ऑस्टियोपोरोसिस हड्डियों का कमजोर होना ऐसी समस्या है, जिसका उम्रदराज लोगों को अधिक सामना करना पड़ता है। 50 साल की उम्र के बाद हर तीन में एक महिला को यह समस्या होती है। ये समस्या पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक होती है। आंकड़े बताते हैं कि पूरी दुनिया में हर तीन में से एक महिला और हर पांच में से एक पुरुष को ऑस्टियोपोरोसिस के कारण फ्रैक्चर होने का जोखिम बना रहता है। इसलिए इस समस्या के बारे में तथा इससे बचाव के तरीकों के बारें में जानकारी होना बेहद जरूरी हो जाता है।
ऑस्टियोपोरोसिस क्या है?
ऑस्टियोपोरोसिस का शाब्दिक अर्थ पोरस बोन्स है। अर्थात ऐसी बीमारी, जिसमें हड्डियों की गुणवत्ता और घनत्व कम होता जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण सामान्यत: जल्दी दिखाई नहीं देते हैं। दरअसल हमारी हड्डियां कैल्शियम, फॉस्फोरस और प्रोटीन के अलावा कई प्रकार के मिनरल्स से बनी होती हैं। लेकिन अनियमित जीवनशैली और बढ़ती उम्र के साथ ये मिनरल नष्ट होने लगते हैं, जिस वजह से हड्डियों का घनत्व कम होने लगता है और वे कमजोर होने लगती हैं। कई बार तो हड्डियां इतनी कमजोर हो जाती हैं कि काई छोटी सी चोट भी फ्रैक्चर का कारण बन जाती है। गौरतलब है कि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक महिलाओं में हीप फ्रेक्चर (कुल्हे की हड्डी का टूट जाना) की आशंका, स्तन कैंसर, यूटेराइन कैंसर तथा ओवरियन कैंसर जितनी ही है।
कारण
- ऑस्टियोपोरोसिस होने के कई कारण होते हैं, जिनमें प्रमुख कारण के रूप में आनुवंशिक, प्रोटीन की कमी, विटामिन डी और कैल्शियम की कमी, व्यायाम न करना, बढ़ती उम्र, धूम्रपान, डायबिटीज, थाइरॉयड तथा शराब का सेवन आदि शामिल होते हैं। इसके अलवा दौरे की दवाओं तथा स्टेरॉयड आदि के सेवन से भी कभी-कभी ये समस्या हो सकती है। बहुत ज्यादा सॉफ्ट ड्रिंक पीने, ज्यादा नमक खाने तथा महिलाओं में जल्दी पीरियड्स खत्म होने से भी इस बीमारी को पांव पसारने का मौका मिल सकता है।
- ऑस्टियोपोरोसिस का सबसे बड़े कारणों में से एक है बढ़ती उम्र। बढ़ती उम्र के साथ शरीर की हड्डियाँ टूटती रहती हैं और नई हड्डियां बढ़ती रहती हैं। लेकिन जब आप 30 साल की उम्र तक पहुंचते हैं तो हड्डियां वापस बढ़ने के बजाय तेजी से टूटने लगती हैं, जिसके कारण हड्डियां अधिक नाजुक हो जाती हैं और वे और अधिक टूटने का खतरा होता है।
- यह वह स्थिति है जो 40-45 साल की आयु में महिलाओं में अक्सर होती है और हार्मोनल स्तर में बदलाव के कारण शरीर से हड्डियां खत्म होने लगती हैं। पुरूषों का भी इस उम्र में भी हड्डियों का टुटना जारी रहता हैं लेकिन महिलाओं की तुलना में धीरे-धीरे होता है।
ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण
यूं तो आरंभिक स्थिति में दर्द के अलावा ऑस्टियोपोरोसिस के कुछ खास लक्षण नहीं दिखाई देते, लेकिन जब अक्सर कोई मामूली सी चोट लग जाने पर भी फ्रैक्चर होने लगे, तो यह ऑस्टियोपोरोसिस का बड़ा संकेत होता है। इस बीमारी में शरीर के जोडों में जैसे रीढ़, कलाई और हाथ की हड्डी में जल्दी से फ्रैक्चर हो जाता है। इसके अलावा बहुत जल्दी थक जाना, शरीर में बार-बार दर्द होना, खासकर सुबह के वक्त कमर में दर्द होना भी इसके लक्षण होते हैं। इसकी शुरुआत में तो हड्डियों और मांसपेशियों में हल्का दर्द होता है, लेकिन फिर धीरे-धीरे ये दर्द बढ़ता जाता है। खासतौर पर पीठ के निचले हिस्से और गर्दन में हल्का सा भी दबाव पड़ने पर दर्द तेज हो जाता है। क्योंकि ऑस्टियोपोरोसिस का शुरुआती दौर में अक्सर पता नहीं लग पाता, इसलिए इसके जोखिम से बचने के लिए पचास साल की आयु के बाद डॉक्टर नियमित अंतराल पर एक्स-रे कराने की सलाह देते हैं, ताकि इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सके।
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ऑस्टियोपोरोसिस का परिणाम
ऑस्टियोपोरोसिस एक प्रकार से गंभीर खतरे वाले कारक हो सकते हैं जैसे कि बीमारी के दौरान हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और नाजुक हो जाती हैं जिससे फ्रैक्चर का खतरा ज्यादा हो जाता है। वैसे अगर देखा जाए तो किसी व्यक्ति का मुख्य लक्ष्य हड्डियों की मजबूती वापस पाना और सही इलाज कर फ्रैक्चर को रोकना होता है।
- ऑस्टियोपोरोसिस को कैसे रोका जा सकता है?
