीमारियों का खतरा होता है और इससे कैसे बचा जा सकता है।

1. जुकाम और इसके कारण पर दें ध्यान

एक्सपर्ट बताते हैं कि शिशु को जुकाम सबसे ज्यादा होता है। बदलते मौसम के कारण ज्यादातर शिशु में यह बीमारी होती है। नवजात कभी-कभी खेलते हुए कई चीजों को छूते हैं या उनके पैरेंट्स गंदे हाथों से उन्हें पकड़ते हैं, जिससे भी जुकाम होता है। इसका सबसे बड़ा कारण संक्रमण होता है। नवजात का शरीर बहुत ही ज्यादा संवेदनशील होता है। अगर कोई सर्दी या जुकाम पीड़ित बच्चे को छू दें तो नवजात को भी जुकाम हो सकता है। सर्दी-जुकाम से ग्रसित व्यक्ति अगर नवजात के अगल-बगल में खांसता या छींकता है तो इससे इंफेक्शन बच्चे में जा सकता है, उसे जुकाम हो सकता है। शिशु की पहुंच से संक्रमण वाली चीजों जैसे पर्दे, खिलौने, फर्श से उसे दूर रखें। क्योंकि इन चीजों में बहुत देर तक वायरस जिंदा रहते हैं।

Child Disease

जुकाम का इलाज

  • आयुर्वेदाचार्य बताते हैं कि आमतौर पर सरसों के तेल का इस्तेमाल खाना बनाने में किया जाता है। लेकिन कई तरह की बीमारियों को दूर करने में भी इसका बड़ा योगदान रहता है। अगर नवजात को सर्दी या जुकाम हो गया तो सरसों के तेल में लहसुन डालकर उसे गर्म कर लें। इसके बाद तेल को पूरी तरह ठंडा होने दें। ठंडा होने के बाद बच्चों की मालिश करें। लहसुन और सरसों के तेल में कीटाणु रोधक तत्व पाए जाते हैं। जो जुकाम ठीक कर देते हैं। इसके साथ बच्चों की मालिश हो जाती है जो बच्चे के विकास के लिए भी ये जरूरी होता है।
  • जुकाम से बच्चे की नाक बंद हो जाती है, जिससे सांस लेने में भी समस्या होती है। ऐसे में बच्चों को नमक वाला पानी पिलाएं। इससे बलगम से छुटकारा मिलेगा।
  • गर्म पानी से नहलाएं :  शिशु को हमेशा हल्के गर्म पानी से नहलाएं, जिससे सर्द-गर्म की समस्या से जुखाम नहीं होगी। इसके अलावा नारियल तेल को गर्म कर इसमें कपूर पाउडर मिलाएं। बर्दाश्त करने लायक जब हल्का गर्म हो तो इस तेल को अपने हथेली में मिलाएं और शिशु की छाती की मालिश करें।

2. खांसी गंभीर रूप न ले ले इसलिए कराएं इलाज

एक्सपर्ट बताते हैं कि जब नवजात में कफ ज्यादा हो जाता है तो उसे खांसी होती है। यह काफी नवजात के लिए पीड़दायक होता है। इसका इलाज नहीं कराया तो मुश्किल बढ़ सकती है। नवजात को बिमा परमार्श के दवा भी नहीं दी जाती है। खांसी को हम घरेलू उपाय से ठीक कर सकते हैं।

खांसी का इलाज ऐसे करें

  • एक्सपर्ट बताते हैं कि शहद कफ को पतला करता है। इसलिए शहद नवजात की खांसी के छुटकारा के लिए में दवा का काम करता है। छह माह तक के बच्चों को खांसी की बीमारी है तो रोज शहद पिलाएं। यह दवा से बेहतर है। खांसी को गंभीर बीमारी का रूप लेने से शहद रोकता है। नवजात को शदद पिलाने से उसे नींद भी अच्छी आती है। नींद बच्चों के शरीर के विकास के लिए बहुत ही ज्यादा जरूरी होता है।
  • शिशु को भाप देना काफी लाभदायक होता है। खांसी का मुख्य कारण होता है गले में जमा बलगम। इसे साफ करने के लिए घरेलू उपाय आजमाने के लिए भाप बहुत ज्यादा जरूरी है। इसके लिए बाथरूम में गर्म पानी के धुएं के साथ बच्चे को लेकर बैठें। इससे नवजात को आराम मिलता है।
  • खांसी से गला जाम हो जाता है। इसके लिए शिशु को पर्याप्त मात्रा में पानी पिलाएं। पानी के साथ नींबू मिलाकर दे सकते हैं। इससे खांसी से राहत मिलेगी।
Baby Disease

