बिगड़ती जीवनशैली के चलते लोगों का रोगों की चपेट में आना आम बात हो गई है। इसी की तर्ज पर हाल ही में नेत्र रोग को लेकर एम्स के डॉक्टरों ने एक बड़ा खुलासा किया है।एम्स के डॉक्टरों का कहना है कि काला मोतियाबिंद एक ऐसा रोग है जिसे ‘साइलेंट किलर’ भी कहा जाता है। यह रोग 40 साल की उम्र के बाद हर 20 में से एक व्यक्ति को होने की संभावना रहती है। एम्स स्थित डॉ राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र के प्रमुख प्रोफेसर अतुल कुमार का कहना है कि काला मोतियाबिंद रोग होने का खतरा उन लोगों को अधिक रहता है, जिनके परिवार में यह बीमारी किसी को हो चुकी हो। यानि कि इस रोग आनुवंशिक रोग भी कह सकते हैं।
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अन्य प्रोफेसर डॉ. रमनजीत सिहोता का कहना है कि अक्सर लोग ऐसी गलत धारण पाल कर रखते हैं कि काला मोतियाबिंद होने पर उनकी आंखों की रोशनी चली जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं है। अगर आप समय पर इस बीमारी के लिए गंभीर हो जाएं और इलाज कराएं तो रोग से पूरी तरह छुटकारा पाया जा सकता है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग इलाज में लापरवाही बरतते हैं उनकी आंखों की रोशनी जाने के 90 प्रतिशत चांस रहते हैं। इस बीमारी में एक बार आंख की रोशनी चली जाने के बाद उसे वापस नहीं लाया जा सकता है।
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क्या है काला मोतियाबिंद
काला मोतिया ऐसी बीमारी है जो आंखों में दबाव बढ़ने से जुड़ी हुई है। हमारी आंखों में एक तरल पदार्थ भरा होता है जिससे आंखों का आकार बनाए रखने में मदद मिलती है और लैंस तथा कार्निया को पोषण मिलता है। ऐसे में मरीज की आंखों से तरल पदार्थ ठीक से बाहर नहीं निकल पाता। इससे आंख के अंदर दबाव बढ़ जाता है और रक्त वाहिकाएं ऑप्टिक नर्व की ओर बढ़ जाती हैं। नर्व कोशिकाएं धीरे-धीरे मरती जाती हैं और इसके साथ-साथ दृष्टिहीनता भी बढ़ती जाती है। जिसे ठीक किया जाना संभव नहीं होता। आमतौर पर काला मोतिया का पता तब तक नहीं चलता जब तक मरीज दृष्टिहीन नहीं हो जाता।
लक्षण
- आंखों के सामने छोटे-छोटे बिंदु और रंगीन धब्बे दिखाई देना।
- आंखों के आगे इंद्रधनुष जैसी रंगीन रोशनी का घेरा दिखाई देना।
- चक्कर आना और मितली आना।
- आंखों में तेज दर्द होना।
- साइड विजन को नुकसान होना और बाकी विजन नॉर्मल बनी रहती हैं।
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