- शरीर में कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए।
- कुपोषण से बचना और सही पोषण जरूर लेना चाहिए।
- शरीर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी की पूर्ति ।
- नियमित रूप से एक्सरसाइज करनी चाहिए।
- ज्यादा शराब पीने से दूरी बनाएं।
- ज्यादा धूम्रपान न करें।
- नियमित रूप से वजन कम करने वाली गतिविधियां करनी चाहिए
ऑस्टियोपोरोसिस से बचाव वाली डाइट:-
- पनीर।
- दही।
- नॉनफैट दूध
- मछली जैसे सार्डिन और हड्डियों के साथ लेना
- ताजे फल और सब्जियां जैसे:- शलजम, साग, ओकरा, चीनी गोभी, सरसों का साग, ब्रोकोली, पालक, आलू, शकरकंद, केल, संतरा, स्ट्रॉबेरी, पपीता, अनानास।
- आपकी डाइट में कैल्शियम और विटामिन डी की मात्रा काफी होनी चाहिए।
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ऑस्टियोपोरोसिस के घरेलू उपचार
धूम्रपान न करें: अपने आपको स्वस्थ रखने के लिए और बीमारियों से दूर रहने के लिए अपने व्यवहार में बदलाव भी महत्वपूर्ण है। अगर आप ऑस्टियोपोरोसिस से बचे रहना चाहते हैं तो आपको धूम्रपान का त्याग करना होगा। धूम्रपान शरीर के लिए कई मायनों में हानिकारक होता है और इसके कारण रजोनिवृत्ति महिलाओं में जल्दी आती है। इस प्रकार, ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा भी लगातार बढ़ता रहता है।
वजन बहुत ज्यादा कम न करना: अक्सर लोग अपने आपको फिट रखने के लिए और मोटापे से दूर भागने के लिए ऐसी डाइट बनाते हैं जो सही पोषक तत्वों से दूर रहती है। कई लोग वजन कम करने के लिए खाने का त्याग करना पसंद करते हैं, लेकिन ये काफी गलत है। आपके खाने का त्याग करने से पर्याप्त मात्रा में विटामिन और खनिज नहीं मिल पाते।
विनेगर: शरीर में कैल्शियम की मात्रा को बढ़ाने से हमारी हड्डियों में जान आ जाती है और वह मजबूत होने लगती हैें। आप हड्डियों को मजबूत करने के लिए विनेगर का सहारा ले सकते हैं। यह हड्डियों में कैल्शियम के स्तर को बढ़ाने में मदद करता है और हड्डी को मजबूत करता है।
टोफू: शोध में यह पाया गया है कि सोया उस यौगिक से मिलता-जुलता है जो महिलाओं को एस्ट्रोजेन नामक हार्मोन के संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है जो हड्डियों के घनत्व को बढ़ाने में मददगार होता है।
बीमार होने पर क्या करें
ऑस्टियोपोरोसिस होने पर जंपिंग और स्किपिंग जैसी भारी एक्सरसाइज करना संभव नहीं होता। तो ऐसे में वॉक, एरोबिक्स, डांस तथा लाइट स्ट्रेचिंग करें। इसके अलावा योग भी ऑस्टियोपोरोसिस में अराम पहुंचाता है। जीवनशैली में भी सकारात्मक बदलाव लाएं। क्योंकि निष्क्रिय जीवनशैली ऑस्टियोपोरोसिस की बीमारी के खतरे को और भी ज्यादा बढ़ा देती है, इसलिए ज्यादा से ज्यादा सक्रिय रहें। पोष्टिक आहार लें, जिनमें कैल्शियम और विटामिन डी भरपूर मात्रा में हो। दूध से बने उत्पाद कैल्शियम के अच्छे श्रोत होते हैं, इनका सेवन करें।
ऑस्टियोपोरोसिस की जांच के लिए बीएमडी टेस्ट अर्थात बोन मिनरल डेंसिटी टेस्ट भी कराया जाता है। डॉक्टर मानते हैं कि 40 साल की उम्र के बाद हर तीन वर्ष में एक बार बोन डेंसिटी टेस्ट करा लेना चाहिए। एक बात और, बहुत ज्यादा एक्सरसाइज करने वाले व एथलीट आदि की बोन डेंसिटी कम होने का खतरा रहता है, इसलिए इन्हें अपने खान-पान पर खास ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा आयुर्वेद व होम्योपैथी भी इसके इलाज में कारगर होती है।