3. डायरिया की पहचान कर कराएं इलाज

एक्सपर्ट बताते हैं कि डायरिया में शिशु को पतला मल आता है। यह संक्रमण, वायरल संक्रमण, बैक्टीरियल संक्रमण से फैलता है। नवजात में डायरिया होने का भी खतरा बहुत ही ज्यादा रहता है। अगर आपके शिशु को डायरिया हुआ है तो डॉक्टरी सलाह लें, उनके बताए व कहे अनुसार शिशु को डाइट देने के साथ समय-समय पर दवा दें। 

इससे बचाव के लिए ये आजमाएं

  • अगर नवजात को डायरिया हो गया है तो आप केले का घोल शिशु को दे सकते हैं। इससे डायरिया पर काबू पाया जा सकता है।
  • नवजात को ज्यादातर बीमारी मां के गलत खानपान से होती है। इसलिए मां को हमेशा अपने खाने पीने पर ध्यान रखना चाहिए। अगर गलत खान-पान रहेगा तो उसका नुकासन मां के दूध के जरिए शिशु तक पहुंच जाएगा। शिशु को जब डायरिया, दस्त हो जाए तो मां को मीठी चीज नहीं खानी चाहिए। तली हुई चीज भी नहीं खानी चाहिए। डेयरी उत्पात जैसे दूध का भी सेवन नहीं करना चाहिए।

4. कान के इंफेक्शन का रहता है अधिक खतरा

एक्सपर्ट बताते हैं कि पांच से 18 माह के शिशु को कान के इंफेक्शन का ज्यादा खतरा होता है। सर्दी-जुकाम के बाद कान में सूजन आ जाता है, जिससे तरल चीज अंदर ही फैल जाती है। इससे जीवाणु और विषाणु फैलते हैं। इंफेक्शन से पीप होता है, जो बच्चे के कान के पर्दे पर दबाव डालता है। इससे कान सूज जाता है। इंफेक्शन के कारण शिशु को बार-बार बुखार आता है। कान की नलिका छोटी होने के कारण भी इंफेक्शन होता है। कान का इंफेक्शन अगर नवजात को हो गया है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। चिक्तिसीय सहायता से कान की समस्या को दूर की जाती है। खुद कान में कुछ डालकर साफ न करें नहीं तो यह ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है।

इसके उपचार के लिए ये आजमा सकते हैं

  • कान की वजह से शिशु की तबीयत खराब है तो डॉक्टर से सीधे संपर्क करें।
  • पर्याप्त मात्रा शिशु को स्तनपान कराएं, इससे शिशु को पर्याप्त आहार और तरल पदार्थ मिलेगा, जिससे कान का इंफेक्शन कम हो जाएगा।
  • कान में तेल, जड़ी-बूटी या अन्य कोई चीज नहीं डालें, कोई भी घरेलू उपचार नहीं अपनाएं। अगर घरेलू उपचार कर रहे हैं तो एक बार डॉक्टर से जरूर संपर्क करें।
Child Disease precautions

5. कब्ज है गंभीर समस्या

एक्सपर्ट बताते हैं कि अगर नवजात को मां का दूध नहीं पीलाकर अन्य दूध का सेवन करवा रहे हैं तो नवजात को कब्ज हो सकता है। कई बार मां के दूध से भी शिशु को कब्ज की समस्या हो सकती है।  अगर मां की डाइट में पोषक संबंधी तत्वों की कमी होगी तो शिशु को भी कब्ज हो सकता है। इससे शिशु को बुखार आता है, पेट फूलता है, पॉटी कड़ा होता है। अगर आपका नवजात नियमित रूप से पॉटी नहीं कर रहा है तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।

नवजात के कब्ज का इलाज

6. मुंहासे समस्या है आम

एक्सपर्ट बताते हैं कि जन्म के दो से तीन वीक के बाद बच्चों में मुंहासे की समस्या होती है। यह बच्चों में कॉमन बीमारी होती है। यह बीमारी छह माह तक रहती है। इससे स्क्रब करके नहीं हटाएं। सिर्फ नार्मल पानी से धोएं।

शिशु को किसी भी प्रकार की दिक्कत हो तो लें डॉक्टरी सलाह

शिशु काफी संवेदनशील होते हैं। वहीं वो अपनी समस्याओं को बता भी नहीं पाते हैं इस कारण यदि उन्हें किसी प्रकार की दिक्कत होती है तो तुरंत डॉक्टरी सलाह लें। आप डॉक्टर से ही घरेलू उपचार के बारे में पूछ सकते हैं। नहीं तो यदि शिशु की तबीयत गंभीर है तो डॉक्टरी सलाह के बाद ही उसे खाने के लिए दवा आदि दें।  

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