फ्लू (Flu) का होना हमेशा एक खराब अनुभव की तरह होता है। अचानक मौसम में बदलाव से होने वाले फ्लू में बुखार, गले में खराश, ठंड लगना, मांसपेशियों में दर्द हो सकता है और साथ ही आपको कंबल ओढ़ने का मन कर सकता है। यहां तक कि हल्के फ्लू में भी कम से कम एक सप्ताह तक आप परेशान रह सकते हैं। लेकिन स्थिति सभी के लिए समान नहीं है। कुछ लोग इससे जल्दी ठीक हो जाते हैं, जबकि अन्य लंबे समय तक गंभीर जटिलताओं का अनुभव करना पड़ता है। आपका जल्दी ठीक होना आपकी प्रतिरक्षा और स्वास्थ्य स्थिति पर बहुत कुछ निर्भर करती है।
कुछ लोग दूसरों की तुलना में गंभीर फ्लू से संबंधित जटिलताओं के विकास के अधिक जोखिम में हैं। इन लोगों को जल्दी ठीक होने के लिए खुद की अधिक देखभाल की आवश्यकता होती है। यहां हम आपको कुछ ऐसे लोगों के बारे में बता रहे हैं, जो फ्लू से संबंधित खतरों के काफी करीब हो सकते हैं।
2 साल से छोटे बच्चे
बड़े बच्चों की तुलना में 2 साल से कम उम्र के बच्चों को गंभीर जटिलताएं होने की संभावना होती है। इसका कारण यह है कि उनका टीकाकरण अभी भी विकसित हो रहा है और उनका शरीर बाहरी रोगजनकों से खुद को बचाने में सक्षम नहीं है। विशेषज्ञों के अनुसार, 6 महीने से कम उम्र के शिशुओं को अक्सर फ्लू के कारण अस्पताल में भर्ती कराया जाता है और यह कुछ के लिए घातक हो सकता है।
गर्भवती महिलाएं
हालांकि, गर्भावस्था में महिलाओं को कई तरह के हार्मोनल चेंजेज का सामना करना पड़ता है। लेकिन अगर गर्भवती महिलाएं पूरी तरह से स्वस्थ हैं, तो भी उन्हें संक्रामक रोगों से संक्रमित होने का खतरा अधिक होता है। जिन महिलाओं की डिलीवरी हुई रहती है, वे भी प्रसव के 2 सप्ताह बाद तक कमजोर होती हैं। ऐसे में उनमें फ्लू के संक्रमण का खतरा अधिक रहता है।
65 साल से ऊपर के लोग
उम्र के साथ, हमारे शरीर की इम्यूनिटी कमजोर होने लगती है। जिससे शरीर फ्लू के गंभीर लक्षणों को विकसित करने वाले हानिकारक कीटाणुओं से लड़ने में असमर्थ होने लगते हैं। यही वजह है, बुजुर्गों को नियमित रूप से फ्लू शॉट्स लेने की सलाह दी जाती है। इसके साथ ही उन्हें अपने आहार में ऐसे खाद्य पदार्थों को जोड़ने की जरूरत है जो इम्यूनिटी बढ़ाते हैं।
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पुरानी बीमारी वाले लोग
अस्थमा, निमोनिया, ब्रोंकाइटिस या फेफड़ों के मुद्दों जैसे श्वसन संबंधी समस्याओं से निपटने वाले लोगों को फ्लू की गंभीर जटिलताओं के विकास का अधिक खतरा होता है। इसके अलावा, हृदय, गुर्दे, यकृत, न्यूरोलॉजिकल और चयापचय संबंधी विकार से पीड़ित लोग भी खतरे के क्षेत्र में हैं। इम्यून कम करने वाली बीमारियां जैसे एचआईवी और ल्यूकेमिया या लंबे समय तक कुछ दवाइयां लेना भी जोखिम को बढ़ा सकता है।
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बचाव कैसे करें?
इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि इन सभी वर्गों को मौसम में बदलाव के साथ खुद की देखभाल अधिक करनी चाहिए। अपने खानपान को हेल्दी रखें। रोजाना एक्सरसाइज करें। इससे उनकी रोगों से लड़ने की क्षमता विकसित होगी। गर्भवती महिलाएं की अधिक देखभाल करने की आवश्यकता है। बच्चों के लिए जरूरी है कि माता-पिता उनके आहार और व्यवहार पर नजर बनाएं रखें। किसी तरह की परेशानी या लक्षण दिखने पर उन्हें डॉक्टर के पास लेकर जाएं।
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